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सिविल कानून

विधवा पुत्रवधू के भरण-पोषण का अधिकार

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 05-Sep-2024

श्री राजपति बनाम श्रीमती भूरी देवी

विधि में यह अनिवार्य शर्त नहीं है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिये पुत्रवधू को अपने ससुराल में रहने के लिये सहमत होना होगा”।

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिये कि पुत्रवधू अपनी ससुराल में नहीं रह रही है, वह भरण-पोषण पाने की अधिकारी नहीं है।      

श्री राजपति बनाम श्रीमती भूरी देवी मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • प्रतिवादी का पति सिंचाई विभाग में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी के रूप में कार्यरत था।
  • प्रतिवादी के पति की हत्या कर दी गई परंतु प्रतिवादी ने पुनर्विवाह नहीं किया।
  • उसने दावा किया कि उसके पास जीवनयापन का कोई स्रोत नहीं था और उसने दलील दी कि अपीलकर्त्ता, जो प्रतिवादी के पति का पिता है, को 80,000 रुपए का भुगतान किया गया था।
  • उन्होंने आगे आरोप लगाया कि अपीलकर्त्ता ने उसे दी गई राशि का गबन किया है तथा अपीलकर्त्ता के पास पर्याप्त कृषि भूमि है।
  • इस प्रकार, प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्त्ता के विरुद्ध भरण-पोषण का दावा किया गया।
  • अपीलकर्त्ता का मामला यह है कि उसके पुत्र की मृत्यु के कारण अंतिम देय राशि (टर्मिनल बकाया) के लिये उसे कोई राशि प्राप्त नहीं हुई।
  • अपीलकर्त्ता ने यह भी दावा किया है कि उसने प्रतिवादी के पक्ष में 20,000 रुपए की राशि सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) कराई थी और उसने अपनी ससुराल के घर में रहने से इनकार कर दिया है तथा घरेलू सहायिका के रूप में काम कर रही है।
  • उनका यह भी कहना है कि प्रतिवादी किसी स्थान पर लाभकारी नौकरी में कार्यरत है।
  • निचले न्यायालयों का निर्णय:
    • संबंधित ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादी को 3,000 रुपए प्रति माह का गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया।
    • उपरोक्त आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने पर अंतरिम आदेश पारित किया गया, जिसमें 1,000 रुपए प्रतिमाह की दर से अंतरिम भरण-पोषण भुगतान का प्रावधान किया गया।
  • इस प्रकार मामला उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि अपीलकर्त्ता ने 80,000 रुपए की राशि का गबन किया है।
  • इसके अतिरिक्त, इस दावे में भी कोई संदेह नहीं है कि अपीलकर्त्ता ने प्रतिवादी के पक्ष में 20,000 रुपए की सावधि जमा कराई थी।
  • इसके अतिरिक्त, अपीलकर्त्ता का यह दावा कि प्रतिवादी ने पुनर्विवाह कर लिया है या किसी विशेष स्थान पर लाभकारी नौकरी कर रही है, अविश्वसनीय है।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 19 के अंतर्गत भरण-पोषण के दावे का अधिकारी था।
  • भरण-पोषण की राशि की गणना के लिये, HAMA की धारा 23 में निहित सिद्धांत पर विचार किया जाना चाहिये।
  • यह तथ्य कि विधवा पुत्रवधू अपने ससुर से अलग रह रही थी, उसे अपने ससुर से भरण-पोषण पाने के अधिकार से वंचित नहीं करता।
  • सामाजिक संदर्भ में, जिसमें विधि को लागू किया जाना चाहिये, विभिन्न कारणों और परिस्थितियों के कारण विधवा महिलाओं का अपने माता-पिता के साथ रहना असामान्य नहीं है।
  • केवल इसलिये कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम न तो इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई थी, न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीवित रहने के लिये पर्याप्त साधन होंगे।
  • यहाँ न्यायालय ने अपने द्वारा पारित अंतरिम आदेश में हस्तक्षेप करने से प्रतिषेध कर दिया।

भरण-पोषण क्या है?

  • भरण-पोषण सामान्य पर जीवन के लिये आवश्यक वस्तुओं के व्यय भी समाहित करता है। हालाँकि यह केवल दावेदार के जीवित रहने का अधिकार नहीं है।
  • 'भरण-पोषण' शब्द को हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 3(b) के अंतर्गत भी परिभाषित किया गया है।
  • इसमें भोजन, वस्त्र, आवास तथा शिक्षा एवं चिकित्सा व्यय जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का प्रावधान शामिल है।
  • भरण-पोषण का प्रावधान कई विधानों में निहित है:

               विधान

       प्रावधान

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973

धारा 125 से 128

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

धारा 24, धारा 25

हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956

धारा 18 से धारा 28 (अध्याय III)

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005

धारा 20

माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007

धारा 4 से धारा 18 (अध्याय II)

विधवा पुत्रवधू को दिये जाने वाले भरण-पोषण से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • धारा 19 में विधवा पुत्रवधू के भरण-पोषण का प्रावधान है।
  • धारा 19 (1) में प्रावधान है कि हिंदू पत्नी अपने पति की मृत्यु के बाद अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की अधिकारी होगी।
  • हालाँकि प्रावधान में एक शर्त जोड़ी गई है और यह प्रावधान है कि भरण-पोषण केवल तभी दिया जाएगा जब:
    • वह अपनी कमाई या अपनी संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, या
    • जहाँ उसकी अपनी कोई संपत्ति नहीं है, वहाँ वह गुज़ारा भत्ता पाने में असमर्थ है।:
      • उसके पति या उसके पिता या माता की संपत्ति, या
      • उसका बेटा या बेटी, यदि कोई हो, या उसकी संपत्ति।
  • धारा 19 (2) में प्रावधान है कि उपधारा (1) के अंतर्गत दायित्व समाप्त हो जाएगा यदि:
    • ससुर के पास अपने कब्ज़े में किसी भी सहदायिक संपत्ति से ऐसा करने का कोई साधन नहीं है, जिसमें से पुत्रवधू को कोई भाग नहीं प्राप्त हुआ है।
    • पुत्रवधू के पुनर्विवाह पर।

विधवा बहू को दिये जाने वाले भरण-पोषण संबंधी मामले क्या हैं?

  • अब्दुल खादर बनाम तस्लीम जमीला अगाड़ी (2024):
    • इस मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस बात पर चर्चा की कि क्या पुत्रवधू दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
    • न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 125 को ध्यान से पढ़ने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि पुत्रवधू अपने सास-ससुर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती।
    • न्यायालय ने कहा कि विधिक प्रावधानों में यह प्रावधान है कि एक पत्नी भरण-पोषण के लिये दावा कर सकती है।
    • इस प्रकार, CrPC की धारा 125 के अंतर्गत न्यायालय को याचिका पर विचार करने के लिये प्रदत्त किसी भी शक्ति के अभाव में, न्यायालय CrPC की धारा 125 के अंतर्गत पुत्रवधू को राहत नहीं दे सकता है।
  • लक्ष्मी एवं अन्य बनाम श्याम प्रताप एवं अन्य (2022):
    • यह निर्णय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा सुनाया गया जिसमें विधवा पुत्रवधू ने अपने ससुर से भरण-पोषण की मांग की थी।
    • न्यायालय ने कहा कि पुत्रवधू को अपने ससुर से भरण-पोषण की मांग नहीं करनी चाहिये, बशर्ते कि उसे उसके पति की कुछ संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो।
    • इस मामले में न्यायालय ने विधवा पुत्रवधू को भरण-पोषण देने से प्रतिषेध कर दिया।
  • धन्ना साहू बनाम श्रीमती. सीताबाई साहू (2023):
    • छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने इस मामले में विधवा बहू को भरण-पोषण देने संबंधी विधानों की विस्तृत जानकारी दी।
    • न्यायालय ने कहा कि HAMA की धारा 19 के अंतर्गत भरण-पोषण प्रदान करने के लिये पहली शर्त यह है कि विधवा पुत्रवधू अपने ससुर से उस सीमा तक भरण-पोषण का दावा कर सकती है, जब तक कि वह अपनी कमाई से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो।
    • न्यायालय ने कहा कि विधवा पुत्रवधू को भरण-पोषण तभी दिया जाएगा जब उपरोक्त शर्त पूरी हो।