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सिविल कानून
गर्भपात के बाद महिला जज को बर्खास्त करने पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय
« »05-Dec-2024
अदिति कुमार शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य। “उच्चतम न्यायालय ने गर्भपात के बाद महिला जज को बर्खास्त करने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से सवाल किया। 'अगर पुरुषों को मासिक धर्म होता तो उन्हें पता होता'। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इस बात के लिये कड़ी आलोचना की कि उसने एक महिला न्यायिक अधिकारी के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते समय गर्भपात के कारण हुए उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को नज़रअंदाज़ कर दिया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अगुआई वाली पीठ ने प्रदर्शन मूल्यांकन में लिंग आधारित पूर्वाग्रहों को उजागर किया तथा पुरुष न्यायाधीशों के लिये समान मानकों की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया। यह दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी जुड़ा मामला था जिस पर न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लिया था।
अदिति कुमार शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के छह न्यायिक अधिकारियों को एक साथ सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
- दो महिला न्यायिक अधिकारियों को बर्खास्त रखा गया , जबकि चार अन्य को उच्च न्यायालय द्वारा बहाल कर दिया गया।
- यह विशिष्ट मामला एक महिला न्यायिक अधिकारी के कार्यनिष्पादन मूल्यांकन पर केंद्रित है।
- प्रदर्शन आकलन का आधार:
- एक वर्ष में केवल दो सिविल मुकदमों का निपटान किया गया।
- केवल 1.36 परफॉरमेंस यूनिट्स अर्जित कीं।
- कोविड-19 अवधि के दौरान निपटान दर औसत से कम रही।
- प्रदर्शन को प्रभावित करने वाली व्यक्तिगत चुनौतियाँ:
- गर्भपात होना
- कोविड-19 से संक्रमित होना
- एक भाई का कैंसर से ग्रसित होना
- पेशेवर दस्तावेज़ीकरण:
- पिछली वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों (ACRs) में अच्छी (Good) और बहुत अच्छी (Very Good) जैसी टिप्पणियाँ थीं।
- रतलाम के एक निरीक्षण न्यायाधीश ने बर्खास्तगी के बाद "औसत" (Average) टिप्पणियाँ प्रदान कीं।
- बर्खास्तगी से पहले उनके विरुद्ध शिकायतों का निर्णायक रूप से समाधान नहीं किया गया।
- न्यायिक अधिकारी ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी तथा मामले को सर्वोच्च न्यायालय के ध्यान में लाया गया।
- इस मामले में न्यायिक निष्पादन मूल्यांकन में संभावित लिंग-आधारित असमानताओं और पेशेवर मूल्यांकन में व्यक्तिगत कठिनाइयों पर विचार करने जैसी आवश्यकताओं के बारे में बताया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने न्यायिक अधिकारियों के लिये मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के प्रदर्शन मूल्यांकन मानदंडों का आलोचनात्मक अवलोकन किया।
- पीठ ने मूल्यांकन पद्धति की कड़ी आलोचना की, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, विशेष रूप से महिला न्यायिक अधिकारियों से संबंधित चुनौतियों पर विचार नहीं किया गया।
- इस पर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने टिप्पणी की: "मुझे उम्मीद है कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किये जाएंगे। मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।"
- महिला, वह गर्भवती हो गई है और उसका गर्भपात हो गया! एक महिला की मानसिक तथा शारीरिक बीमारी जिसका गर्भपात हो गया।
- यह क्या है? मैं चाहती हूं कि पुरुषों को मासिक धर्म हो। तब उन्हें पता चलेगा कि यह क्या है। हमें खेद है।
- यह एक हाईकोर्ट है, जो महिला न्यायिक अधिकारी से निपट रहा है। उसने यहाँ लिखा है कि ऐसा गर्भपात के कारण हुआ है। पुरुष जजों के लिये भी इसी तरह के मानदंड हैं!
- न्यायमूर्ति नागरत्ना ने लैंगिक रूप से पक्षपातपूर्ण प्रदर्शन मापदंडों को स्पष्ट रूप से चुनौती दी, और सवाल उठाया कि क्या ऐसे कड़े मानदंड पुरुष न्यायाधीशों पर भी समान रूप से लागू होंगे।
- न्यायालय ने पेशेवर प्रदर्शन मूल्यांकन में गर्भपात, कोविड-19 संक्रमण और पारिवारिक स्वास्थ्य संकट जैसी व्यक्तिगत परिस्थितियों को भी शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यस्थलों पर मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य करने पर सुप्रीम कोर्ट के क्या विचार हैं?
- मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में उच्चतम न्यायालय ने मासिक धर्म अवकाश नीति के क्रियान्वयन की जटिल बारीकियों को स्पष्ट किया था तथा कार्यस्थल पर ऐसे प्रावधानों पर दो विपरीत दृष्टिकोणों को मान्यता दी थी।
- पीठ ने यह चेतावनी भी दी कि मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य बनाने से महिलाओं को नुकसान हो सकता है, क्योंकि इससे नियोक्ता महिला कर्मचारियों को नियुक्त करने के प्रति अनिच्छुक हो सकते हैं, जिससे महिलाओं के रोज़गार के अवसरों पर अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
- न्यायालय ने कहा कि मासिक धर्म अवकाश मूलतः एक नीतिगत मुद्दा है , जिसे न्यायिक हस्तक्षेप के बजाय सरकारी और संगठनात्मक स्तर पर नीति निर्माताओं द्वारा ही सबसे बेहतर ढंग से संबोधित किया जा सकता है।
- न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य करने का आग्रह करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्त्ता को पहले ही संबंधित सरकारी प्राधिकारियों को ज्ञापन सौंपने की सलाह दी जा चुकी है।
- इस मुद्दे के महत्त्व को स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने कहा कि नीति निर्माण में महिलाओं की कार्यबल भागीदारी पर संभावित प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है और इसे उपयुक्त सरकारी निकायों पर छोड़ दिया जाना चाहिये।
मासिक धर्म अवकाश के संबंध में क्या विधायी उपाय किये जा रहे हैं?
- संसद में मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पाद विधेयक प्रस्तुत करने के प्रयास किये गए हैं, लेकिन वे अभी तक सफल नहीं हुए हैं।
- उदाहरण: मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017 (The Menstruation Benefits Bill, 2017) और महिला यौन, प्रजनन तथा मासिक धर्म अधिकार विधेयक, 2018 (Women’s Sexual, Reproductive and Menstrual Rights Bill in 2018)।
महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक निशुल्क पहुँच का अधिकार विधेयक, 2022
- विधेयक में सभी प्रतिष्ठानों तथा शैक्षणिक संस्थानों में कामकाजी महिलाओं और छात्राओं के लिये तीन दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश प्रदान करने के साथ ही मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक निशुल्क पहुँच प्रदान करने के लिये एक व्यापक रूपरेखा का प्रस्ताव है।
- इस विधेयक का उद्देश्य मासिक धर्म स्वास्थ्य से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करना है, जिसमें यह तथ्य भी शामिल है कि लगभग 40% लड़कियाँ निजता की कमी, असुविधा और सामाजिक कुरीतियों जैसी विभिन्न चुनौतियों के कारण मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जा पाती हैं।
- मासिक धर्म संबंधी उत्पादों का निशुल्क वितरण सुनिश्चित करने, कीमतों को विनियमित करने, जागरूकता पैदा करने तथा सीमांत महिलाओं के लिये पहुँच को प्राथमिकता देने के लिये एक महिला मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पाद मूल्य विनियमन प्राधिकरण की स्थापना प्रस्तावित है।
- यह विधायी पहल अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं से प्रेरित है, जिसमें बताया गया है कि जापान, ताइवान, चीन, कोरिया, इंडोनेशिया और मैक्सिको जैसे देशों ने पहले ही मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ लागू कर दी हैं।
- यह विधेयक मासिक धर्म अवकाश को प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 21) के विस्तार के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें तर्क दिया गया है कि महिलाओं से मासिक धर्म के दौरान काम करने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये, क्योंकि इससे शारीरिक असुविधा, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ और स्वच्छता-संबंधी कठिनाइयाँ होती हैं।