होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 111
« »20-Mar-2025
अविनाश बनाम कर्नाटक राज्य "BNS, 2023 की धारा 111 को लागू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य संगठित अपराध सिंडिकेट को समाप्त करने के लिये एक लक्षित एवं प्रभावी तंत्र प्रदान करना है।" न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी |
स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी की पीठ ने कहा कि न्यायालयों को भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 111 के अंतर्गत दण्डनीय अपराध लागू करने के लिये विवेचना अधिकारी को अनुमति देते समय सावधानी बरतनी चाहिये।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अविनाश बनाम कर्नाटक राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
अविनाश बनाम कर्नाटक राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- मामले में आरोपी नंबर 2 के रूप में पहचाने जाने वाले आरोपी ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 483 के अंतर्गत नियमित जमानत की मांग करते हुए याचिका दायर की है।
- यह मामला बेंगलुरु शहर के दक्षिण-पूर्व पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज किया गया है। इस मामले में भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 318 (4) एवं 319 (2) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 (d) के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों के आरोप शामिल हैं।
- सुश्री मंथलीर एन, जो केशव सिंह के की बेटी हैं, द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर पहली सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
- अज्ञात व्यक्तियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गई थी। विवेचना के दौरान याचिकाकर्त्ता को BNS, 2023 की धारा 35(3) के तहत नोटिस दिया गया।
- इस नोटिस के प्रत्युत्तर में याचिकाकर्त्ता 06 जनवरी 2025 को पुलिस के सामने प्रस्तुत हुआ। उसी दिन उसे गिरफ्तार कर लिया गया तथा बाद में न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने इससे पहले अधिकारिता सत्र न्यायालय में जमानत के लिये आवेदन किया था। हालाँकि, 20 जनवरी 2025 को न्यायालय ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
- याचिकाकर्त्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले विद्वान अधिवक्ता ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किया है:
- याचिकाकर्त्ता का कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।
- याचिकाकर्त्ता के अतिरिक्त, मामले के संबंध में अब तक किसी अन्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
- आगे यह भी तर्क दिया गया है कि विवेचना अधिकारी (IO) ने BNS, 2023 की धारा 111 (3) एवं 111 (4) के अंतर्गत अतिरिक्त अपराध दर्ज करने के लिये ट्रायल न्यायालय से अनुमति मांगी थी।
- ट्रायल जज ने न्यायिक विवेक का प्रयोग किये बिना इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
- चूँकि कानून के तहत अभिनिर्धारित अवधि के अंदर आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है, इसलिये याचिकाकर्त्ता का दावा है कि वह सांविधिक जमानत का अधिकारी है। तदनुसार, उसने याचिका को अनुमति देने के लिये प्रार्थना की है।
- राज्य के अधिवक्ता ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किया है:
- पूछताछ के दौरान पुलिस ने हजरत अली मलहकट्टी नाम के व्यक्ति का अभिकथन दर्ज किया।
- इस घटनाक्रम के बाद 06 जनवरी 2025 को याचिकाकर्त्ता को गिरफ्तार कर लिया गया।
- अभियोजन पक्ष ने आगे कहा कि विवेचना अभी भी जारी है तथा इसलिये उसने जमानत याचिका खारिज करने की प्रार्थना की है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- BNS की धारा 111 (3) एवं 111 (4) को लागू करने के संबंध में न्यायालय ने निम्नलिखित अभिनिर्धारित किया:
- न्यायालय ने पाया कि वर्तमान तथ्यों के अनुसार याचिकाकर्त्ता का कोई अन्य आपराधिक इतिहास नहीं है तथा याचिकाकर्त्ता के अतिरिक्त किसी अन्य आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
- न्यायालय ने माना कि BNS की धारा 111 को लागू करने के उद्देश्य से कुछ निश्चित मापदण्ड हैं जिन्हें पूरा किया जाना चाहिये।
- ट्रायल न्यायालय के आदेश पत्र के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्त्ता की गिरफ्तारी से बहुत पहले ही विवेचना अधिकारी द्वारा BNS की धारा 111 को लागू करने के लिये अनुरोध दायर किया गया था।
- न्यायालय के समक्ष दायर शपथपत्र में भी विवेचना अधिकारी ने कहा है कि आज तक उसके लिये BNS की धारा 111 को लागू करने के लिये कोई सामग्री एकत्र नहीं की गई है।
- न्यायालय ने देखा कि BNSS की धारा 187 (3) (जो दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 167 (2) (a) के समरूप है, आरोपी व्यक्ति को सांविधिक जमानत का अधिकार प्रदान करती है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में आरोप पत्र आरोपी की गिरफ्तारी की तिथि से 60 दिनों के अंदर दायर किया जाना आवश्यक था।
- हालाँकि, चूँकि ट्रायल न्यायालय ने IO को BNS की धारा 111 (3) एवं (4) को लागू करने की अनुमति दी है, इसलिये विवेचना पूरी करने और अंतिम रिपोर्ट जमा करने का समय बढ़ जाता है।
- धारा 111 के अनुसार अपराध आजीवन कारावास से दण्डनीय है तथा विधि विवेचना पूरी करने और अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के लिये 90 दिन प्रदान करता है)।
- इस प्रकार उच्च न्यायालय ने माना कि न्यायालयों को BNS की धारा 111 को लागू करने के लिये आवश्यक आदेश पारित करने से पहले सावधानी बरतनी चाहिये।
- BNS की धारा 111. इस प्रकार, न्यायालय ने वर्तमान मामले के आलोक में जमानत प्रदान की।
BNS की धारा 111 क्या है?
- BNS की धारा 111 संगठित अपराध के अपराध के विरुद्ध प्रावधान करती है।
- BNS की धारा 111 (1) परिभाषित करती है कि 'संगठित अपराध' क्या होगा:
- संगठित अपराध को व्यक्तियों के समूहों द्वारा की जाने वाली किसी भी निरंतर विधिविरुद्ध गतिविधि के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो अकेले या संयुक्त रूप से एक साथ कार्य करते हैं।
- संगठित अपराध का गठन करने वाली आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं:
- व्यपहरण
- डकैती
- वाहन चोरी
- जबरन वसूली
- ज़मीन हड़पना
- कॉन्ट्रैक्ट किलिंग्स
- आर्थिक अपराध, और
- साइबर अपराध जिनके गंभीर परिणाम होते हैं।
- संगठित अपराध के अंतर्गत आने वाले अन्य अपराधों में लोगों, नशीले पदार्थों, अवैध वस्तुओं या सेवाओं की तस्करी, हथियारों की तस्करी और वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिये मानव तस्करी के रैकेट शामिल हैं।
- संगठित अपराध किसी संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्यों या ऐसे सिंडिकेट की ओर से कार्य करने वाले व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है।
- संगठित अपराध करने के लिये प्रयोग किये जाने वाले तरीकों में हिंसा, हिंसा की धमकी, धमकी, बल का प्रयोग, भ्रष्टाचार और अन्य विधिविरुद्ध तरीके शामिल हैं।
- संगठित अपराध का प्राथमिक उद्देश्य वित्तीय लाभ सहित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भौतिक लाभ प्राप्त करना है।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय के अनुसार BNS की धारा 111 का आवश्यक तत्त्व क्या हैं?
- न्यायालय ने इस मामले में माना कि BNS की धारा 111 को लागू करने का प्राथमिक उद्देश्य संगठित अपराध सिंडिकेट को समाप्त करने के लिये एक लक्षित एवं प्रभावी तंत्र प्रदान करना है।
- BNS की धारा 111 को लागू करने के लिये योग्य होने वाले पैरामीटर इस प्रकार हैं:
- धारा में सूचीबद्ध अपराध अवश्य किये गए होंगे।
- आरोपी को संगठित अपराध सिंडिकेट का सदस्य होना चाहिये।
- उसने संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्य के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से अपराध किया होगा।
- उस पर तीन वर्ष या उससे अधिक कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराध के लिये दस वर्ष की पूर्ववर्ती अवधि के अंदर एक सक्षम न्यायालय के समक्ष एक से अधिक बार आरोप-पत्र दाखिल किया गया हो तथा जिस न्यायालय के समक्ष आरोप-पत्र दाखिल किया गया है, उसने ऐसे अपराध का संज्ञान लिया हो तथा इसमें आर्थिक अपराध भी शामिल हो;
- अपराध हिंसा, धमकी, भय, बल प्रयोग या किसी अन्य विधिविरुद्ध तरीके से किया गया हो।