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आपराधिक कानून
BNSS की धारा 193
« »01-Oct-2024
गजेंद्र सिंह शेखावत बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य। "विचारण के दौरान आगे की विवेचना मामले की सुनवाई कर रहा न्यायालय के अनुमति से की जा सकती है तथा इसे नब्बे दिनों की अवधि के अंदर पूरा किया जाएगा, जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकता है।" न्यायमूर्ति अरुण मोंगा |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने गजेन्द्र सिंह शेखावत बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि एक बार पुलिस अधिकारी द्वारा रिपोर्ट दायर कर दिये जाने के बाद, ट्रायल कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना आगे कोई जाँच नहीं की जा सकती है।
गजेन्द्र सिंह शेखावत बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में, अपीलकर्त्ता के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 420, 406, 409, 467, 468, 471, 120-B एवं सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT) की धारा 65 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR ) दर्ज की गई थी।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि उसके समक्ष प्रस्तुत आरोपपत्र के आधार पर अपीलकर्त्ता के विरुद्ध कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है।
- आगे की सुनवाई के बाद, राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन प्रदान किया गया क्योंकि प्रतिवादी ने पूरक आरोपपत्र प्रदान करने के लिये समय मांगा था।
- पुनः सुनवाई के दौरान प्रतिवादी के अधिवक्ता ने कहा कि जाँच के बाद याचिकाकर्त्ता द्वारा कोई अपराध नहीं किया जाना पाया गया।
- प्रतिवादी के अधिवक्ता ने आगे कहा कि कोई पूरक आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया क्योंकि उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप पूरी तरह से निराधार पाए गए।
- अपीलकर्त्ता ने अपने विरुद्ध दर्ज FIR को रद्द करने के लिये यह आवेदन दायर किया था।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता पर किसी भी अपराध का कोई दोष नहीं है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा एक अतिरिक्त अवलोकन भी किया गया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 193 (9) के संदर्भ में एक बार BNSS की धारा 193 (3) के अधीन रिपोर्ट दर्ज होने के बाद ट्रायल कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना आगे कोई जाँच नहीं की जा सकती है।
- उपरोक्त अवलोकन के आधार पर राजस्थान उच्च न्यायालय ने वर्तमान याचिका को स्वीकार कर लिया तथा अपीलकर्त्ता के विरुद्ध प्राथमिकी रद्द कर दी।
BNSS की धारा 193 क्या है?
- BNSS की धारा 193 जाँच पूरी होने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से संबंधित है।
- यह धारा पहले दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 173 के अंतर्गत आती थी।
- इसमें प्रावधानित है कि:
- उपधारा (1) में कहा गया है कि इस अध्याय के तहत विवेचना बिना किसी अनावश्यक विलंब के पूरी की जानी चाहिये।
- उपधारा (2) में कहा गया है कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70, 71 या लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) की धारा 4, 6, 8 या धारा 10 के अधीन अपराध के संबंध में विवेचना पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचना दर्ज किये जाने की तिथि से दो महीने के अंदर पूरी की जाएगी।
- उपधारा (3) में कहा गया है कि
- खंड (i) के अनुसार जाँच के बाद पुलिस अधिकारी अपराध का संज्ञान लेने के लिये मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेजेगा जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
- पक्षकारों के नाम
- सूचना की प्रकृति
- मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम
- क्या कोई अपराध कारित किया गया प्रतीत होता है तथा यदि किया गया है, तो किसके द्वारा;
- क्या अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया है
- क्या आरोपी को उसके बॉण्ड या ज़मानत बॉण्ड पर रिहा किया गया है
- क्या आरोपी को धारा 190 के अधीन अभिरक्षा में भेजा गया है
- क्या महिला की मेडिकल जाँच की रिपोर्ट संलग्न की गई है, जहाँ जाँच BNS की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70 या धारा 71 के अधीन अपराध से संबंधित है।
- इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मामले में अभिरक्षा का क्रम
- धारा (ii) के अनुसार, पुलिस द्वारा पीड़ित को 90 दिनों की अवधि के अंदर जाँच की प्रगति के विषय में सूचित किया जाना चाहिये ।
- धारा (iii) के अनुसार, पुलिस अधिकारी को अपराध के विषय में सूचना दिये जाने के बाद उसके द्वारा की गई कार्यवाही के विषय में भी सूचित करना चाहिये ।
- उपधारा (4) में कहा गया है कि जब किसी वरिष्ठ अधिकारी को सामान्य या विशेष आदेश द्वारा नियुक्त किया जाता है, तो रिपोर्ट उसके माध्यम से मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत की जाएगी तथा वह पुलिस अधिकारी को आगे की विवेचना करने का निर्देश भी दे सकता है।
- उपधारा (5) में कहा गया है कि जब भेजी गई रिपोर्ट से पता चलता है कि किसी अभियुक्त को जमानत या बॉण्ड पर रिहा कर दिया गया है, तो मजिस्ट्रेट उसे छोड़ने का आदेश दे सकता है, जैसा वह उचित समझे।
- उपधारा (6) में कहा गया है कि BNSS की धारा 190 के अधीन विवेचना करते समय पुलिस अधिकारी द्वारा मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित अतिरिक्त दस्तावेज प्रस्तुत किये जाने चाहिये :
- सभी दस्तावेज या उनके प्रासंगिक अंश जिन पर अभियोजन पक्ष विश्वास करने का प्रस्ताव करता है, विवेचना के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले से भेजे गए दस्तावेजों के अतिरिक्त।
- BNSS की धारा 180 के अधीन दर्ज किये गए सभी व्यक्तियों के अभिकथन जिन्हें अभियोजन पक्ष अपने साक्षियों के रूप में जाँचने का प्रस्ताव करता है।
- उपधारा (7) में कहा गया है कि यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि दस्तावेज का कुछ हिस्सा न्याय के हित में नहीं है, तो वह अभिकथन के उस अंश को इंगित कर सकता है तथा मजिस्ट्रेट से अनुरोध करते हुए एक नोट संलग्न कर सकता है कि वह अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतियों से उस अंश को हटा दे और ऐसा अनुरोध करने के अपने कारण बताए।
- उपधारा (8) में कहा गया है कि पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट की उतनी संख्या में प्रतियां भी उपलब्ध कराएगा, जितनी कि अभियुक्त को आपूर्ति करने के लिये विधिवत अनुक्रमित अन्य दस्तावेजों के साथ-साथ BNSS की धारा 230 के अधीन आवश्यक है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से संचार विधिवत रूप से प्रस्तुत किया गया माना जाएगा।
- उपधारा (9) में कहा गया है कि यदि पुलिस अधिकारी को मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट सौंपने के बाद कोई और साक्ष्य मिलता है तो वह ट्रायल कोर्ट की पूर्व अनुमति के अधीन आगे की जाँच कर सकता है तथा जाँच 90 दिनों की अवधि के अंदर पूरी की जानी चाहिये जिसे न्यायालय की अनुमति से बढ़ाया जा सकता है।
पुलिस रिपोर्ट या चार्जशीट क्या है?
- यह किसी मामले की विवेचना पूरी करने के बाद पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट होती है।
- आपराधिक विचारण प्रारंभ करने के लिये इसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
- आरोप-पत्र तैयार करने के बाद, पुलिस थाने का प्रभारी अधिकारी इसे मजिस्ट्रेट के पास भेजता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार होता है ताकि आरोप तय किये जा सकें।