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आपराधिक कानून

BNSS, 2023 की धारा 360

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 27-Jan-2025

दिलीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"अभियोजन पक्ष द्वारा आवेदन सद्भावनापूर्वक और लोक नीति एवं न्याय के हित में किया जाना चाहिये, न कि विधि की प्रक्रिया को विफल या बाधित करने के लिये ।"

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय  

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा कि यदि अभियोजक अपनी राय नहीं स्पष्ट करता है तो न्यायालय को अभियोजन वापस लेने की अनुमति नहीं देनी चाहिये।

दिलीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान तथ्यों के अनुसार, दिलीप सिंह के विरुद्ध विपक्षी पक्ष संख्या 2 द्वारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC ) की धारा 384 एवं 506 के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई गई थी। 
  • विवेचना के बाद, पुलिस ने IPC की धारा 384, 352, 504 एवं 506 के अधीन आरोप पत्र दाखिल किया। 
  • अभियोजन के वाद के लंबित रहने के दौरान, राज्य ने सरकारी आदेश दिनांक 6 मई 2013 के आधार पर अभियोजन वापस लेने के लिये दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 321 के अंतर्गत एक आवेदन संस्थित किया।
  • लोक अभियोजक ने आवेदन वापस लेने के लिये कोई कारण या जनहित का उल्लेख नहीं किया।
  • आरोपी (दिलीप सिंह) एक हिस्ट्रीशीटर है, जिसके विरुद्ध 32 मामले दर्ज हैं।
  • वाद अग्रिम चरण में है तथा CrPC की धारा 313 के अधीन अभिकथन पहले ही दर्ज हो चुका है।
  • ट्रायल कोर्ट (अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट) और रिवीजनल कोर्ट दोनों ने वापसी के आवेदन को खारिज कर दिया। 
  •  CrPC की धारा 482 के अधीन वर्तमान आवेदन निम्नलिखित को रद्द करने की मांग करता है:
    • अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश।
    • आपराधिक पुनरीक्षण में पारित आदेश।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने पिछले निर्णयों में कहा है कि अभियोजन पक्ष द्वारा वाद वापस लेने के लिये आवेदन सद्भावनापूर्वक तथा न्याय के हित में किया जाना चाहिये, न कि विधि की प्रक्रिया को स्थगित या बाधित करना चाहिये। 
  • इसके अतिरिक्त, यह भी कहा गया कि विधिक स्थिति यह है कि अभियोजन पक्ष को केवल इसलिये  वापस नहीं लिया जा सकता क्योंकि सरकार ने सरकारी आदेश जारी कर दिया है।
    • लोक अभियोजक को भी CrPC की धारा 321 के अधीन संस्थित अपने आवेदन में यह उल्लेख करते हुए विवेक का प्रयोग करना चाहिये कि वह इस तथ्य से संतुष्ट है कि आवेदन सद्भावनापूर्वक और लोक नीति एवं न्याय के हित में किया गया है।
  • इसलिये, सरकारी आदेश के आधार पर बिना किसी कारण या अपनी राय का उल्लेख किये आपराधिक मामले को वापस लेने के लिये सरकारी अभियोजक द्वारा किये गए आवेदन पर, न्यायालय को अभियोजन वापस लेने की अनुमति नहीं देनी चाहिये क्योंकि यह विधि की दृष्टि में स्वीकार्य नहीं है। 
  • इस प्रकार, वर्तमान मामले में न्यायालय ने आरोपित आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई तथा आवेदन को खारिज कर दिया।

अभियोजन की वापसी क्या है?

  • CrPC की धारा 321 में अभियोजन वापस लेने का प्रावधान है। 
  • यह प्रावधान अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 360 के अंतर्गत पाया जा सकता है। 
  • BNSS की धारा 360 के अंतर्गत निम्नलिखित बिंदु निर्धारित किये गए हैं:
    • एक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक किसी मामले में अभियोजन का वाद चलाने से पीछे हट सकता है, लेकिन ऐसा करने के लिये उसे न्यायालय की अनुमति की आवश्यकता होती है। 
    • यह वापसी अंतिम निर्णय से पहले किसी भी समय की जा सकती है, और यह हो सकती है:
      • अभियुक्त के विरुद्ध सभी आरोपों के लिये 
      • केवल विशिष्ट आरोपों के लिये 
    • वापसी का प्रभाव समय पर निर्भर करता है:
      • यदि आरोप तय होने से पहले मामला वापस ले लिया जाता है: आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाता है।
      • यदि आरोप तय होने के बाद मामला वापस ले लिया जाता है: आरोपी को दोषमुक्त कर दिया जाता है।
    • यदि मामला निम्नलिखित से संबंधित हो तो केंद्र सरकार से विशेष अनुमति की आवश्यकता होगी:
      • केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामले
      • केंद्रीय संविधियों के अंतर्गत जाँच किये जा रहे मामले
      • केंद्र सरकार की संपत्ति को क्षति 
      • आधिकारिक ड्यूटी के दौरान केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा किये गए अपराध
    • दो महत्त्वपूर्ण सुरक्षा उपाय:
      • केंद्रीय मामलों से जुड़े मामलों में, अभियोजक को न्यायालय को केंद्र सरकार से लिखित अनुमति दिखानी होगी। 
      • न्यायालय को किसी भी वापसी की अनुमति देने से पहले पीड़ित का पक्ष सुनना होगा।

अभियोजन की वापसी के ऐतिहासिक मामले कौन से हैं?

  • अब्दुल वहाब के बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2018):
    • लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक, जैसा भी मामला हो, सांविधिक योजना के अधीन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा उनसे एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। 
    • उसे अपने विवेक का प्रयोग करना होगा तथा ऐसी अनुमति दिये जाने की स्थिति में समाज पर वापसी के प्रभाव पर विचार करना होगा।
  • केरल राज्य बनाम के. अजीत एवं अन्य (2021):
    • न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अभियोजन वापस लेने के लिये सहमति देने के संबंध में निर्णय लेने से पहले न्यायालय को इस तथ्य से संतुष्ट होना चाहिये कि:
      • लोक अभियोजक का कार्य अनुचित तरीके से नहीं किया गया है या यह अविधिक कारणों या उद्देश्यों के लिये न्याय के सामान्य क्रम में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं है।
      • आवेदन सद्भावनापूर्वक, लोक नीति एवं न्याय के हित में किया गया है, न कि विधि की प्रक्रिया को विफल करने या बाधित करने के लिये।
      • आवेदन में ऐसी कोई अनियमितता या अवैधता नहीं है, जिससे सहमति दिये जाने पर स्पष्ट अन्याय हो। 
      • सहमति प्रदान करना न्याय प्रशासन के अधीन है।