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आपराधिक कानून
POCSO अधिनियम की धारा 4 और 6
« »04-Dec-2023
विष्णु दास थ्रू पेहरोकार बनाम गवर्नमेंट ऑफ NCT ऑफ दिल्ली एंड Anr. "न्यायालय यौन उत्पीड़न के मामलों में साक्षियों से यह अपेक्षा नहीं कर सकते हैं कि वे हर बार एक ही जैसे शब्दों में मामले का विवरण सुनाएँ।" न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा है कि न्यायालय यौन उत्पीड़न के मामलों में साक्षियों से यह अपेक्षा नहीं कर सकते हैं कि वे हर बार एक ही जैसे शब्दों में मामले का विवरण सुनाएँ।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह निर्णय विष्णु दास थ्रू पीहेरोकार बनाम गवर्नमेंट ऑफ NCT ऑफ दिल्ली एंड Anr. के मामले में दिया।
विष्णु दास थ्रू पीहरोकर बनाम गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एंड Anr. की पृष्ठभूमि क्या है?
- पीड़िता पर यौन हमला करने के लिये अपीलकर्ता के विरुद्ध धारा 376/506 भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) तथा यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 4/6 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी। पीड़िता गर्भवती हो गई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया था।
- अपीलकर्ता को IPC की धारा 506 और POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया था (जिसके लिये उसे 10 वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई थी)।
- न्यायालय ने अपीलकर्ता की इस दलील को खारिज़ कर दिया कि कथित घटना के समय पीड़िता नाबालिग नहीं थी।
- अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि पीड़िता के साथ संबंध सहमति से बने थे, न्यायालय ने कहा कि वह बार-बार अपना बयान बदल रहा था।
- वह इस बात से इनकार कर रहा था कि उसके तथा पीड़िता के बीच कभी कोई शारीरिक संबंध था और यह कहकर अपना बचाव भी कर रहा था कि यह संबंध सहमति से बना था।
- गवाही में विसंगतियों के कारण, न्यायालय ने कहा कि पीड़िता ने सभी प्रमुख पहलुओं पर अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया।
- न्यायालय ने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सज़ा को बरकरार रखा तथा अपील खारिज़ कर दी।
न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
- पीड़िता की आर्थिक, वित्तीय और शैक्षणिक पृष्ठभूमि, यौन उत्पीड़न तथा आरोपी के बच्चे को जन्म देने के कारण जो आघात झेलना पड़ा है, उसे कभी भी न्यायालय द्वारा नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
POCSO अभिनियम, 2012 क्या है?
- बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों के मुद्दे से व्यापक रूप से निपटने के लिये यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ।
- POCSO न केवल अपराधों के लिये दंड निर्धारित करता है, बल्कि पीड़ितों के समर्थन के लिये एक प्रणाली और अपराधियों को पकड़ने के लिये बेहतर तरीके भी निर्धारित करता है।
- धारा 4: प्रवेशन यौन हमले हेतु सज़ा।
- (1) जो कोई भी प्रवेशन यौन हमला करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी जो दस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- (2) जो कोई सोलह वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर प्रवेशन यौन हमला करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास होगा और ज़ुर्माना भी देना होगा।
- (3) उप-धारा (1) के तहत लगाया गया ज़ुर्माना न्यायसंगत और उचित होगा तथा ऐसे पीड़ित के चिकित्सा व्यय एवं पुनर्वास को पूर्ण करने के लिये पीड़ित को भुगतान किया जाएगा।
- धारा 6: गंभीर प्रवेशन यौन हमले हेतु सज़ा।
- (1) जो कोई गंभीर प्रवेशन यौन हमला करता है, उसे कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, और इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास होगा और ज़ुर्माना या मृत्यु की सज़ा भी हो सकती है।
- (2) उप-धारा (1) के तहत लगाया गया ज़ुर्माना न्यायसंगत और उचित होगा तथा ऐसे पीड़ित के चिकित्सा व्यय और पुनर्वास को पूर्ण करने के लिये पीड़ित को भुगतान किया जाएगा।