Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

पारिवारिक कानून

तलाक-ए-सुन्नत

    «    »
 31-Jul-2024

साजिद मुहम्मदकुट्टी बनाम केरल राज्य एवं अन्य

“यदि तलाक-ए-सुन्नत, पूर्व अपेक्षित आवश्यकताओं के अनुपालन के अभाव में अवैध पाया जाता है, तो उक्त तलाक, तलाक-उल-बिद्दत नहीं माना जाएगा”।

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने साजिद मुहम्मदकुट्टी बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले में यह माना है कि तलाक-उल-बिद्दत की घोषणा, अपरिवर्तनीय एवं तत्काल तलाक के इरादे से किया जाना चाहिये और मात्र विधि का पालन न करना ही तलाक के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

साजिद मुहम्मदकुट्टी बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, प्रतिवादी ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 (PRM अधिनियम) की धारा 3 के साथ धारा 4 के अधीन अपराध करने के लिये न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष मामला दायर किया।
  • प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्त्ता ने उन्हें तत्काल तलाक दे दिया, जो तलाक-उल -बिद्दत (तीन तलाक) के समान है और PRM अधिनियम के अनुसार अवैध है।
  • यह भी आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी ने अपरिवर्तनीय तलाक करने के इरादे से तलाक दिया है, क्योंकि उसने विधि के अनुसार दो मध्यस्थों द्वारा सुलह का प्रयास भी नहीं किया।
  • याचिकाकर्त्ता ने दलील दी कि तलाक, क्रमशः तीन अलग-अलग तिथियों में दिया गया था और इसलिये यह तलाक-ए-सुन्नत है तथा अवैध नहीं है।
  • याचिकाकर्त्ता ने अपने विरुद्ध कार्यवाही रद्द करने के लिये केरल उच्च न्यायालय के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि तलाक-उल-बिद्दत का मूल आशय, तत्काल एवं अपरिवर्तनीय तलाक देना है परंतु यदि आशय ऐसा नहीं है तथा विधि का अनुपालन नहीं किया गया है तो इसे तलाक-उल-बिद्दत नहीं माना जाएगा।
  • केरल उच्च न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि तलाक-ए-सुन्नत जब विधिक रूप से घोषित किया जाता है तथा पूरा नहीं किया जाता है, तो यह स्वचालित रूप से तलाक-उल-बिद्दत नहीं माना जाएगा।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता का आशय, तत्काल एवं अपरिवर्तनीय तलाक देने का नहीं था, इसलिये उसे PRM अधिनियम की धारा 4 के अधीन दण्डित नहीं किया जा सकता।
  • केरल उच्च न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की कार्यवाही को रद्द कर दिया।

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रासंगिक प्रावधान क्या हैं?

  • धारा 3: तलाक अमान्य और अवैध होगा: 
    • इस धारा में कहा गया है कि किसी मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को मौखिक या लिखित रूप में या इलेक्ट्रॉनिक रूप में या किसी भी अन्य तरीके से तलाक देना अमान्य और अवैध होगा।
  • धारा 4. तलाक की उद्घोषणा करने पर दण्ड:
    • इस धारा में कहा गया है कि कोई भी मुस्लिम पति जो अपनी पत्नी को धारा 3 में उल्लिखित तलाक देता है, उसे तीन वर्ष तक के कारावास से दण्डित किया जाएगा तथा अर्थदण्ड भी देना होगा।

उद्धृत ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • सजनी ए. बनाम डॉ. बी. कलाम पाशा और अन्य (2021): इस मामले में केरल उच्च न्यायालय ने माना कि यह अनुमान लगाने के लिये कि तलाक तत्काल नहीं हुआ था, दोनों ही पक्षों को प्रत्येक पक्ष के परिवार से चुने गए दो मध्यस्थों द्वारा सुलह का प्रयास करना चाहिये।
  • जाफर सादिक ई.ए. एवं अन्य बनाम वी. मारवा एवं अन्य (2021): इस मामले में यह माना गया कि यदि तलाक तत्काल और अपरिवर्तनीय नहीं है, तो इसे PRM अधिनियम की धारा 4 के साथ धारा 3 के तहत अपराध नहीं कहा जा सकता है।

तलाक क्या है?

परिचय:

  • इसे PRM अधिनियम की धारा 2 (c) के अंतर्गत परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है कि तलाक का अर्थ है तलाक-उल-बिद्दत या तलाक का कोई अन्य समान रूप, जो मुस्लिम पति द्वारा घोषित तात्कालिक एवं अपरिवर्तनीय तलाक का प्रभाव रखता है।

तलाक के प्रकार:

  • तलाक-ए-सुन्नत: यह दो प्रकार से उद्घोषित किया जा सकता है:
    • तलाक-ए-हसन:
      • इसमें लगातार तुहरों (स्त्री के 2 लगातार मासिक धर्मों के बीच का समय) के दौरान की गई तीन घोषणाएँ शामिल हैं तथा तीनों तुहरों के दौरान कोई भी संभोग नहीं होता है।
      • पहली घोषणा एक तुहर के दौरान, दूसरी अगले तुहर के दौरान तथा तीसरी उसके बाद वाले तुहर के दौरान की जानी चाहिये।
    • तलाक-ए-अहसन:
      • इसमें एक बार तुहर (मासिक धर्म के बीच की अवधि) के दौरान तलाक की घोषणा की जाती है, जिसके बाद इद्दत की अवधि के दौरान संभोग से परहेज़ किया जाता है। 
      • जब विवाह संपन्न नहीं हुआ हो, तो अहसन के रूप में तलाक दिया जा सकता है, भले ही पत्नी मासिक धर्म में हो।
      • जहाँ पत्नी मासिक धर्म की आयु पार कर चुकी है, वहाँ तुहर के दौरान घोषणा की आवश्यकता लागू नहीं होती।
      • इसके अतिरिक्त, यह आवश्यकता केवल मौखिक तलाक पर लागू होती है, लिखित तलाक पर नहीं।
  • तलाक-उल-बिद्दत:
    • इसमें एक ही तुहर के दौरान की गई तीन घोषणाएँ शामिल हैं, या तो एक वाक्य में जैसे "मैं तुम्हें तीन बार तलाक देता हूँ, या अलग-अलग वाक्यों में जैसे "मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ, मैं तुम्हें तलाक देता हूँ"।
    • तुहर के दौरान की गई एक भी घोषणा स्पष्ट रूप से विवाह को अपरिवर्तनीय रूप से भंग करने के आशय को इंगित करती है जैसे "मैं तुम्हें अपरिवर्तनीय रूप से तलाक देता हूँ।"

तलाक-ए-सुन्नत और तलाक-उल-बिद्दत के बीच अंतर:

                  तलाक-ए-सुन्नत

          तलाक-उल-बिद्दत

इस्लामी विधि की निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना, जिसमें परामर्श, मध्यस्थता और प्रतीक्षा अवधि (इद्दत) का पालन शामिल हो सकता है।

इसकी उद्घोषणा केवल तलाक शब्द को तीन बार बोलकर की जा सकती है।

यह तलाक का एक वैध रूप है।

यह तलाक का वैध रूप नहीं है।

इद्दत के दौरान प्रतिसंहरणीय

अपरिवर्तनीय एवं तत्काल।

पुनर्विचार और सुलह का अवसर प्रदान करता है।

महिलाओं के अधिकारों में बाधा डालता है तथा पुनर्विचार और सुलह का कोई अवसर प्रदान नहीं करता है।