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शीर्षक का अंतरण

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 17-Sep-2024

बीना एवं अन्य बनाम चरण दास (मृत) Lrs. एवं अन्य

“पंजीकृत दस्तावेज़ के अभाव में स्वामित्व का अंतरण एक पक्ष से दूसरे पक्ष को नहीं हो सकता ”।

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति आर. महादेवन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों ?

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि संपत्ति का स्वामित्व केवल पंजीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से ही अंतरित किया जा सकता है।      

  • उच्चतम न्यायालय ने बीना एवं अन्य बनाम चरण दास (मृत) एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।

बीना एवं अन्य बनाम चरण दास (मृत) Lrs. अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • स्वर्गीय भवानी पार्षद मकान मालिक थे और स्वर्गीय चरण दास दो कमरों वाले मकान/गोदाम के किरायेदार थे।
  • बेदखली की कार्यवाही एवं सहमति आदेश:
    • मकान मालिक ने हिमाचल प्रदेश शहरी किराया नियंत्रण अधिनियम, 1971 (अधिनियम) की धारा 14 के अंतर्गत किरायेदार को बेदखल करने के लिये इस आधार पर आवेदन किया कि संबंधित मकान जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है तथा उसे ढहा कर पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।
    • वाद के दौरान मकान मालिक न्यायालय के समक्ष उपस्थित हुआ और बताया कि दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया है तथा किरायेदार ने न्यायालय में 12,500 रुपए की धनराशि जमा करना स्वीकार कर लिया है।
    • समझौते के अनुसार यदि निर्धारित तिथि से पूर्व राशि जमा करा दी जाती है तो मकान मालिक का आवेदन अस्वीकार माना जाएगा, अन्यथा मकान मालिक का आवेदन स्वीकार कर लिया जाएगा।
    • किरायेदार भी उपस्थित हुआ और उसने उपरोक्त समझौते को स्वीकार कर लिया।
    • किरायेदार ने उक्त राशि निर्धारित तिथि से पूर्व चंबा कोषागार में जमा करा दी।
    • इस प्रकार, अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत मकान मालिक का आवेदन सहमति आदेश के अनुसार अस्वीकार कर दिया गया।
    • मकान मालिक ने इस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण याचिका दायर की जिसे अस्वीकार कर दिया गया। न्यायालय ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि यहाँ मकान मालिक के लिये उचित उपाय अधिनियम की धारा 21 (1) (b) के अंतर्गत अपील दायर करना होगा।
  • किरायेदार द्वारा सहमति आदेश के निष्पादन के लिये आवेदन:
    • इसके उपरांत, किरायेदार ने सहमति आदेश के निष्पादन के लिये आवेदन प्रस्तुत किया। किराया नियंत्रक द्वारा इसकी अनुमति दे दी गई।
    • किराया नियंत्रक ने निर्देश दिया कि संबंधित अभिलेखों को सही करके किरायेदार का नाम मालिक के रूप में दर्ज किया जाए।
    • उपरोक्त निर्देश से व्यथित होकर मकान मालिक ने सिविल वाद दायर किया। हालाँकि इस बीच इमारत ढह गई थी और इसलिये यह माना गया कि किराया नियंत्रक का आदेश विधि के अंतर्गत उपयुक्त नहीं था।
  • किरायेदार द्वारा निषेधाज्ञा एवं कब्ज़े की वसूली के लिये मुकदमा प्रस्तुत करना:
    • परिणामस्वरूप, किरायेदार ने मकान मालिक को प्रतिवादी बनाते हुए कब्ज़े और 2,000 रुपए की वसूली के लिये स्थायी अनिवार्य निषेधाज्ञा के लिये वाद दायर किया।
    • सिविल वाद अस्वीकार कर दिया गया और किरायेदार अपील में भी असफल रहा।
    • हालाँकि दूसरी अपील में उपरोक्त निर्णय एवं पारित आदेश को उलट दिया गया।
    • इस प्रकार, दूसरी अपील में न्यायालय ने माना कि किरायेदार संपत्ति का मालिक था और कब्ज़े की डिक्री का अधिकारी था।
  • इस प्रकार, न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या मकान मालिक द्वारा अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत दिये गए आवेदन पर पारित दिनांक 05.09.1979 के सहमति आदेश के अंतर्गत, किरायेदार स्वयं को संपत्ति का मालिक होने का दावा कर सकता है, क्योंकि उसने 12,500/- रुपए की निर्धारित राशि जमा कर दी है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे का उत्तर सहमति आदेश की व्याख्या तथा सहमति आदेश पारित करते समय किराया नियंत्रक द्वारा दर्ज किये गए मकान मालिक और किरायेदार के बयानों पर निर्भर करेगा।
  • न्यायालय ने कहा कि मकान मालिक और किरायेदार के बयानों को पढ़कर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि:
    • बयानों में कहीं भी यह नहीं बताया गया कि भुगतान की जाने वाली राशि संपत्ति की बिक्री प्रतिफल थी।
    • हालाँकि यह कहा गया हो सकता है कि यह राशि संपत्ति के मूल्य के बराबर है।
    • इसलिये, किसी भी तरह से यह नहीं कहा जा सकता कि उपरोक्त विक्रय मूल्य पर संपत्ति के अंतरण का कोई निपटान हुआ था।
  • इसके अतिरिक्त, उपरोक्त सहमति आदेश के अनुसरण में संपत्ति के अंतरण का कोई दस्तावेज़ भी मौजूद नहीं है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि बयानों से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि जमा राशि पर किरायेदार संपत्ति का मालिक बन जाएगा।
  • दर्ज किया गया समझौता किसी भी तरह से किरायेदार को स्वामित्व अधिकार प्रदान नहीं करता है।
  • पंजीकृत दस्तावेज़ की अनुपस्थिति में यह नहीं कहा जा सकता कि स्वामित्व का कोई अंतरण हुआ है।
  • इसलिये, न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय और आदेश को उलट दिया।

संपत्ति का स्वामित्व कैसे अंतरित किया जाता है?

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 54 बिक्री को परिभाषित करती है।
  • इसमें प्रावधान है कि बिक्री
    • स्वामित्व का अंतरण
    • कीमत के बदले में
      • भुगतान किया गया
      • वादा किया गया
      • आंशिक भुगतान किया गया
      • आंशिक वादा किया गया
  • धारा 54 का पैरा 2 यह बताता है कि बिक्री कैसे की जानी चाहिये।

                संपत्ति का प्रकार

              अंतरण का प्रकार

100 से अधिक मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति

केवल पंजीकृत लिखत द्वारा अंतरण

100 से कम मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति

पंजीकृत दस्तावेज़ द्वारा या संपत्ति के परिदान द्वारा अंतरण

  • इसके अतिरिक्त, इसमें यह भी प्रावधान है कि मूर्त अचल संपत्ति का परिदान तब होती है जब विक्रेता क्रेता को, या उसके निर्देशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को, संपत्ति का कब्ज़ा सौंप देता है।

कौन से दस्तावेज़ अनिवार्यतः पंजीकृत हैं?

  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 में उन दस्तावेज़ों का प्रावधान है जो अनिवार्य रूप से पंजीकृत किये जाने योग्य हैं:

क्र.सख्या.

दस्तावेज़ों के प्रकार

1.

अचल संपत्ति का उपहार

2.

गैर-वसीयती लिखत जो:

  • बनाएँ
  • घोषित करें
  • सौंपें
  • सीमा तय करें
  • समाप्त करें

किसी अचल संपत्ति में निहित या आकस्मिक कोई अधिकार, हक या हित जिसका मूल्य 100 रुपए से अधिक है।

3.

गैर-वसीयती दस्तावेज़ जो उपरोक्त के कारण किसी भी प्रतिफल की प्राप्ति या भुगतान को स्वीकार करता है।

4.

अचल संपत्ति का वर्ष-दर-वर्ष पट्टा, या एक वर्ष से अधिक अवधि के लिये पट्टा, या वार्षिक किराया आरक्षित करना।

5.

किसी न्यायालय के किसी डिक्री या आदेश या किसी पंचाट को अंतरित या समनुदेशित करने वाला गैर-वसीयती दस्तावेज़, जब ऐसा डिक्री या आदेश:

  • बनाएँ
  • घोषित करें
  • सौंपें
  • सीमा
  • समाप्त करें

किसी अचल संपत्ति में कोई अधिकार, हक या हित जिसका मूल्य 100 रुपए से अधिक हो।

6.

TPA की धारा 53A के प्रयोजन के लिये किसी अचल संपत्ति को प्रतिफल के रूप में अंतरित करने के लिये अनुबंध वाले दस्तावेज़ को पंजीकृत किया जाएगा।

7.

1 जनवरी 1872 के बाद मृत तथा वसीयत द्वारा प्रदत्त न किये गए पुत्र को गोद लेने के प्राधिकार को भी पंजीकृत किया जाएगा।

स्वामित्व अंतरण पर निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • सूरज लैम्प्स एंड इंडस्ट्रीज़ बनाम हरियाणा राज्य (2012):
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि अचल संपत्ति का अंतरण केवल पंजीकृत अंतरण विलेख के माध्यम से ही किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने इस मामले में ‘SA/GPA/WILL’ अंतरण के माध्यम से संपत्ति का स्वामित्व अंतरित करने की प्रथा की भी निंदा की।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि TPA की धारा 54 के अनुसार अचल संपत्ति की बिक्री केवल पंजीकृत दस्तावेज़ के माध्यम से ही हो सकती है और बिक्री के लिये किया गया समझौता विषय-वस्तु में कोई अधिकार या हित सृजित नहीं करता है।

हिमाचल प्रदेश शहरी किराया नियंत्रण अधिनियम, 1971 की धारा 14

धारा 14: किरायेदारों की बेदखली

(1)  किरायेदारों की बेदखली केवल इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में पारित डिक्री के निष्पादन में अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार होगी।

(2)  किरायेदार को बेदखल करने के आधार धारा 14 के खंड (2) में निम्नानुसार दिये गए हैं:

  • समझौते में निर्धारित समय की समाप्ति के बाद पंद्रह दिनों के अंदर  किराये का भुगतान न करना या ऐसे समझौते के अभाव में महीने के अंतिम दिन तक किराये का भुगतान न करना।
    • परंतुक 1 में यह प्रावधान है कि यदि किरायेदार आवेदन की सुनवाई पर किराया तथा 12% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान कर देता है तो यह माना जाएगा कि किरायेदार द्वारा किराया चुका दिया गया है।
    • परंतुक 2 में यह प्रावधान है कि यदि बकाया राशि नियत दिन से पूर्व की अवधि से संबंधित है तो ब्याज की दर 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से गणना की जाएगी।
    • परंतुक 3 में यह प्रावधान है कि यदि किरायेदार बेदखली के आदेश की तिथि से 30 दिनों के अंदर  देय किराये का भुगतान कर देता है तो जिस किरायेदार के विरुद्ध आदेश दिया गया है, उसे बेदखल नहीं किया जाएगा।
  • मकान मालिक की लिखित सहमति के बिना किरायेदार:
    • पट्टे के अंतर्गत अपने अधिकारों को अंतरित कर दिया या संपूर्ण भवन या किराये की भूमि या उसके किसी भाग को उप-पट्टे पर दे दिया; या
    • भवन या किराये की भूमि का उपयोग उस उद्देश्य के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य के लिये किया गया जिसके लिये उसे पट्टे पर दिया गया था।
  • किरायेदार ने ऐसे कार्य किये हैं जिनसे भवन या किराए की भूमि के मूल्य या उपयोगिता को भौतिक रूप से हानि पहुँचने की संभावना है।
  • किरायेदार ऐसे कृत्यों और आचरण का दोषी है जो पड़ोस में इमारतों के किरायेदारों के लिये परेशानी का कारण बनते हैं; या
  • किरायेदार ने बिना किसी उचित कारण के लगातार बारह महीने तक भवन या किराये की भूमि पर कब्ज़ा नहीं किया है।