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आपराधिक कानून

POCSO अधिनियम, 2012 के अंतर्गत पीड़िता के अनुकूल विचारण

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 29-Aug-2024

माधब चंद्र प्रधान एवं अन्य बनाम ओडिशा राज्यॅ

“पीड़िता को वापस बुलाने की अनुमति देने से संविधि (POCSO अधिनियम) का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा”।

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि जब पीड़िता को प्रतिपरीक्षा के लिये पर्याप्त अवसर दे दिये गए हैं तो CrPC की धारा 311 के अधीन पुनः बुलाने के लिये आवेदन की अनुमति देना लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पाॅक्सो) के उद्देश्य को विफल कर देगा। 

  • उच्चतम न्यायालय ने माधव चंद्र प्रधान एवं अन्य बनाम ओडिशा राज्य के मामले में यह निर्णय दिया।

माधव चंद्र प्रधान एवं अन्य बनाम ओडिशा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाकर्त्ताओं ने अप्राप्तवय पीड़ित लड़की का अपहरण कर लिया तथा उसे अपने मामा के गांव ले आए।
  • अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि याचिकाकर्त्ता (आरोपी) ने उसकी विवाह दूसरे आरोपी से करवा दी।
  • अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि आरोपी व्यक्ति ने पीड़िता के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
  • पीड़िता को आखिरकार उसके माता-पिता ने बचा लिया।
  • आरोपी के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता, 1870 (IPC) की धारा 363, 366, 376 (2) एवं धारा 109 के साथ धारा 34 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 4,6 एवं 17 के साथ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (PCMA) की धारा 9, 10 एवं 11 के अधीन मामला दर्ज किया गया था।
  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 311 के अधीन दायर आवेदन:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने पीड़िता को साक्षी के रूप में पुनः जाँच के लिये वापस बुलाने के लिये CrPC की धारा 311 के अधीन आवेदन दायर किया था।
    • इस आवेदन को विशेष न्यायालय ने खारिज कर दिया।
    • याचिकाकर्त्ता ने CrPC की धारा 311 के अधीन उनके आवेदन को खारिज करने वाले विशेष न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिये CrPC की धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय में अपील किया।
    • उच्च न्यायालय के समक्ष किया गया आवेदन भी खारिज कर दिया गया।
    • इसलिये, याचिकाकर्त्ताओं ने उच्चतम न्यायालय में अपील किया है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इस मामले में दो प्रावधान लागू हैं: CrPC की धारा 311 तथा पाॅक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 33 (5)।
  • यहाँ निर्धारित किया जाने वाला मुद्दा यह है:
    • क्या CrPC की धारा 311 के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए विशेष न्यायालय को अधिनियम की धारा 33(5) के अधीन अधिदेश को ध्यान में रखते हुए, पीड़िता को साक्षी के रूप में पुनः परीक्षा के लिये वापस बुलाना चाहिये था?
  • राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) बनाम शिव कुमार यादव (2016) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 311 के अधीन गवाह को पुनः बुलाने की दलील के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये।
    • धारा 311 के अधीन साक्षी को पुनः बुलाने की दलील सद्भावनापूर्ण एवं वास्तविक होनी चाहिये।
    • धारा 311 के अधीन साक्षी को वापस बुलाने के आवेदन को स्वाभाविक रूप से स्वीकार नहीं किया जाना चाहिये तथा न्यायालय को दिये गए विवेक का प्रयोग मनमाने ढंग से नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने माना कि इस मामले में मामले के अभिलेखों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि बचाव पक्ष के वकील को पीड़िता से जिरह करने के लिये पर्याप्त अवसर दिये गए थे।
  • यह देखा गया कि जब पीड़िता की जाँच की जा चुकी है तथा फिर दो बार लंबी प्रतिपरीक्षा की जा चुकी है, तो विशेष रूप से पाॅक्सो अधिनियम के अधीन मुकदमे में पीड़िता को पुनः बुलाने के आवेदन को यंत्रवत् अनुमति देना विधि के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा।
  • इसलिये, न्यायालय ने माना कि उच्च न्यायालय या विशेष न्यायालय द्वारा पारित आदेश में कोई त्रुटि या अवैधता नहीं थी।

पाॅक्सो अधिनियम, 2012 के अंतर्गत विशेष न्यायालय क्या हैं?

  • पाॅक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 28 में विशेष न्यायालयों के पदनाम का प्रावधान है।
  • राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से प्रत्येक ज़िले के लिये एक सत्र न्यायालय को अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण के लिये विशेष न्यायालय के रूप में नामित करेगी। (धारा 28 (1))
  • यदि किसी न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में नामित किया गया है-
    • बाल अधिकार संरक्षण आयोग, 2005 के अधीन बाल न्यायालय,
    • या किसी अन्य विधि के अधीन विशेष न्यायालय
    • ऐसा न्यायालय विशेष न्यायालय माना जाएगा।
  • पाॅक्सो अधिनियम की धारा 28 (2) के अनुसार, एक विशेष न्यायालय उस अपराध का भी विचारण करेगा, जिसके लिये अभियुक्त पर उसी मुकदमे में CrPC के अधीन आरोप लगाया जा सकता है।
  • अधिनियम की धारा 28 (3) के अनुसार विशेष न्यायालय के पास सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67B के अधीन अपराधों का विचारण करने का क्षेत्राधिकार होगा।
  • पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31 के अनुसार, CrPC के प्रावधान विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाही पर लागू होंगे, सिवाय अधिनियम में अन्यथा प्रावधान के।
  • साथ ही, विशेष न्यायालय को सत्र न्यायालय माना जाएगा तथा अभियोजित करने वाला व्यक्ति लोक अभियोजक माना जाएगा।

पाॅक्सो अधिनियम, 2012 के अंतर्गत विचारण के संबंध में पीड़िता के अनुकूल प्रावधान क्या हैं?

  • धारा 33(2):
    • विशेष लोक अभियोजक एवं अभियुक्त के अधिवक्ता बालक की मुख्य परीक्षा, प्रतिपरीक्षा एवं पुनः परीक्षा दर्ज करते समय प्रश्नों को विशेष न्यायालय को सूचित करेंगे, जो बदले में बालक से ऐसे प्रश्न पूछेगा।
  • धारा 33 (3):
    • विशेष न्यायालय विचारण के दौरान बालक को बार-बार अवकाश की अनुमति दे सकता है।
  • धारा 33 (4):
    • विशेष न्यायालय, परिवार के किसी सदस्य, अभिभावक, मित्र या रिश्तेदार, जिन पर बच्चे का भरोसा या विश्वास हो, को न्यायालय में उपस्थित होने की अनुमति देकर बाल-अनुकूल वातावरण तैयार करेगा।
  • धारा 33 (5):
    • विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि बालक को न्यायालय में गवाही देने के लिये बार-बार न बुलाया जाए।
  • धारा 33 (6):
    • विशेष न्यायालय बच्चे से आक्रामक पूछताछ या चरित्र हनन की अनुमति नहीं देगा तथा यह सुनिश्चित करेगा कि विचारण के दौरान हर समय बच्चे की गरिमा बनी रहे।
  • धारा 33 (7):
    • विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि जाँच या विचारण के दौरान किसी भी समय बच्चे की पहचान का प्रकटन नहीं किया जाएगा।
    • लिखित रूप में दर्ज किये जाने वाले कारणों से विशेष न्यायालय ऐसे प्रकटन की अनुमति दे सकता है, यदि यह बालक के हित में हो।
    • स्पष्टीकरण में यह प्रावधान है कि बालक की पहचान में बच्चे के परिवार, स्कूल, रिश्तेदारों, पड़ोस या किसी अन्य जानकारी की पहचान शामिल है, जिसके द्वारा बच्चे की पहचान उजागर की जा सकती है।
  • धारा 33 (8):
    • विशेष न्यायालय दण्ड के अतिरिक्त, बालक को हुए किसी शारीरिक या मानसिक आघात के लिये अथवा ऐसे बालक के तत्काल पुनर्वास के लिये विहित प्रतिकर के भुगतान का निर्देश दे सकता है।
  • धारा 36:
    • न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि पीड़िता किसी भी तरह से अभियुक्त के संपर्क में न आए, साथ ही यह भी सुनिश्चित करेगा कि अभियुक्त बालक का बयान सुन सके तथा अपने अधिवक्ता से बातचीत कर सके।
    • विशेष न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या एकल दृश्यता दर्पण या पर्दे या अन्य उपकरण के माध्यम से बच्चे का बयान दर्ज कर सकता है।
  • धारा 37:
    • विशेष न्यायालय बंद कमरे में तथा बालक के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति, जिस पर बच्चे का भरोसा या विश्वास हो, की उपस्थिति में मामलों का विचारण करेगा।
    • धारा 37 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि जहाँ विशेष न्यायालय की यह राय है कि बच्चे की जाँच न्यायालय के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर की जानी चाहिये, तो वह CrPC की धारा 284 के प्रावधानों के अनुसार कमीशन जारी करने के लिये आगे बढ़ेगा।
  • धारा 38:
    • बच्चे का बयान दर्ज करते समय न्यायालय अनुवादक या द्विभाषिये की सहायता ले सकता है।
    • यदि बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग है, तो न्यायालय विशेष शिक्षक की सहायता ले सकता है।