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पारिवारिक कानून

HMA की धारा 12 के अंतर्गत परिवर्जनीय विवाह

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 19-Sep-2024

X बनाम Y

"ऐसा तथ्य, जिसके प्रकट होने पर दोनों पक्षों में से कोई भी विवाह के लिये सहमत नहीं होगा, एक भौतिक तथ्य होगा। ऐसा भौतिक तथ्य व्यक्ति या व्यक्ति के चरित्र के संबंध में होना चाहिये।"

न्यायमूर्ति राजन रॉय एवं न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने X बनाम Y के मामले में माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 12 के अंतर्गत "भौतिक तथ्य" वाक्यांश में कोई भी तथ्य शामिल है जो विवाह के लिये सहमति प्राप्त करने के लिये आवश्यक है, अगर इसे छुपाया जाता है तो यह विवाह को परिवर्जनीय (शून्य) घोषित करने का आधार हो सकता है।

X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में, पति (प्रतिवादी) एवं पत्नी (अपीलकर्त्ता) ने वर्ष 1995 में एक दूसरे से विवाह किया था।
  • पति ने HMA, 1955 की धारा 12 के अंतर्गत विवाह को शून्य एवं अमान्य घोषित करने के लिये याचिका दायर की।
    • आरोप लगाया गया कि एक व्यक्ति उनके पास आया तथा उसने अपीलकर्त्ता के साथ वर्ष 1992 में अपने विवाह के विषय में बताया।
    • बाद में दोनों के मध्य करार के द्वारा इसे भंग कर दिया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि अपीलकर्त्ता ने उन्हें अपने प्रथम विवाह के विषय में नहीं बताया।
    • यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्त्ता एवं प्रतिवादी का यह विवाह तथ्यों को छिपाने पर आधारित है।
  • कुटुंब न्यायालय ने प्रतिवादी के आवेदन को स्वीकार कर लिया तथा विवाह को अमान्य घोषित कर दिया।
  • कुटुंब न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर पत्नी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष HMA की धारा 28 के अंतर्गत वर्तमान अपील दायर की है।
    • पत्नी ने तर्क दिया कि पति द्वारा यह आवेदन इसलिये दायर किया गया है क्योंकि दहेज की मांग पूरी नहीं हुई है।
    • इसके अतिरिक्त यह भी तर्क दिया गया कि पति को उसका प्रथम विवाह के विषय में पहले से ही जानकारी थी।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि
    • अपीलकर्त्ता एवं उसकी माँ ने अपने अभिकथन में यह स्पष्ट किया कि प्रतिवादी एवं उसके परिवार ने विवाह से पहले अपीलकर्त्ता के विवाह में पूछताछ की थी तथा वे उसके प्रथम विवाह के विषय में जानते थे।
    • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने स्वीकार किया कि उसने विदाई के समय प्रतिवादी को अपना प्रथम विवाह के विषय में बताया था ताकि विवाह को औपचारिक रूप दिया जा सके।
    • यह दिखाने के लिये कोई न्यायालयी आदेश नहीं था कि अपीलकर्त्ता का प्रथम विवाह भंग हो गया था।
  • अतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि
    • अधीनस्थ न्यायालय के निष्कर्ष सही थे।
    • अपीलकर्त्ता ने प्रतिवादी को अपना प्रथम विवाह के विषय में सूचित नहीं किया।
    • अपीलकर्त्ता अपनी विघटित विवाह के लिये कोई साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा।
    • विवाह अमान्य था।

परिवर्जनीय विवाह क्या है?

  • ऐसा विवाह जिसे एक या दोनों पक्षों की इच्छा पर रद्द किया जा सकता है या टाला जा सकता है, परिवर्जनीय विवाह कहलाता है।
  • परिवर्जनीय विवाह वैध एवं बाध्यकारी रहता है तथा सभी प्रयोजनों के लिये तब तक बना रहता है, जब तक कि न्यायालय द्वारा HMA की धारा 12 में उल्लिखित किसी भी आधार पर उसे रद्द करने का आदेश पारित नहीं किया जाता।

HMA की धारा 12

  • HMA की धारा 12 में परिवर्जनीय विवाह के लिये प्रावधान किया गया है:
    • एक परिवर्जनीय विवाह तब तक वैध विवाह होता है जब तक कि इसे टाला न जाए, तथा यह तभी हो सकता है जब विवाह के पक्षों में से कोई एक इसके लिये याचिका दायर करता है।
    • हालाँकि, अगर कोई भी पक्ष विवाह को रद्द करने के लिये याचिका दायर नहीं करता है, तो यह वैध रहेगा।
    • पक्षों को पति एवं पत्नी का दर्जा प्राप्त है, तथा उनके बच्चों को वैध माना जाता है। पति-पत्नी के अन्य सभी अधिकार एवं कर्त्तव्य यथावत रहते हैं।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के खंड (ii) का यदि अनुपालन नहीं किया जाता है तो विवाह अमान्य हो जाता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 में आगे निम्नलिखित आधारों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर विवाह अमान्य घोषित किया जा सकता है:
    • यदि प्रतिवादी की नपुंसकता के कारण विवाह संपन्न नहीं हुआ है।
    • यदि विवाह के पक्षों में से कोई भी सहमति देने में असमर्थ है या उसे बार-बार पागलपन का दौरा पड़ता है।
    • यदि याचिकाकर्त्ता की सहमति या याचिकाकर्त्ता के अभिभावक की सहमति बलपूर्वक या छल से प्राप्त की गई है।
    • यदि प्रतिवादी विवाह से पहले याचिकाकर्त्ता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से गर्भवती थी।