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सांविधानिक विधि

संविधान में असममित संघवाद

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 18-Dec-2023

स्रोतः इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 370 (2023) से संबंधित एक मामले में असममित संघवाद पर चर्चा की गई थी। इस मामले में उच्चतम न्यायालय की 7 न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि अनुच्छेद 370 असममित संघवाद का उदाहरण है।

  • असममित संघवाद का उल्लेख संप्रभुता से भिन्न शब्द के रूप में किया गया था।

असममित संघवाद के संबंध में न्यायालय के क्या विचार थे?

  • असममित संघवाद का अर्थ:
    • असममित संघवाद में एक विशेष राज्य को स्वायत्तता की एक डिग्री प्राप्त हो सकती है जो दूसरे राज्य को नहीं है।
    • हालाँकि अंतर केवल डिग्री का है, प्रकार का नहीं। संघीय व्यवस्था के तहत अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग लाभ प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन सामान्य क्रम संघवाद है।
  • याचिकाकर्त्ताओं की दलीलें:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि अनुच्छेद 370 की व्याख्या तीन स्तंभों अर्थात् असममित संघवाद, स्वायत्तता और सहमति के संदर्भ में की जानी चाहिये।
    • असममित संघवाद, यानी कुछ संघीय उप-इकाइयों के लिये भेददर्शक अधिकार, भारतीय संघीय योजना का एक हिस्सा हैं। यह संघवाद की तरह ही बुनियादी ढाँचे का एक हिस्सा है।
  • संघीय और एकात्मक:
    • लोकतंत्र और संघवाद संविधान की बुनियादी विशेषताएँ हैं। 'संघीय' शब्द का प्रयोग संघ या केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन को इंगित करने के लिये किया जाता है।
    • जबकि संवैधानिक संरचना में कुछ 'एकात्मक' विशेषताएँ मौजूद हैं, जिनके संदर्भ में केंद्र सरकार के पास कुछ स्थितियों में अधिभावी शक्तियाँ हैं, संविधान द्वारा परिकल्पित सरकारों के रूप में संघीय तत्त्वों का अस्तित्त्व राजनीति की आधारशिला है।
    • इस व्यवस्था को अर्द्ध-संघीय, असममित संघवाद या सहकारी संघवाद के रूप में वर्णित किया गया है।

असममित संघवाद के एक भाग के रूप में संविधान के तहत विशेष प्रावधान क्या हैं?

  • जम्मू और कश्मीर से संबंधित विशेष प्रावधान:
    • भारत में असममित संघवाद का सबसे प्रमुख उदाहरण पूर्व राज्य जम्मू और कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा था।
    • अनुच्छेद 370, जो एक अस्थायी प्रावधान था, जम्मू और कश्मीर को भारतीय संघ के भीतर एक अद्वितीय स्वायत्तता प्रदान करता था।
    • इस विशेष प्रावधान ने राज्य को अपना संविधान और ध्वज रखने की अनुमति दी, जिससे भारतीय संविधान का अनुप्रयोग केवल विशिष्ट मामलों तक सीमित हो गया।
    • हालाँकि अगस्त 2019 में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके तथा राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों - जम्मू और कश्मीर व लद्दाख में विभाजित करके एक ऐतिहासिक कदम उठाया।
    • इस कदम द्वारा जम्मू-कश्मीर को पहले से प्राप्त विशेष दर्जे से वंचित कर दिया गया, जिससे यह शेष भारतीय राज्यों के साथ अधिक निकटता से जुड़ गया।
    • जबकि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से संघीय संबंधों में विषमता कम हो गई है, असममित संघवाद का सिद्धांत देश के अन्य हिस्सों में प्रासंगिक बना हुआ है।
  • संविधान में विशेष प्रावधान से संबंधित अन्य अनुच्छेद:
    • अनुच्छेद 371:
      • यह महाराष्ट्र और गुजरात के लिये अलग-अलग विकास बोर्डों के निर्माण का उल्लेख करते हुए विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जो महाराष्ट्र में विदर्भ तथा मराठवाड़ा क्षेत्रों के लिये ऐसे बोर्ड स्थापित करने के राज्यपाल के अधिकार पर प्रकाश डालता है।
    • अनुच्छेद 371A:
      • यह नगालैंड राज्य के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जिसमें एक पृथक विधायिका और नागा लोगों के लिये उनके पारंपरिक कानूनों व प्रथाओं की सुरक्षा के लिये एक विशेष दर्जा शामिल है।
    • अनुच्छेद 371B:
      • यह असम राज्य से संबंधित है तथा राज्य की विधान सभा में सीटों के आवंटन की जाँच और सिफारिश करने के लिये एक क्षेत्रीय समिति की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • अनुच्छेद 371C:
      • यह मणिपुर राज्य के लिये विशेष प्रावधानों से संबंधित है, जिसमें विधायी तंत्र के उचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये एक विधानसभा और एक समिति का प्रावधान है।
    • अनुच्छेद 371D & 371E:
      • अनुच्छेद 370D आंध्र प्रदेश राज्य से संबंधित है तथा लोक नियोजन और शिक्षा में समान अवसर प्रदान करता है।
      • अनुच्छेद 371E कहता है कि संसद विधि द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये प्रावधान कर सकती है।
    • अनुच्छेद 371F:
      • यह सिक्किम राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जिसमें मौजूदा कानूनों को जारी रखना और उनका अनुकूलन शामिल है।
    • अनुच्छेद 371G:
      • यह मिज़ोरम राज्य के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि संसद का कोई भी अधिनियम निम्नलिखित के संबंध में नहीं है-
        (i) मिज़ो लोगों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएँ,
        (ii) मिज़ो रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया,
        (iii) सिविल और दांडिक न्याय प्रशासन, जहाँ विनिश्चय मिज़ो रूढ़िजन्य विधि के अनुसार होने हैं,
        (iv) भूमि का स्वामित्व और अंतरण, मिज़ोरम राज्य पर लागू होगा जब तक कि मिज़ोरम राज्य की विधानसभा किसी संकल्प द्वारा ऐसा निर्णय न ले ले।
    • अनुच्छेद 371H:
      • यह अरुणाचल प्रदेश राज्य के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
      • इसमें कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल की अरुणाचल प्रदेश राज्य में विधि और व्यवस्था के संबंध में विशेष उत्तरदायित्व रहेगा तथा राज्यपाल, उस संबंध में अपने कृत्यों के निर्वहन में की जाने वाली कार्यवाही के संबंध में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग मंत्रिपरिषद से परामर्श करने के पश्चात् करेगा।
    • अनुच्छेद 371I:
      • यह गोवा राज्य के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 371J:
      • यह राष्ट्रपति को कर्नाटक राज्य के लिये विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

  • भारत के संविधान में असममित संघवाद इसके निर्माताओं की दूरदर्शिता का प्रमाण है, जिन्होंने देश की विविध प्रकृति को पहचाना। क्षेत्रीय, भाषाई एवं सांस्कृतिक मतभेदों को समायोजित करके, संवैधानिक ढाँचे का उद्देश्य विविधता में एकता को बढ़ावा देना है। संघीय संबंधों का विकास, जैसे कि अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण, भारत के संघवाद की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है।