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आपराधिक कानून

इलेक्ट्रॉनिक: प्रथम सूचना रिपोर्ट

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 10-Nov-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय

न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता में भारत के 22वें विधि आयोग ने अपनी 282वीं रिपोर्ट में आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 154 में संशोधन की सिफारिश की। विधि आयोग ने e-FIR को बढ़ावा दिया और इसकी पंजीकरण प्रक्रिया के लिये सिफारिशें दीं, जो भारत के प्रगतिशील डिजिटल इंडिया मिशन और राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना की दिशा में एक कदम है।

eFIR क्या है?

    • परिचय:
    • e-FIR इस रिपोर्ट का एक इलेक्ट्रॉनिक संस्करण है, जिसका अर्थ है कि इसे ऑनलाइन या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज़ किया जा सकता है।
    • e-FIR प्रणाली की शुरूआत का उद्देश्य लोगों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से पुलिस के पास शिकायत दर्ज़ करने की अनुमति देकर प्रक्रिया को अधिक कुशल और सुलभ बनाना है।

अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम (CCTNS) के तहत e-FIR की स्थिति:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने CCTNS परियोजना शुरू की जिसके तहत 8 राज्यों ने e-FIR का पंजीकरण लागू किया है।
  • निम्नलिखित 8 राज्य कुछ अपराधों के पंजीकरण की अनुमति देते हैं:
    • दिल्ली: संपत्ति चोरी मामला, मोटर वाहन (MV) चोरी मामला
    • गुजरात: मोबाइल चोरी, वाहन चोरी
    • कर्नाटक: चोरी हुए वाहनों की रिपोर्टिंग
    • मध्य प्रदेश: 15 लाख तक की वाहन चोरी या एक लाख तक की सामान्य चोरी के मामलों में।
    • ओडिशा: नागरिक निम्नलिखित परिस्थितियों में MV चोरी के मामलों के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से FIR दर्ज़ कर सकते हैं:
      • अज्ञात अभियुक्त
      • अपराध में शामिल नहीं (वाहन किसी भी अपराध में शामिल नहीं होना चाहिये। शिकायतकर्त्ता को e-FIR दर्ज़ करने के समय अनिवार्य स्व-प्रमाणीकरण देना होगा कि वाहन किसी अपराध में शामिल नहीं है)।
      • पता नहीं लगाया गया (e-FIR दर्ज़ होने तक वाहन बरामद नहीं किया जाना चाहिये था। शिकायतकर्त्ता को इस आशय का अनिवार्य स्व-प्रमाणन देना होगा। वाहन/सारथी अनुप्रयोगों से वाहन की जानकारी के सत्यापन का प्रावधान होगा।)
      • कोई हानि नहीं
    • राजस्थान: वाहन चोरी
    • उत्तर प्रदेश: अज्ञात आरोपी मामलों के लिये
    • उत्तराखंड: अज्ञात आरोपियों के लिये मामले

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • ऐसे मामलों में जहाँ आरोपी ज्ञात नहीं है, CrPC की धारा 154 के अनुसार सभी संज्ञेय अपराधों के लिए ई-एफआईआर के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • जहाँ आरोपी ज्ञात है, प्रारंभिक उपाय के रूप में, सभी संज्ञेय अपराधों के लिये ई-एफआईआर के पंजीकरण की अनुमति दी जा सकती है, जिसमें भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) और उस समय लागू अन्य कानूनों के तहत निर्धारित सजा तीन वर्ष तक है।
  • यदि ई-एफआईआर पंजीकरण का कार्य प्रभावी हो जाता है तो राज्य उन अपराधों की सूची का विस्तार कर सकते हैं जिनके लिये भविष्य में ई-एफआईआर दर्ज़ की जा सकती है।
  • CrPC की धारा 155 के अनुसार सभी गैर-संज्ञेय अपराधों के लिये ई-शिकायत के पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • शिकायतकर्त्ता या मुखबिर का ई-सत्यापन ई-प्रमाणीकरण तकनीकों का उपयोग करके करने की सिफारिश की गई है।
    • इसे ई-एफआईआर/ई-शिकायत दर्ज़ करने के उद्देश्य से OTP के माध्यम से मोबाइल नंबरों को सत्यापित करके तथा आधार या किसी अन्य सरकार द्वारा अनुमोदित ID जैसे वैध ID प्रमाण अपलोड करना अनिवार्य करके प्राप्त किया जा सकता है।
  • ई-शिकायतों या ई-एफआईआर (e-FIR) के झूठे पंजीकरण के लिये न्यूनतम कारावास और ज़ुर्माने की सजा दी जानी चाहिये।

रिपोर्ट में ई-एफआईआर के लिये क्या प्रक्रिया सुझाई गई है?

  • चरण 1:
    • पुलिस अधिकारी मुखबिर द्वारा केंद्रीकृत राष्ट्रीय पोर्टल (CNP) पर दिये गए विवरण की जाँच करेगा और जाँच करेगा कि क्या कोई संज्ञेय अपराध है, जिसमें 3 वर्ष तक की सज़ा हो सकती है, (जैसा कि IPC और उस समय लागू अन्य विशेष कानूनों के तहत निर्धारित है) किया गया है या नहीं।
  • चरण 2:
    • संज्ञेय अपराध के मामले में 3 वर्ष तक की सज़ा:
      • पुलिस अधिकारी उक्त जानकारी को अनुबंध-C में दिये गए निर्धारित प्रारूप में दर्ज़ करके, इसमें शामिल कानून, कानून के प्रावधान, अधिनियम के कारण का स्थान, समय इत्यादि सहित सभी प्रासंगिक विवरणों का उल्लेख करते हुए (3 दिनों के भीतर) दर्ज़ करेगा।
    • संज्ञेय अपराधों के मामले में 3 वर्ष से अधिक की सज़ा:
      • पुलिस अधिकारी CrPC की धारा 154 के तहत उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करेंगे। (3 दिन के अंदर)
    • गैर-संज्ञेय अपराधों के मामले में:
      • पुलिस अधिकारी सूचना को ई-एफआईआर (e-FIR) के रूप में दर्ज़ नहीं करेगा तथा इसका कारण लिखित में देगा। इन कारणों को CNP पर 'स्टेटस' टैब के तहत भी अपलोड किया जाएगा।
      • जहाँ कोई गैर-संज्ञेय अपराध किया जाता है, पुलिस CrPC की धारा I55 के अनुसार कार्रवाई करेगी।
  • चरण 3:
    • निर्धारित FIR प्रारूप में सूचना दर्ज़ करने वाला पुलिस अधिकारी मुखबिर को सूचित करेगा (मोबाइल पर टेक्स्ट के माध्यम से या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक मोड का उपयोग करके और पोर्टल पर 'स्टेटस' (STATUS) टैब के तहत)।
      • सूचना देने वाले का हस्ताक्षर 3 दिन के भीतर कराना आवश्यक है।
  • चरण 4:
    • निर्धारित समयसीमा के भीतर हस्ताक्षरित जानकारी को पंजीकृत माना जाएगा, हालाँकि पुलिस अधिकारी बिना हस्ताक्षर वाली ई-एफआईआर (e-FIR) दर्ज़ नहीं करेगा तथा इसे CNP से हटा दिया जाएगा।

निष्कर्ष

इस रिपोर्ट में दी गई सिफारिशें आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक बनाने तथा बेहतर बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में एक दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। यदि प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है, तो इन उपायों से न केवल अपराधों की रिपोर्टिंग में तेज़ी लाने की क्षमता है, बल्कि भारत में न्याय वितरण प्रणाली की समग्र पहुँच और विश्वसनीयता में भी वृद्धि होगी। डिजिटल FIR पंजीकरण की दिशा में कदम अधिक संवेदनशील और जवाबदेह कानूनी ढाँचे के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के वैश्विक रुझानों के अनुरूप है।