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आपराधिक कानून

जारकर्म को प्रत्यारोपित करना

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 05-Dec-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

हाल ही में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure- CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act- IEA) को बदलने के लिये निर्धारित तीन नए आपराधिक कानून विधेयकों की जाँच करने तथा लिंग तटस्थ आधार पर जारकर्म (Adultery) को अपराध घोषित करने की सिफारिश की है।

इस समिति की सिफारिशें क्या हैं?

  • इस समिति ने सुझाव दिया कि जारकर्म को एक दंडनीय अपराध के रूप में बहाल किया जाए लेकिन इसे लिंग-तटस्थ बनाया जाए, जिससे पुरुषों एवं महिलाओं दोनों को विधि के तहत समान रूप से दोषी ठहराया जा सके।
  • इस समिति का मानना है कि विवाह संस्था को हमारे समाज में पवित्र माना जाता है तथा इसकी पवित्रता को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है
    • साथ ही IPC की निरस्त धारा 497 में केवल विवाहित पुरुष को दंडित किया गया।

IPC की धारा 497 क्या थी?

  • IPC की धारा 497 जारकर्म को अपराध मानती है।
  • इसमें ऐसे व्यक्ति को दोषी ठहराया गया जो किसी दूसरे पुरुष की पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है
    • जारकर्म के लिये अधिकतम पाँच वर्ष के कारावास की सज़ा थी। हालाँकि महिलाओं को अभियोजन से छूट प्रदान की गई थी।
  • यह धारा तब लागू नहीं होती थी जब कोई विवाहित पुरुष किसी अविवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता है।
    • इस धारा का उद्देश्य विवाह की पवित्रता की रक्षा करना था।
  • इस अनुभाग को इस प्रकार पढ़ा जा सकता है:
    • जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति के साथ संभोग करता है जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है तथा जिसके बारे में वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है, उस पुरुष की सहमति या मिलीभगत के बिना, ऐसा संभोग बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, वह जारकर्म के अपराध का दोषी है और उसे एक अवधि के लिये कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे पाँच साल तक बढ़ाया जा सकता है, या ज़ुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा। ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक (Abettor) के रूप में दंडनीय नहीं होगी।

यह धारा क्यों निरस्त की गई?

  • जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) के मामले में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) दीपक मिश्रा तथा वर्तमान CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम. खानविलकर, आर.एफ. नरीमन व इंदु मल्होत्रा के नेतृत्व में उच्चतम न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि जारकर्म कोई अपराध नहीं है और उन्होंने इसे IPC से हटा दिया।
  • हालाँकि यह स्पष्ट किया गया कि जारकर्म एक सिविल दोष और विवाह-विच्छेद (Divorce) का वैध आधार बना रहेगा।
  • न्यायालय ने इस धारा को रद्द कर दिया क्योंकि यह महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण थी तथा लैंगिक रूढ़िवादिता के स्थायित्व को बनाये रख रही थी और महिलाओं की गरिमा को क्षीण कर रही थी।
  • न्यायालय ने कहा था कि यह प्रावधान पत्नी को पति की संपत्ति (Property) की तरह मानता है और महिला की स्वायत्तता की उपेक्षा करते हुए केवल पुरुष को दंडित करता है।

जारकर्म को लिंग तटस्थ बनाने में क्या समस्याएँ हैं?

  • IPC में जारकर्म होने से समस्या दोहरी थी। पहला, विवाह संस्था के आधार पर इसे अपराध घोषित करना और दूसरा, महिलाओं को संपत्ति के रूप में मानना, इसे लिंग तटस्थ बनाने से दोनों ही समाप्त हो जाएँगे।
    • जारकर्म विवाह के विरुद्ध एक अपराध है जो दो व्यक्तियों के बीच एक संयोग है, यदि संयोग समाप्त हो जाता है, तो पीड़ित पति या पत्नी विवाह-विच्छेद या सिविल दोष के लिये मुकदमा कर सकते हैं।
  • विवाह को संस्कार का दर्जा देना अब पुराना हो गया है।
  • किसी भी स्थिति में विवाह का संबंध केवल दो व्यक्तियों से होता है, न कि बड़े पैमाने पर समाज से।
  • राज्य को उनके जीवन में प्रवेश करने और कथित गलत काम करने वाले को दंडित करने का कोई अधिकार नहीं है।

क्या इस मामले में ऐसे फैसले को रद्द किया जा सकता है?

  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय देश का सर्वोपरि कानून है और यह अधीनस्थ न्यायालयों को उसके आदेश का पालन करने के लिये बाध्य करता है।
  • संसद ऐसे कानून को आसानी से पारित नहीं कर सकती जो शीर्ष न्यायालय के फैसले का खंडन करता हो।
    • हालाँकि यह न्यायिक फैसलों के विरुद्ध निर्णय दे सकता है, लेकिन ऐसी विधायी कार्रवाई तभी वैध मानी जाएगी जब निर्णय का विधिक आधार परिवर्तित कर दिया जाए।
  • ऐसा कानून भूतलक्षी (Retrospective) एवं भावी (Prospective) दोनों प्रकार का हो सकता है।

निष्कर्ष:

जारकर्म में प्राय: संबंधों के भीतर व्यक्तिपरक और सूक्ष्म परिस्थितियाँ शामिल होती हैं। जारकर्म की जटिलताओं की खोज के लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। एक निष्पक्ष व सामंजस्यपूर्ण मार्ग निर्मित करने के लिये विधिक सुधारों, विधायी कार्रवाइयों एवं सामाजिक जागरूकता को संतुलित करना आवश्यक है।