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आपराधिक कानून

BNSS की धारा 107

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 25-Sep-2024

स्रोत: द हिंदू  

परिचय:

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 107, जो "अपराध में प्रयुक्त संपत्ति" से संबंधित है। यह नवीन विधि न्यायालयों को आपराधिक गतिविधियों से प्राप्त मानी जाने वाली संपत्ति को कुर्क करने और जब्त करने के व्यापक अधिकार देती है। विगत विधियों के विपरीत, धारा 107 अन्वेषण के दौरान त्वरित कार्रवाई की अनुमति देती है, जिससे संभावित रूप से कुर्क संपत्ति का त्वरित व्ययन हो सकता है। 

BNSS की धारा 107 क्या है?

  • परिचय
    • इस अधिनियम की धारा 107 आपराधिक गतिविधियों से प्राप्त मानी जाने वाली संपत्ति की कुर्की, ज़ब्ती या वापसी हेतु एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करती है।
    • यह धारा विधि प्रवर्तन और न्यायिक अधिकारियों को उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए अपराध में प्रयुक्त संपत्ति के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार देती है।
  • कुर्की कार्यवाही की शुरुआत:
    • अन्वेषण कर रहा कोई पुलिस अधिकारी संपत्ति कुर्क करने के लिये आवेदन कर सकता है, यदि उसके पास यह मानने का कारण हो कि संपत्ति का अर्जन आपराधिक कृत्यों से हुआ है।
    • यह आवेदन अपराध पर अधिकार क्षेत्र वाले न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष किया जाना चाहिये।
    • आवेदन के लिये पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त से अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
  • कारण बताओ नोटिस जारी करना:
    • यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट को लगता है कि कोई भी संपत्ति अपराध में प्रयुक्त संपत्ति है, तो वे कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं। 
    • नोटिस में संपत्ति धारक को यह बताने के लिये कि कुर्की आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिये, 14 दिन का समय दिया जाता है। 
    • यदि संपत्ति संबंधित व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति के पास है, तो नोटिस की एक प्रति उस तीसरे पक्ष को भी दी जानी चाहिये।
  • कुर्की पर विचार और आदेश:
    • न्यायालय या मजिस्ट्रेट कारण बताओ नोटिस के जवाब में दिये गए किसी भी स्पष्टीकरण पर विचार करेंगे। 
    • वे उपलब्ध तथ्यों पर भी विचार करेंगे और संबंधित पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करेंगे। 
    • अपराध में प्रयुक्त संपत्ति पाई गई संपत्तियों के लिये कुर्की आदेश पारित किया जा सकता है। 
    • यदि व्यक्ति 14 दिन की अवधि के भीतर उपस्थित होने या अपना पक्ष प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो एकपक्षीय आदेश पारित किया जा सकता है।
  • एकपक्षीय अंतरिम आदेश:
    • न्यायालय या मजिस्ट्रेट बिना नोटिस जारी किये कुर्की या ज़ब्ती के लिये एकपक्षीय अंतरिम आदेश पारित कर सकते हैं, यदि उनका मानना ​​है कि ऐसा करने से कुर्की या ज़ब्ती का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
    • यह अंतरिम आदेश तब तक लागू रहता है जब तक उपधारा (6) के तहत आदेश पारित नहीं हो जाता।
  • संपत्ति का वितरण:
    • यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट को लगता है कि कुर्क या ज़ब्त की गई संपत्ति अपराध में प्रयुक्त संपत्ति है, तो वे ज़िला मजिस्ट्रेट को निर्देश देंगे कि वे इन संपत्ति को अपराध से प्रभावित व्यक्तियों के बीच समान रूप से वितरित करें।
  • वितरण का कार्यान्वयन:
    • ज़िला मजिस्ट्रेट को आदेश प्राप्त होने के 60 दिनों के भीतर संपत्ति वितरित करनी होगी। 
    • ज़िला मजिस्ट्रेट यह कार्य व्यक्तिगत रूप से कर सकते हैं या किसी अधीनस्थ अधिकारी को ऐसा करने के लिये अधिकृत कर सकते हैं।
  • सरकार द्वारा ज़ब्ती:
    • यदि संपत्ति के लिये कोई दावेदार नहीं है, कोई निश्चित दावेदार नहीं है, या दावेदारों को वितरण करने के बाद अधिशेष है, तो संपत्ति सरकार के पास ज़ब्त हो जाती है।
    • धारा 107 प्रभावित पक्षों को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के अवसर प्रदान करके प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के साथ आपराधिक संपत्ति के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता को संतुलित करती है। 
    • यह यह भी सुनिश्चित करती है कि अपराध के पीड़ित ज़ब्त आपराधिक संपत्ति के वितरण के माध्यम से अपनी हानि की संभावित भरपाई कर सकें। 
    • तत्काल मामलों में एकपक्षीय आदेश का प्रावधान, पूर्ण सुनवाई की अंतिम आवश्यकता के साथ, अपराध में प्रयुक्त संपत्ति के निदान में विधि के प्रभावी और निष्पक्ष होने के प्रयास को प्रदर्शित करता है।

BNSS, 2023 की धारा 107 और अन्य प्रावधानों के तहत "अपराध में प्रयुक्त संपत्ति" की अवधारणा क्या है?

  • "अपराध में प्रयुक्त संपत्ति" अवधारणा का परिचय:
    • BNSS, 2023 की धारा 107 में उन संपत्तियों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं जो "अपराध में प्रयुक्त संपत्ति" हैं। 
    • इस अवधारणा को पहले मुख्य रूप से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की कुछ धाराओं में संबोधित किया गया था।
  • विस्तारित न्यायालय की शक्तियाँ:
    • धारा 107 न्यायालयों को निम्नलिखित व्यापक शक्तियाँ प्रदान करती है: a) अन्वेषण के दौरान पुलिस के अनुरोध पर किसी भी संपत्ति को कुर्क करना। b) कुछ शर्तों के अधीन अपराध से प्राप्त संपत्ति की सरकार द्वारा ज़ब्ती।
  • कुर्की कार्यवाही की शुरुआत:
    • अन्वेषण करने वाला कोई भी पुलिस अधिकारी संपत्ति कुर्क करने के लिये आवेदन कर सकता है।
    • आवेदन के लिये पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त से मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
    • अधिकारी के पास केवल यह "विश्वास करने का कारण" होना चाहिये कि संपत्ति आपराधिक गतिविधि से प्राप्त हुई है।
  • (PMLA) प्रावधानों के साथ तुलना: 
    • (PMLA) के विपरीत, BNSS की धारा 107 में निम्नलिखित की आवश्यकता नहीं है: a) विश्वास के कारणों की लिखित रिकॉर्डिंग। b) विश्वास कि संपत्ति को छुपाया या स्थानांतरित किया जा सकता है। c) अनंतिम कुर्की पर 90 दिन की सीमा।
  • कुर्की का समय: 
    • BNSS के तहत, अन्वेषण के दौरान संपत्ति कुर्क की जा सकती है। 
    • यह CrPC से अलग है, जिसमें अन्वेषण रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजे जाने के बाद ही कुर्की की अनुमति दी जाती है।
  • संपत्ति का परिदान:
    • BNSS परिदान के चरण का प्रावधान नहीं करती है, जबकि (PMLA) में मुकदमे के निष्कर्ष के बाद ही परिदान का उल्लेख है।
    • यदि संपत्ति अपराध में प्रयुक्त संपत्ति पाई जाती है, तो न्यायालय ज़िला मजिस्ट्रेट को उन्हें प्रभावित व्यक्तियों में वितरित करने का आदेश दे सकता है।
    • दावा न की गई संपत्ति या अधिशेष संपत्ति सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली जाती है।
  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय:
    • कुर्की से पहले न्यायालय को 14 दिन की प्रतिक्रिया अवधि के साथ कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहिये।
    • यदि व्यक्ति अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं करता है तो एकपक्षीय आदेश पारित किया जा सकता है।
    • ज़िला मजिस्ट्रेट के पास न्यायालय के आदेश के बाद संपत्ति वितरित करने के लिये 60 दिन का समय होता है।
  • संभावित संवैधानिक संघर्ष: 
    • संविधान का अनुच्छेद 300A विधि के अधिकार को छोड़कर संपत्ति से वंचित करने से सुरक्षा प्रदान करता है। 
    • संपत्ति के अधिकारों को प्रभावित करने वाली विधि "न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित" होनी चाहिये।
  • परिभाषा संबंधी मुद्दे:
    • संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्यों से संबंधित धाराओं को छोड़कर, BNSS में 'अपराध में प्रयुक्त संपत्ति' की स्पष्ट परिभाषा का अभाव है।
  • विधायी आशय और चिंताएँ:
    • ऐसा प्रतीत होता है कि इसका उद्देश्य राज्यों को अपराध में प्रयुक्त संपत्ति के शीघ्र परिदान और वितरण के लिये सशक्त बनाना है। 
    • उचित दावेदारों की पहचान करने के लिये दिशा-निर्देशों का अभाव एवं  उचित सुनवाई के बिना संपत्ति के परिदान की संभावना के संबंध में चिंताएँ विद्यमान हैं।

निष्कर्ष:

यद्यपि धारा 107 का उद्देश्य राज्यों को अपराध में प्रयुक्त संपत्ति के त्वरित प्रबंधन एवं वितरण हेतु सशक्त बनाना है, तदापि यह कई चिंताएँ उत्पन्न करता है। सही दावेदारों की पहचान करने के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव एवं मुकदमे के समाप्त होने से पूर्व संपत्ति के परिदान की संभावना विधि संबंधी  व्यावहारिक मुद्दों को जन्म दे सकती है। एक जोखिम यह है कि यह प्रक्रिया संपत्ति के अधिकारों की संवैधानिक सुरक्षा के साथ पूरी तरह से संरेखित नहीं हो सकती है, जिससे यह विधिक चुनौतियों के प्रति संवेदनशील हो सकती है।