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सांविधानिक विधि

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 का रद्दीकरण

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 25-Oct-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

परिचय

भारत के उच्चतम न्यायालय ने, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को रद्द करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, इस बात पर बल दिया कि धार्मिक शिक्षण संस्थानों को विनियमित करने वाले विधान स्वतः ही धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं करते हैं। न्यायालय का यह विचार यह दर्शाता है कि मदरसा शिक्षा का विनियमन धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करके राष्ट्रीय हित में है।

अंजुम कादरी एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले की पृष्ठभूमि और न्यायालय की टिप्पणी क्या है?

पृष्ठभूमि

  • यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका से उत्पन्न हुआ था।
  • याचिका में निम्नलिखित को चुनौती दी गई थी:
    • यूपी मदरसा बोर्ड की संवैधानिक वैधता
    • अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसों का प्रबंधन
    • केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों की भागीदारी से संबंधित मुद्दे
  • विधायी ढाँचा:
    • उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 ने शिक्षा के विभिन्न स्तर स्थापित किये:
      • तहतानिया (कक्षा 1-5 के समकक्ष)
      • फौक्वानिया (कक्षा 6-8 के समकक्ष)
      • मुंशी (कक्षा 10 के समकक्ष)
      • आलिम (कक्षा 11-12 के समकक्ष)
      • उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम: कामिल एवं फाज़िल (राज्य से कोई वित्त पोषण प्राप्त नहीं)
  • उच्च न्यायालय के निष्कर्ष:
    • अधिनियम को अल्ट्रा वायर्स (विधिक अधिकार से परे) घोषित किया गया तथा पाया कि अधिनियम ने इसे अनिवार्य बना दिया है:
      • मुस्लिम अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में स्थापित किये जाने वाले संस्थान
      • प्रत्येक कक्षा में इस्लाम का अध्ययन करने वाले छात्रों को पदोन्नति दी जाएगी
    • निष्कर्ष निकाला कि आधुनिक विषय या तो नहीं थे या वैकल्पिक थे।
    • उत्तर प्रदेश सरकार को मदरसा छात्रों को औपचारिक शिक्षा में शामिल करने के लिये एक योजना बनाने का निर्देश दिया गया।
  • संबंधित घटनाक्रम:
    • NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) ने निम्नलिखित को पत्र जारी किया:
      • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का अनुपालन न करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द की जाए।
      • सभी मदरसों का निरीक्षण किया जाए।
    • उच्चतम न्यायालय ने NCPCR के इन संचारों पर रोक लगा दी।
  • याचिकाकर्ताओं की दलील:
    • वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने तर्क दिया:
      • उच्च न्यायालय ने अधिनियम के उद्देश्य का दोषपूर्ण निर्वचन किया।
      • मदरसों में आधुनिक विषयों (गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान) की शिक्षा दी जाती थी।
      • NCERT की पाठ्यपुस्तकों का प्रयोग किया जाता था।
      • बोर्ड केवल प्रमाणपत्र जारी करता था, विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं।
  • राज्य की स्थिति:
    • यूपी सरकार ने 2004 अधिनियम की संवैधानिकता का समर्थन किया।
    • तर्क दिया कि आंशिक संवैधानिक उल्लंघनों के लिये पूरे विधान को रद्द नहीं किया जा सकता।
    • शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने में अधिनियम की नियामक भूमिका पर बल दिया।
  • वित्तपोषण संरचना:
    • राज्य केवल शिक्षकों के वेतन का प्रावधान करता था।
    • मदरसों ने अन्य व्यय (छात्रावास, यात्रा) स्वतंत्र रूप से प्रबंधित किये।
    • इस वित्त पोषण संरचना ने संविधान के अनुच्छेद 28 के अंतर्गत उनके वर्गीकरण को प्रभावित किया।

न्यायिक टिप्पणी

  • धर्मनिरपेक्षता एवं विनियमन पर:
    • CJI ने इस बात पर बल दिया कि धार्मिक संस्थानों को विनियमित करने वाले विधान स्वतः ही धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन नहीं करते हैं।
    • धार्मिक संस्थानों को विनियमित करने वाले विभिन्न राज्यों के हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियमों के साथ समानताएँ बताईं।
    • इस बात पर बल दिया कि "धर्मनिरपेक्षता का मतलब है जियो और जीने दो"।
  • शिक्षा मानकों पर:
    • बच्चों को योग्य नागरिक बनाने के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना राज्य का कर्त्तव्य है।
    • इस बात पर बल दिया गया कि धार्मिक संस्थाएं केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं हैं।
    • इस बात पर बल दिया गया कि शैक्षिक मानकों को बनाए रखने के लिये अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत राज्य के पास नियामक शक्तियाँ हैं।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 30 जो समुदायों को धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने की अनुमति देता है।
    • राज्य द्वारा वित्तपोषित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा के संबंध में अनुच्छेद 28 के प्रावधानों पर ध्यान दिया गया।
    • इस बात पर बल दिया गया कि अधिनियम को पूरी तरह से हटाना राष्ट्रीय हितों के लिये प्रतिकूल होगा।
  • व्यावहारिक निहितार्थ पर:
    • चेतावनी दी गई कि अधिनियम को खत्म करने से मदरसे खत्म नहीं होंगे, बल्कि वे अनियमित हो जाएंगे।
    • सुझाव दिया गया कि विनियमन से धार्मिक शिक्षा को संरक्षित करते हुए छात्रों को मुख्यधारा में लाने में सहायता मिलेगी।
    • उन्होंने अलग-अलग शैक्षणिक धाराओं को एक साथ लाने के महत्त्व पर बल दिया, न कि अलग-अलग क्षेत्रों में अलगाव पैदा करने पर।

वे कौन से आधार हैं जिन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 को रद्द कर दिया?

धर्मनिरपेक्षता सिद्धांत का उल्लंघन:

  • उच्च न्यायालय ने पाया कि इस्लामी धार्मिक शिक्षा को अनिवार्य बनाकर तथा आधुनिक विषयों को वैकल्पिक रखकर अधिनियम ने धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन किया है, जिसके अनुसार राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिये।

भेदभावपूर्ण शैक्षिक ढाँचा:

  • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम ने राज्य की नीति के माध्यम से एक विशेष धर्म का पक्ष लेते हुए भेदभावपूर्ण शैक्षिक ढाँचे का निर्माण किया है, जो धार्मिक तटस्थता बनाए रखने के राज्य के कर्त्तव्य के विरुद्ध है।

शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन:

  • यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 21A एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लंघन करता पाया गया, क्योंकि मदरसा पाठ्यक्रम 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये अपेक्षित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानकों को पूरा नहीं करता था।

UGC अधिनियम का विवाद:

  • उच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि मदरसा बोर्ड की डिग्री (जैसे कामिल एवं फाज़िल) प्रदान करने की शक्ति, UGC अधिनियम 1956 के साथ विरोधाभासी है, जो विशेष रूप से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों को डिग्री प्रदान करने के लिये अधिकृत करता है।

अपर्याप्त आधुनिक शिक्षा:

  • न्यायालय ने मदरसा छात्रों के लिये व्यापक आधुनिक शिक्षा सुनिश्चित न करने के लिये अधिनियम की आलोचना की तथा कहा कि आधुनिक विषयों की तुलना में धार्मिक शिक्षा पर अधिक बल देने से छात्रों के शैक्षिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

शैक्षिक मानकों का गैर-अनुपालन:

  • उच्च न्यायालय ने पाया कि यह अधिनियम विधान द्वारा अपेक्षित मूलभूत शैक्षिक मानकों को पूरा करने में विफल रहा है, विशेष रूप से छात्रों के समग्र विकास के लिये आवश्यक आधुनिक विषयों की पर्याप्त कवरेज सुनिश्चित करने में।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004

परिचय:

  • यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 एक महत्त्वपूर्ण विधायी ढाँचा है जिसका उद्देश्य भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मदरसों की शिक्षा प्रणाली को विनियमित करना एवं बढ़ावा देना है।
  • यह अधिनियम मदरसा शिक्षा के लिये एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करने का प्रयास करता है, यह सुनिश्चित करता है कि ये संस्थान कुछ शैक्षिक मानकों का पालन करते हुए अपनी अनूठी सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान को भी बनाए रखें।
  • यह अधिनियम मदरसा शिक्षा को राज्य के व्यापक शैक्षिक परिदृश्य के साथ एकीकृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे इन संस्थानों में नामांकित छात्रों के लिये शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

अधिनियम के प्रावधान

  • बोर्ड की स्थापना: अधिनियम उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना करता है, जो राज्य में मदरसा शिक्षा के प्रशासन एवं विनियमन की देखरेख के लिये उत्तरदायी है।
  • पाठ्यक्रम विकास: बोर्ड को एक मानकीकृत पाठ्यक्रम विकसित करने का कार्य सौंपा गया है जिसमें धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष दोनों विषयों को शामिल किया गया है, ताकि छात्रों के लिये एक समग्र शैक्षिक अनुभव सुनिश्चित हो सके।
  • मान्यता एवं संबद्धता: यह अधिनियम मदरसों की मान्यता एवं संबद्धता के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे उन्हें बोर्ड द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के तहत कार्य करने की अनुमति मिलती है। मदरसा शिक्षा की वैधता एवं विश्वसनीयता के लिये यह मान्यता आवश्यक है।
  • परीक्षाएँ एवं प्रमाणन: बोर्ड उन छात्रों के लिये परीक्षाएँ आयोजित करने तथा प्रमाण पत्र जारी करने के लिये उत्तरदायी है जो संबद्ध मदरसों में अपनी शिक्षा पूरी करते हैं, जिससे उनकी आगे की शिक्षा एवं रोज़गार के अवसरों में सुविधा होती है।
  • वित्तीय सहायता: अधिनियम में मदरसों को वित्तीय सहायता एवं अनुदान के प्रावधानों की रूपरेखा दी गई है, जिससे उन्हें बुनियादी ढाँचे, संसाधनों एवं समग्र शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता मिलेगी।
  • शिक्षक प्रशिक्षण एवं योग्यता: अधिनियम में मदरसों में योग्य शिक्षकों के महत्त्व पर बल दिया गया है तथा उनके प्रशिक्षण एवं व्यावसायिक विकास के लिये प्रावधान शामिल हैं।

मदरसा शिक्षा पर प्रभाव

  • यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004 का उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
  • एक नियामक ढाँचा स्थापित करके, अधिनियम ने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, समावेशिता को बढ़ावा देने तथा यह सुनिश्चित करने में सहायता की है कि छात्रों को एक अच्छी शिक्षा मिले।
  • इसने मदरसा छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में एकीकृत करने में भी सहायता की है, जिससे उन्हें उच्च शिक्षा एवं रोजगार के बेहतर अवसर मिले हैं।

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता

परिचय:

  • धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य धर्म को राजनीतिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं से अलग करना है।
  • धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान में निहित एक मौलिक सिद्धांत है, जो सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रुख बनाए रखने के लिये देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • भारतीय संविधान में, इसका तात्पर्य है कि राज्य सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करता है तथा किसी भी धर्म के साथ पक्षपात या भेदभाव नहीं करता है।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 14: समानता का अधिकार
    • अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को विधि के समक्ष समानता और विधियों के समान संरक्षण की गारंटी देता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
    • यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसके धार्मिक विश्वासों के आधार पर भेदभाव न किया जाए।
  • अनुच्छेद 15: भेदभाव का निषेध
    • अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह अनुच्छेद राज्य की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को सशक्त करता है, यह सुनिश्चित करके कि व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाता है, चाहे उनकी धार्मिक संबद्धता कुछ भी हो।
  • अनुच्छेद 25: धर्म की स्वतंत्रता
    • अनुच्छेद 25 व्यक्तियों को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने तथा उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है।
    • यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन है, यह सुनिश्चित करता है कि धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न करे।
  • अनुच्छेद 26: धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता
    • अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को धर्म के मामलों में अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है।
    • यह प्रावधान समुदायों को राज्य के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे का पालन करते हुए अपनी धार्मिक प्रथाओं को बनाए रखने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों के अधिकार
    • अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा उनका प्रशासन करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • यह अनुच्छेद धार्मिक अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकारों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण है, जिससे समावेशी समाज को बढ़ावा मिलता है।

निष्कर्ष

उच्चतम न्यायालय की स्थिति भारत के धर्मनिरपेक्ष ढाँचे में धार्मिक स्वतंत्रता एवं शैक्षिक मानकों के बीच संतुलन को प्रकटित करती है। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि मदरसा नियमों को पूरी तरह से समाप्त करने के बजाय, धार्मिक संस्थानों का सम्मान करते हुए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने वाली निगरानी बनाए रखना अधिक लाभकारी है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य भारत की विविध धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए छात्रों को मुख्यधारा में लाना है।