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आपराधिक कानून
अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024
« »05-Sep-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024 को स्वीकृति दे दी है, जो राज्य में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से एक नया विधान है। यह विधेयक गंभीर अपराधों के लिये सख्त सज़ा का प्रावधान करता है और जाँच के लिये नई समय-सीमा निर्धारित करता है। यह विधान हाल ही में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार तथा हत्या की घटना के उपरांत लाया गया है।
भारतीय दण्ड संहिता, (IPC) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की बलात्कार से संबंधित प्रासंगिक धाराएँ क्या हैं?
BNS की धारा |
I IPC की धारा |
विवरण |
नोट |
63 |
375 |
बलात्कार की परिभाषा |
BNS में अपवाद 2: पत्नी की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिये (IPC: 15 वर्ष) |
64 |
376(1) और(2) |
बलात्कार का दण्ड |
|
65(1) |
376(3) |
16 वर्ष से कम आयु की महिला से बलात्कार के लिये दण्ड |
|
65(2) |
376AB |
12 वर्ष से कम आयु की महिला से बलात्कार का दण्ड |
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66 |
376A |
पीड़ित की मृत्यु कारित करने या उसे लगातार निष्क्रिय अवस्था में रखने के लिये दण्ड |
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67 |
376B |
अलगाव के दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना |
|
68 |
376C |
अधिकार प्राप्त व्यक्ति द्वारा यौन संबंध बनाना |
|
69 |
NA |
धोखे से यौन संबंध बनाने पर दण्ड |
BNS में नया परिचय |
70(1) |
376D |
सामूहिक बलात्कार का अपराध |
|
70(2) |
NA |
18 वर्ष से कम उम्र की महिला के साथ सामूहिक बलात्कार |
IPC की धारा 376DA और 376DB को प्रतिस्थापित करता है |
71 |
376 E |
बार-बार अपराध करने वालों के लिये दण्ड |
|
72 |
228A |
बलात्कार पीड़िता की पहचान प्रकट न करना |
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अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024 में प्रस्तावित प्रमुख संशोधन क्या हैं?
- मृत्यु दण्ड:
- इस विधेयक में बलात्कार के मामले में पीड़िता की मृत्यु कारित करने या उसे अचेत अवस्था में छोड़ने के लिये मृत्युदण्ड का प्रावधान किया गया है।
- जाँच समय-सीमा:
- बलात्कार के मामलों की जाँच प्रारंभिक रिपोर्ट (FIR) मिलने के के 21 दिनों के भीतर पूरी हो जानी चाहिये।
- अपराजिता टास्क फोर्स:
- राज्य सरकार जाँच को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिये राज्य पुलिस बल में से एक विशेष बल 'अपराजिता टास्क फोर्स' का गठन करेगी।
- प्रस्तावित संशोधन (विचाराधीन):
- यौन उत्पीड़न के मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने से प्रतिषेध करने वाले पुलिस अधिकारियों के लिये अनिवार्य दण्ड।
- कार्यान्वयन:
- विधेयक को विधानसभा द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है और अब कार्यान्वयन के लिये राज्यपाल की स्वीकृति का इंतज़ार है।
- विस्तार:
- इस विधेयक का उद्देश्य पश्चिम बंगाल में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों के प्रति न्यायिक प्रणाली की प्रतिक्रिया को सुदृढ़ करना है।
- केंद्रीय विधानों के साथ तुलना:
- मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि यह विधेयक देश के बाकी भागों के लिये एक मॉडल के रूप में काम कर सकता है, जिसका अर्थ है कि इसमें केंद्रीय विधानों की तुलना में अधिक सख्त प्रावधान हो सकते हैं।
- प्रस्तावित संशोधनों की समीक्षा:
- राज्य सरकार विपक्ष द्वारा प्रस्तावित संशोधनों का अध्ययन करेगी तथा उनकी तुलना भारतीय न्याय संहिता (BNS) के प्रावधानों से करेगी।
अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024 में प्रस्तावित विधिक प्रावधान क्या हैं?
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 64(1) में संशोधन:
- BNS, 2023 की धारा 64 की उपधारा (1) में, "एक अवधि के लिये कठोर कारावास जो दस वर्ष से कम नहीं होगा, परंतु जो उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा, और अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्: —
- "आजीवन कठोर कारावास, जिसका अर्थ होगा व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कठोर कारावास एवं अर्थदण्ड, या मृत्युदण्ड"।
- BNS, 2023 की धारा 64 की उपधारा (1) में, "एक अवधि के लिये कठोर कारावास जो दस वर्ष से कम नहीं होगा, परंतु जो उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कारावास तक बढ़ाया जा सकेगा, और अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्: —
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64(2) में संशोधन:
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64 की उपधारा (2) में, "कठोर आजीवन कारावास, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कठोर कारावास होगा और वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—
- "आजीवन कठोर कारावास, जिसका अर्थ होगा उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कठोर कारावास एवं अर्थदण्ड, या मृत्युदण्ड"।
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 64 की उपधारा (2) में, "कठोर आजीवन कारावास, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कठोर कारावास होगा और वह अर्थदण्ड से भी दण्डनीय होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 66 में संशोधन:
- BNS, 2023 की धारा 66 में, "एक अवधि के लिये कठोर कारावास जो 20 वर्ष से कम नहीं होगा, परंतु जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास, या मृत्यु होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा”, अर्थात्–
- "आजीवन कठोर कारावास, जिसका अर्थ होगा उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवनकाल के लिये कठोर कारावास एवं अर्थदण्ड, या मृत्युदण्ड"।
- BNS, 2023 की धारा 66 में, "एक अवधि के लिये कठोर कारावास जो 20 वर्ष से कम नहीं होगा, परंतु जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास, या मृत्यु होगा" शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित प्रतिस्थापित किया जाएगा”, अर्थात्–
अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024 के चरण और निहितार्थ क्या हैं?
- भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 254(2) के अनुसार, अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक, 2024, पश्चिम बंगाल विधान सभा द्वारा पारित होने के बाद, सबसे पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री सी.वी. आनंद बोस के समक्ष उनके विचार एवं स्वीकृति के लिये प्रस्तुत किया जाएगा।
- राज्यपाल की स्वीकृति मिलने पर विधेयक भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जाएगा, क्योंकि इसमें ऐसे प्रावधान हैं जो इस विषय पर संसद द्वारा बनाए गए विधानों के प्रतिकूल प्रतीत होते हैं।
- यह विधेयक तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक इसे भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त नहीं हो जाती।
- यदि विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है तो यह पश्चिम बंगाल राज्य में लागू हो जाएगा, भले ही यह उसी विषय पर संसद द्वारा बनाए गए किसी विधान के प्रतिकूल हो।
- यह विधान केवल पश्चिम बंगाल राज्य में ही प्रभावी होगा तथा इसका लागू होना राज्य के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार से बाहर नहीं होगा।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति के बावजूद, संसद को उसी विषय के संबंध में कोई भी विधान बनाने की शक्ति बनी रहेगी, जिसमें पश्चिम बंगाल विधान सभा द्वारा बनाए गए विधान में परिवर्द्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करने वाला विधान भी शामिल है।
निष्कर्ष:
अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक पश्चिम बंगाल में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है, परंतु इसने एक विवाद भी उत्पन्न कर दिया है। जबकि समर्थक इसे न्याय एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक उपाय के रूप में देखते हैं, आलोचक मौजूदा केंद्रीय विधानों को देखते हुए इसकी आवश्यकता पर प्रश्न उठाते हैं। विधेयक के पारित होने से राज्य में अपराध रिपोर्टिंग, विधिक प्रवर्तन प्रथाओं और राजनीतिक उत्तरदायित्व के विषय में व्यापक चर्चाएँ आरंभ हो गई हैं।