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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

रोहिंटन फली नरीमन

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 27-Dec-2023

परिचय:

न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता और भारत के उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं। 13 अगस्त, 1956 को जन्मे न्यायमूर्ति नरीमन एक समृद्ध कानूनी विरासत वाले परिवार से हैं; उनके पिता, फली सैम नरीमन, एक प्रसिद्ध अधिवक्ता और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल हैं। न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन के शानदार कानूनी कॅरियर को उनकी विद्वता, सत्यनिष्ठा और न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता द्वारा चिह्नित किया गया है।

कैसा रहा रोहिंटन नरीमन का कॅरियर?

  • न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय के कैंपस लॉ सेंटर से विधि में स्नातक की डिग्री हासिल की और अपनी स्नातक कक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया।
  • इसके बाद, उन्होंने शैक्षणिक वर्ष 1980-81 में हार्वर्ड लॉ स्कूल से मास्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की।
  • उन्होंने वर्ष 1979 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया में भी दाखिला लिया।
  • मुख्य न्यायाधीश मनेपल्ली नारायण राव वेंकटचलैया ने उन्हें वर्ष 1993 में वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया था जब वह सिर्फ 37 वर्ष के थे।
  • 23 जुलाई, 2011 को उन्हें भारत का सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया।
  • उन्होंने 7 जुलाई, 2014 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की भूमिका संभाली, जो बार से सीधे उच्चतम न्यायालय में पदोन्नति का पाँचवाँ उदाहरण था।
  • 12 अगस्त, 2021 को 65 वर्ष की अनिवार्य सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुँचने पर उनका कार्यकाल समाप्त हो गया।

रोहिंटन एफ. नरीमन के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज़ लिमिटेड बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (2010):
    • इस कॉरपोरेट विवाद में न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड के वरिष्ठ वकील के रूप में पेश हुए।
    • इस निर्णय का अंबानी भाइयों के बीच प्राकृतिक गैस आपूर्ति विवाद पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
  • शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017):
    • इस ऐतिहासिक मामले में, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन उस 5 न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने 3:2 के बहुमत से एक साथ तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन घोषित किया था।
    • यह निर्णय लैंगिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
    • इस मामले में, न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने कहा कि "तीन तलाक तत्काल और अप्रतिसंहरणीय है, यह स्पष्ट है कि पति व पत्नी के बीच उनके परिवारों के दो मध्यस्थों द्वारा सुलह का कोई भी प्रयास, जो वैवाहिक बंधन को बचाने के लिये आवश्यक है, कभी नहीं हो सकता है।"
    • उन्होंने यह भी कहा, "कोई प्रथा केवल इसलिये धर्म की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर लेती क्योंकि इसकी अनुमति है"।
  • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ (2017):
    • इस महत्त्वपूर्ण मामले में, न्यायमूर्ति नरीमन उस नौ-न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने निजता के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार घोषित किया था।
    • इस निर्णय ने डिजिटल युग में व्यक्तिगत निजता की सुरक्षा की नींव रखी।
    • न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने निजता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाने पर ज़ोर दिया, उन्होंने कहा कि संविधान के मौलिक अधिकार के अध्याय में ऐसे अधिकार की मान्यता केवल एक मान्यता है कि बहुमत सरकारों के बदलते रुख के बावजूद ऐसा अधिकार मौजूद है।
      • कानून मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं; वे उनका उल्लंघन भी कर सकते हैं
    • यदि कोई मौजूदा कानून या भविष्य में बनाया जाने वाला कोई कानून निजता के अपरिहार्य अधिकार का उल्लंघन है, तो उच्चतम न्यायालय को ऐसे कानून को ऐसे मौलिक अधिकार के विरुद्ध परीक्षण करने की आवश्यकता होगी और यदि यह पाया जाता है कि बिना किसी प्रतिकूल सामाजिक या लोक हित के इस तरह के अधिकार का उल्लंघन होता है, तो इस न्यायालय का यह कर्त्तव्य होगा कि वह निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने वाले ऐसे कानून को अमान्य घोषित कर दे।
  • इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (2018):
    • न्यायमूर्ति नरीमन उस पीठ का हिस्सा थे जिसने केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाला ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था।
    • इस निर्णय ने समानता के सिद्धांतों को बरकरार रखा और उस भेदभावपूर्ण प्रथा को समाप्त कर दिया, जो मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से रोकती थी।
  • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018):
    • न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की पीठ के साथ उच्चतम न्यायालय ने जारकर्म कानून, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 497 को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह कानून महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण था।
  • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018):
    • मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर, डाॅ. डी. वाई. चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने IPC की धारा 377 को इस हद तक असंवैधानिक ठहराया कि इसने समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को अपराध घोषित कर दिया।
    • न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन ने यह भी कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत समलैंगिकता एक मानसिक बीमारी नहीं है।
    • उन्होंने धारा 377 को असंवैधानिक ठहराते हुए यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुप्रयोग पर योग्याकार्ता सिद्धांतों का हवाला दिया।