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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

वी. आर. कृष्ण अय्यर

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 06-Feb-2024

न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर कौन थे?

न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर एक प्रख्यात भारतीय विधिवेत्ता थे जिनके विधि क्षेत्र में योगदान ने भारतीय न्यायिक प्रणाली पर एक अमिट छाप छोड़ी है। वैद्यनाथपुरा राम कृष्ण अय्यर, जिन्हें न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 15 नवंबर, 1914 को केरल, भारत में हुआ था और वे भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में प्रसिद्ध हुए।

न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर का कॅरियर कैसा रहा?

  • न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर की शिक्षा थालास्सेरी के बेसल इवेंजेलिकल मिशन पारसी हाई स्कूल, पलक्कड़ के सरकारी विक्टोरिया कॉलेज, अन्नामलाई विश्वविद्यालय और चेन्नई के डॉ. अंबेडकर सरकारी लॉ कॉलेज में हुई।
  • उन्होंने वर्ष 1938 में मालाबार के थालास्सेरी में अपने पिता के चैंबर में लॉ प्रैक्टिस शुरू की।
  • वर्ष 1948 में, पूछताछ के दौरान पुलिस की बर्बरता पर आपत्ति जताने के बाद, उन्हें कम्युनिस्टों की सहायता करने के झूठे आरोप में एक महीने के लिये जेल में रखा गया था।
  • वह वर्ष 1952 में मद्रास विधान सभा के लिये चुने गए।
  • वर्ष 1968 में, उन्हें केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने कई वर्षों तक विशिष्टता के साथ सेवा की।
  • वर्ष 1973 में, उन्हें उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत किया गया, जहाँ उन्होंने न्याय और समानता के लिये अपना धर्मयुद्ध जारी रखा।
  • उनके निर्णयों में समानुभूति की गहरी भावना और भारतीय समाज की जटिलताओं की गहरी समझ झलकती थी।
  • वह वर्ष 1980 में उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त हुए लेकिन दिसंबर, 2014 में अपने निधन तक कानूनी वकालत और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल रहे।

न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • मुंबई कामगार सभा, बॉम्बे बनाम एम/एस अब्दुलभाई फैजुल्लाभाई एवं अन्य (1976):
    • न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर भारत में जनहित याचिका शुरू करने का विचार लेकर आए।
    • न्यायमूर्ति अय्यर ने लोक हित के बारे में भी बात की, निर्णय में कहा गया कि “लोक हित को हमारी सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में लोकस स्टैंडी (सुने जाने का अधिकार) के व्यापक निर्माण द्वारा बढ़ावा दिया जाता है और वैचारिक अक्षांशवाद उच्च न्यायालयों को लागू करने के अधिकार के वैयक्तिकरण के साथ स्वतंत्रता लेने की अनुमति देता है जहाँ उपचार को काफी संख्या में लोग साझा करते हैं, खासकर जब वे कमज़ोर होते हैं।''
  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978):
    • इस अभूतपूर्व मामले में, न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे का विस्तार किया।
    • इस मामले में भारत सरकार द्वारा लगाए गए पासपोर्ट ज़ब्ती और यात्रा प्रतिबंधों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
    • न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर के निर्णय ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अभिन्न पहलू के रूप में विदेश यात्रा के मौलिक अधिकार पर ज़ोर दिया, जिससे बाद के मामलों में अनुच्छेद 21 की व्यापक व्याख्या का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1979):
    • इस मामले में न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर ने कहा कि कैदियों को मनुष्य माना जाना चाहिये।
    • यह ऐतिहासिक मामला कैदियों के अधिकारों के बारे में है।
  • सी. बी. मुथम्मा बनाम भारत संघ एवं अन्य (1979):
    • इस मामले में भारतीय विदेश सेवा (भर्ती संवर्ग, वरिष्ठता और पदोन्नति) नियम, 1961 के नियम 18 को चुनौती दी गई थी जिसमें प्रावधान था कि कोई भी विवाहित महिला सेवा में नियुक्त होने के अधिकार की हकदार नहीं होगी।
    • न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर की पीठ ने यह भी कहा कि, "इस नियम में आघातपूर्ण पारदर्शिता के साथ महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव पाया जाता है"।
      • यदि किसी महिला सदस्य को विवाह करने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी, तो किसी पुरुष सदस्य के विवाह करने से, वही जोखिम सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
      • यदि सेवा की किसी महिला सदस्य की पारिवारिक और घरेलू प्रतिबद्धताएँ कर्त्तव्यों के कुशल निर्वहन में बाधा बन सकती हैं, तो पुरुष सदस्य के मामले में भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • एकल परिवारों, अंतरमहाद्वीपीय विवाहों और अपरंपरागत व्यवहार के इस दौर में, किसी भी जाति के प्रतिष्ठित व्यक्ति के प्रति स्पष्ट पूर्वाग्रह (naked bias) को समझने में विफल रहता है।
  • नगर परिषद, रतलाम बनाम श्री वर्धीचंद एवं अन्य (1980):
    • इस मामले में न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर ने कहा कि "जहाँ भी कोई सार्वजनिक उपद्रव होता है, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 133 की उपस्थिति महसूस की जानी चाहिये और कोई भी विपरीत मत विधि के विपरीत है"।