ओमप्रकाश सैनी बनाम जय शंकर चौधरी
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आपराधिक कानून

ओमप्रकाश सैनी बनाम जय शंकर चौधरी

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 23-Jul-2024

परिचय:

यह मामला CrPC की धारा 389 के आधार पर अपीलों का निर्धारण करने में अपीलीय न्यायालयों के लिये एक सिद्धांत का निर्धारण करता है।

  • इस मामले के अनुसार CrPC की धारा 389 के अधीन सज़ा को निलंबित करने के आदेश में त्रुटि अवश्य होनी चाहिये।

तथ्य:

  • अपीलकर्त्ता ने प्रतिवादियों द्वारा अपने भाई की हत्या के लिये शिकायत दर्ज कराई थी।
  • अभियोजन की प्रक्रिया का पालन किया गया तथा ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता के पक्ष में अपना निर्णय दिया, जिसमें अभियुक्तों पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 34 के साथ धारा 302, 120-B एवं 506 तथा शस्त्र अधिनियम, 1959 (AA) की धारा 27 के अधीन आरोप निर्धारित किये गए।
  • ट्रायल कोर्ट के निर्णय से असंतुष्ट होकर प्रतिवादियों ने ज़मानत पर रिहा किये जाने तथा ट्रायल कोर्ट के आदेश को निलंबित करने के लिये पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
    • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों को ज़मानत दे दी तथा रिपोर्ट दाखिल करने में अत्यधिक विलंब के कारण ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश को निलंबित कर दिया, जिसके कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई।
  • उच्च न्यायालय के निर्णय से असंतुष्ट होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या उच्च न्यायालय ने विवादित निर्णय पारित करने में कोई त्रुटि कारित की है?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधीनस्थ न्यायालय द्वारा पारित निर्णय की वैधता की जाँच करने के लिये, त्रुटि उनके ही समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिये।
  • CrPC की धारा 389 के अधीन उसके निर्णय को अमान्य करने के लिये कुछ बहुत ही स्पष्ट एवं प्रथम दृष्टया तथ्य होने चाहिये।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि अपीलीय न्यायालय द्वारा साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिये तथा आदेश पारित करते समय उच्च न्यायालय द्वारा विचार किये गए पहलू इस स्तर पर विचार करने के लिये उपयुक्त नहीं थे।

निष्कर्ष:

उच्चतम न्यायालय ने वर्तमान अपील को स्वीकार कर लिया तथा माना कि उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों की सज़ा के मूल आदेश को निलंबित करने तथा उन्हें ज़मानत पर रिहा करने में त्रुटि कारित की थी।