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सिविल कानून

CPC का आदेश XVI-A

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 03-Oct-2024

परिचय:

  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XVI-A में कारागारों में परिरुद्ध या निरुद्ध साक्षी की उपस्थिति के आधार पर नियम बताए गए हैं।
  • यह आदेश में गवाही देने या साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये साक्षी की उपस्थिति का अनुरोध करने हेतु एक तंत्र स्थापित करता है।
  • इस आदेश के तहत साक्ष्य प्रस्तुत करते समय साक्षी के साथ किसी भी तरह की मनमानी या दुर्व्यवहार को रोकने के लिये विस्तृत नियम दिये गए हैं।

निरुद्ध का अर्थ:

  • निरुद्ध में वे लोग भी शामिल हैं जिन्हें किसी ऐसी विधि के तहत निरुद्ध किया गया है जो निवारक निरोध की अनुमति देते हैं।
  • यह परिभाषा CPC के आदेश XVI-A के नियम 1 के उप-नियम (a) के तहत दी गई है।

कारागार का अर्थ:

  • यह परिभाषा CPC के आदेश XVI-A के नियम 1 के उप-नियम (b) के तहत दी गई है और इसमें शामिल हैं:
    • कोई स्थान जिसे राज्य सरकार द्वारा सामान्य या विशेष आदेश द्वारा उप-कारागार घोषित किया गया हो।
    • कोई भी सुधारात्मक संस्था, बोर्स्टल संस्था या इसी प्रकार की अन्य संस्था।

CPC के आदेश XVI-A के तहत न्यायालय की शक्तियाँ और कर्त्तव्य क्या हैं?

  • साक्ष्य देने के लिये कैदियों की उपस्थिति अनिवार्य करने की शक्ति (नियम 2):
    • जब न्यायालय उचित समझे तो वह कारागार के प्रभारी अधिकारी को आदेश दे सकता है कि वह उस व्यक्ति को साक्ष्य देने के लिये पेश करे जिसे साक्षी के रूप में पेश किया जाना आवश्यक है।
    • यदि न्यायालय से कारागार की दूरी 25 किलोमीटर से अधिक है तो ऐसा नहीं किया जा सकता, जब तक कि न्यायालय यह निर्धारित न कर ले कि ऐसे व्यक्ति से पूछताछ अपर्याप्त होगी।
  • न्यायालय में संदत्त वाले व्यय (नियम 3):
    • उप-नियम (1) में निर्दिष्ट किया गया है कि जिस पक्षकार के लाभ के लिये कैदी को साक्षी के रूप में पेश करने का आदेश पारित किया गया है, वह ऐसे व्यय का संदत्त करेगा जैसा कि न्यायालय उचित समझे।
      • व्यय में आदेश के निष्पादन के साथ-साथ साक्षी के लिये उपलब्ध कराए गए अनुरक्षक की यात्रा और अन्य व्यय भी शामिल होंगे।
    • उप-नियम (2) में निर्दिष्ट किया गया है कि जब अधीनस्थ न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय को आदेश पारित किया जाना हो तो उच्च न्यायालय को ऐसे व्ययों का पैमाना तय करने की शक्ति होगी।
  • जेल में साक्षी के परीक्षण के लिये कमीशन जारी करने की शक्ति (नियम 7):
    • उप-नियम (1) में निर्दिष्ट किया गया है कि जब कैदी की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकती है तो न्यायालय उस कारागार में साक्षी के परीक्षण के लिये एक कमीशन जारी कर सकती है जहाँ वह परिरुद्ध या निरुद्ध है।
    • उप-नियम (2) में निर्दिष्ट किया गया है कि इस आदेश के तहत किसी कैदी का परीक्षण यथासंभव उसी तरह शुरू होगा जैसे कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये होता है।

राज्य सरकार की शक्ति क्या है?

  • नियम 2 (नियम 4) के प्रवर्तन से कुछ व्यक्तियों को बाहर रखने की राज्य सरकार की शक्ति:
    • उप-नियम (1) में निर्दिष्ट किया गया है कि राज्य सरकार आदेश द्वारा किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को साक्षी के लिये कारागार से निकाले जाने पर रोक लगा सकती है और नियम 2 के तहत राज्य सरकार के आदेश की तारीख से पहले या बाद में पारित कोई भी आदेश ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग पर लागू नहीं होगा।
    • उप-नियम (2) में निर्दिष्ट किया गया है कि राज्य सरकार निम्नलिखित मामलों पर ध्यान देगी:
      • अपराध की प्रकृति जिसके लिये या जिन आधारों पर व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध रखने का आदेश दिया गया है।
      • यदि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग को कारागार से बाहर निकालने की अनुमति दी जाती है तो सार्वजनिक व्यवस्था में विघ्न की संभावना हो सकती है।
      • सामान्यतः लोक हित।

कारागार प्रभारी प्राधिकारी के कर्त्तव्य क्या हैं?

  • कारागार के प्रभारी प्राधिकारी का कुछ मामलों में आदेश का पालन न करना (नियम 5):
    • जहाँ वह व्यक्ति जिसके संबंध में नियम 2 के अधीन आदेश दिया गया है:
      • जेल से संबद्ध चिकित्सा अधिकारी द्वारा प्रामाणित किया गया हो कि वह बीमारी या अशक्तता के कारण कारागार से निकाले जाने के लिये अयोग्य है।
      • मुकदमे के लिये प्रतिबद्ध है या मुकदमे के लंबित रहने या प्रारंभिक जाँच लंबित रहने तक रिमांड पर है।
      • वह उस अवधि के लिये अभिरक्षा में है जो आदेश का अनुपालन करने तथा उसे उस कारागार में वापस ले जाने के लिये अपेक्षित समय की समाप्ति से पहले समाप्त हो जाएगी जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है।
      • यदि कोई व्यक्ति नियम 4 के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा जारी आदेश के अधीन है, तो कारागार के प्रभारी प्राधिकारी को न्यायालय के आदेश का पालन करने से बचना चाहिये तथा ऐसा करने के कारणों का विवरण न्यायालय को उपलब्ध कराना चाहिये।
      • कैदी को अभिरक्षा में न्यायालय में लाया जाएगा (नियम 6):
  • पुलिस प्राधिकारी कैदी को न्यायालय के आदेशानुसार समय पर न्यायालय ले जाएगा और उसका परीक्षण होने तक तथा न्यायालय प्राधिकारी द्वारा उसे वापस कारागार ले जाने का आदेश दिये जाने तक उसे न्यायालय परिसर के पास ही रखेगा।

निष्कर्ष:

किसी भी मामले में कैदी को साक्षी बनाते समय कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना महत्त्वपूर्ण है। यह जनता के हित में होना चाहिये और प्रक्रिया का उचित सावधानी तथा तत्परता से पालन किया जाना चाहिये अन्यथा यह समाज के लिये हानिकारक हो सकता है क्योंकि कभी-कभी कैदी कारागार से बाहर निकाले जाने पर भागने की कोशिश करते हैं। प्रभारी प्राधिकारी को किसी भी अनहोनी को रोकने के लिये राज्य सरकार या न्यायालयों के आदेशों का भी पालन करना चाहिये।