होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872)
आपराधिक कानून
सह-अपराधी
« »07-Dec-2023
परिचय:
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 133 सह-अपराधी की अवधारणा से संबंधित है। सह-अपराधी शब्द को अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है।
- सह-अपराधी का अर्थ वह व्यक्ति है जिसने किसी अपराध में भाग लिया है, जब कोई अपराध एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है और उसमें भाग लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति सह-अपराधी होता है।
धारा 133, IEA:
- IEA की धारा 133 में कहा गया है कि एक सह-अपराधी एक अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध एक सक्षम गवाह होगा; और कोई दोषसिद्धि केवल इसलिये अवैध नहीं होती है क्योंकि यह किसी सह-अपराधी की अपुष्ट गवाही पर आगे बढ़ती है।
सह-अपराधी के प्रकार:
- प्रथम श्रेणी का मुख्य अपराधी:
- प्रथम श्रेणी का मुख्य अपराधी वह व्यक्ति होता है जो वास्तव में अपराध करता है।
- ऐसे कई व्यक्ति हो सकते हैं जिन्होंने एक साथ अपराध किया हो, उनमें से प्रत्येक मुख्य अपराधी होगा।
- दूसरी श्रेणी का मुख्य अपराधी:
- दूसरी श्रेणी का मुख्य अपराधी वह व्यक्ति होता है जो या तो अपराध के लिये उकसाता है या सहायता करता है।
- इसका तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो अपराध स्थल पर मौजूद होता है और किसी भी तरह से मुख्य अपराधी की सहायता करता है।
- तथ्य से पहले उपसाधन:
- ये वे व्यक्ति होते हैं जो किसी को अपराध को करने के लिये उकसाते हैं, प्रेरित करते हैं, उपलब्ध कराते हैं या सलाह देते हैं और वे स्वयं अपराध में भाग नहीं लेते हैं।
- तथ्य के बाद उपसाधन:
- एक व्यक्ति इस तथ्य के बाद उपसाधन होता है कि जब कोई व्यक्ति यह जानता है कि अभियुक्त ने कुछ अपराध किया है तो वह उससे मिलता है, उसे सांत्वना देता है या उसे अपराध की सज़ा से बचने में सहायता करता है या उसे गिरफ्तारी से बचने में सहायता करता है, अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग करके उसे भागने देता है, या उसकी गिरफ्तारी का विरोध करता है।
सह-अपराधी की गवाही का साक्ष्यात्मक मूल्य:
- जब कोई सह-अपराधी गवाही देता है, तो इसे दोषसिद्धि के लिये विश्वसनीय साक्ष्य के रूप में नहीं देखा जाता है, और इसे अन्य तात्विक साक्ष्यों से सत्यापित करना पड़ता है; इसे संपुष्टि कहा जाता है।
- सह-अपराधी द्वारा दिये गए साक्ष्यों पर विचार न करने के पीछे का कारण स्वयं को बचाना होता है क्योंकि वह सह-अभियुक्त के विरुद्ध जा सकता है, किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि न्यायालय सह-अपराधी के साक्ष्यों पर भरोसा नहीं कर सकती है।
- एक सह-अपराधी अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध एक सक्षम गवाह होगा और एक सह-अपराधी की गवाही के आधार पर अभियुक्त को मिलने वाली सज़ा वैध है, भले ही इसकी तात्विक विशिष्टताओं में पुष्टि न की गई हो।
संबंधित निर्णयज विधि:
- चंदन बनाम एम्परर (1930) मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सह-अपराधी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो किसी अपराध को अंजाम देने में किसी अपराधी या अपराधियों के साथ जुड़ा हुआ होता है या जो जानबूझकर या स्वेच्छा से अपराध करने में दूसरों की सहायता या सहयोग करता है।
- शंकर बनाम तमिलनाडु राज्य (1994) में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब कोई सह-अपराधी सरकारी गवाह बन जाता है, तो वह अंततः अभियोजन गवाह बन जाता है।
- राजस्थान राज्य बनाम बाल वीरा (2014) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक सह-अपराधी को तब तक अयोग्य माना जाएगा जब तक कि उसके द्वारा दिये गए साक्ष्य या गवाही की पुष्टि किसी अन्य तात्विक साक्ष्य से नहीं हो जाती।