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सिविल कानून

संपत्ति-अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय का करार

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 09-Dec-2024

परिचय

संपत्ति-अंतरण अधिनियम, 1882, संपत्ति अधिकारों के अंतरण के नियंत्रण से संबंधित भारत का एक महत्त्वपूर्ण विधान है।

  • यह विक्रय और विक्रय के करार सहित विभिन्न प्रकार के संपत्ति संव्यवहार की रूपरेखा प्रदान करता है।
  • विक्रय, स्वामित्व का एक निश्चित अंतरण है, जबकि विक्रय का करार भविष्यवर्ती तारीख में स्वामित्व अंतरित करने का वादा है।

विक्रय

परिचय:

  • संपत्ति-अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 के अनुसार, “विक्रय” ऐसी कीमत के बदले में स्वामित्व का अंतरण है जो दी जा चुकी हो, या जिसके देने का वचन दिया गया हो या जिसका कोई भाग दे दिया गया हो और किसी भाग को देने का वचन दिया गया हो।
  • इस परिभाषा में विक्रय संव्यवहार का मर्म (आत्यावश्यक शर्त) समाहित है, जिसमें विक्रेता से क्रेता को संपत्ति के अधिकारों का अंतरण शामिल है।

विक्रय के आवश्यक तत्त्व:

  • शामिल पक्षकार:
    • कम-से-कम दो पक्ष-विक्रेता और क्रेता का होना अनिवार्य है ।
  • संपत्ति:
    • विक्रय की जा रही संपत्ति अंतरणीय होनी चाहिये और विधि रूप से विक्रेता के स्वामित्व में होनी चाहिये।
  • प्रतिफलार्थ:
    • क्रेता द्वारा विक्रेता को कीमत का भुगतान या वादा किया जाना चाहिये।
  • अंतरित करने का आशय:
    • विक्रेता को संपत्ति का स्वामित्व क्रेता को अंतरित करने का आशय रखना चाहिये।
  • कब्ज़े का परिदान:
    • क्रेता को वास्तविक या आन्वयिक रूप से संपत्ति पर कब्ज़ा करना होगा।

विक्रय का करार 

परिचय:

  • संपत्ति-अंतरण अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, विक्रय के करार को "भविष्यवर्ती तारीख में संपत्ति का विक्रय या अंतरित करने का संविदा" के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • इस प्रकार के करार से तुरंत स्वामित्व का अंतरण नहीं होता है अपितु भविष्य में ऐसा किया जाने का दायित्व सृष्ट होता है।

विक्रय का करार के आवश्यक तत्त्व:

  • शामिल पक्षकार:
    • विक्रय के समान, एक विक्रेता और एक क्रेता होना चाहिये।
  • संपत्ति:
    • संपत्ति अभिज्ञेय और विधिक रूप से अंतरणीय होनी चाहिये।
  • प्रतिफलार्थ:
    • करार में भुगतान की जाने वाली कीमत निर्दिष्ट होनी चाहिये।
  • विधिक संबंध सर्जित का आशय:
    • दोनों पक्षकारों को विधिक रूप से बाध्यकारी करार करने का आशय रखना चाहिये।
  • भावी अंतरण
    • करार में स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिये कि स्वामित्व का अंतरण भविष्यवर्ती तारीख में किया जाएगा।

पार्टियों के अधिकार और दायित्व:

  • विक्रेता के अधिकार:
    • विक्रेता करार को प्रवर्तित कर सकता है और अपालन की दशा में हर्जाना मांग सकता है।
  • विक्रेता के दायित्व:
    • विक्रेता को करार के अनुसार संपत्ति अंतरित करनी होगी।
  • क्रेता के अधिकार:
    • क्रेता को संपत्ति के अंतरण की मांग करने और विशिष्ट पालन की मांग करने का अधिकार है।
  • क्रेता के दायित्व:
    • क्रेता को कीमत के भुगतान सहित करार की शर्तों को पूरा करना होगा।

विक्रय और विक्रय करार में अंतर

पहलू

विक्रय 

विक्रय करने का करार

परिभाषा 

विक्रेता से क्रेता को माल या संपत्ति के स्वामित्व का तत्काल अंतरण।

भविष्य की तारीख में संपत्ति या वस्तु का विक्रय किये जाने का वादा या संविदा।

समय

संव्यवहार की शीघ्र पूर्ति।

विक्रय को पूरा करने के लिये भविष्य की बाध्यता का सर्जन।

स्वामित्व अंतरण 

स्वामित्व एवं कब्ज़े का तत्काल अंतरण।

भविष्य के विक्रय की पूर्ति होने तक स्वामित्व विक्रेता के पास रहता है।

भुगतान

इसमें प्रायः तत्काल भुगतान शामिल होता है।

भुगतान की शर्तें भविष्य के संव्यवहार के लिये निर्दिष्ट होती हैं।

विधिक निहितार्थ

विधिक दायित्व और अधिकारों के अंतरण का तत्काल सर्जन।

भविष्य के संव्यवहार के नियमों और शर्तों को रेखांकित करने वाला विधिक रूप से बाध्यकारी संविदा।

शामिल विवरण 

स्वामित्व, कब्ज़े और अधिकार का तत्काल अंतरण।

कीमत, भुगतान की शर्तें और विक्रय की शर्तें निर्दिष्ट करता है।

उदाहरण

कार का क्रय करना और शीर्षक तथा कार तुरंत प्राप्त करना।

एक घर के क्रय के लिये एक संविदा पर हस्ताक्षर करना जो 3 माह में पूरा हो जाएगा।

निष्कर्ष:

संपत्ति-अंतरण अधिनियम के तहत विक्रय और विक्रय के करार के बीच अंतर को समझना संपत्ति संव्यवहार में शामिल किसी भी व्यक्ति के लिये आवश्यक है। विक्रय के परिणामस्वरूप स्वामित्व का तत्काल अंतरण होता है जबकि विक्रय का करार स्वामित्व हस्तांतरित करने के लिये भविष्य की बाध्यता स्थापित करता है। दोनों संव्यवहार में शामिल पक्षकारों के लिये विशिष्ट अधिकार और दायित्व होते हैं और संपत्ति अधिकारों के सुचारू अंतरण को सुनिश्चित करने के लिये विधिक ढाँचे का पालन महत्त्वपूर्ण है। सभी संव्यवहार में स्पष्टता और विधिक अनुपालन के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए यह दस्तावेज़ भारत में संपत्ति संव्यवहार की जटिलताओं से निपटने के लिये एक मूलभूत मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करता है।