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सांविधानिक विधि

COI का अनुच्छेद 136

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 11-Mar-2024

पंजाब राज्य बनाम गुरप्रीत सिंह एवं अन्य

"भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यदि किसी अभियुक्त को बरी करने से न्याय का दुरुपयोग होगा, तो न्यायालय बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है।"

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और के. वी. विश्वनाथन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने पंजाब राज्य बनाम गुरप्रीत सिंह एवं अन्य के मामले में माना है कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 136 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, यदि किसी अभियुक्त को बरी करने से न्याय का दुरुपयोग होगा, तो न्यायालय बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है।

पंजाब राज्य बनाम गुरप्रीत सिंह एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302धारा 34 के तहत अपराध के लिये दोषी ठहराया।
  • उन सभी को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई।
  • चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सभी चार अभियुक्तों को आरोपों से बरी कर दिया।
  • उच्च न्यायालय के निर्णय से व्यथित होकर उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।
  • बाद में उच्चतम न्यायालय ने अपील खारिज़ कर दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति सूर्यकांत और के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि COI के अनुच्छेद 136 के तहत, उच्चतम न्यायालय नियमित रूप से बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करता है, सिवाय इसके कि जब अभियोजन पक्ष का मामला उचित संदेह से परे अभियुक्त के अपराध को साबित करता है।
  • आगे यह माना गया कि "यदि दोषमुक्ति अप्रासंगिक आधारों पर आधारित है, यदि हाईकोर्ट खुद को ध्यान भटकाने के कारण गुमराह होने की अनुमति देता है, यदि उच्च न्यायालय ट्रायल कोर्ट द्वारा स्वीकार किये गए साक्ष्य को उचित विचार किये बिना खारिज़ कर देता है, या यदि हाईकोर्ट के त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण के कारण महत्त्वपूर्ण साक्ष्य की उपेक्षा होती है, तब यह न्यायालय न्याय के हितों को बनाए रखने और न्यायिक विवेक के भीतर किसी भी चिंता का समाधान करने के लिये हस्तक्षेप करने के लिये बाध्य है।''

COI का अनुच्छेद 136 क्या है?

परिचय:

  • यह अनुच्छेद अपील के लिये उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाज़त से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
    (1) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किये गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारण, दण्डादेश या आदेश की अपील के लिये विशेष इजाज़त दे सकेगा।
    (2) खंड (1) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वरा पारित किये गए या दिये गए किसी निर्णय, अवधारण, दण्डादेश या आदेश पर लागू नहीं होगी।

विशेषताएँ:

  • यह अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय को भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित या किये गए किसी भी कारण या मामले में किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्धारण, सज़ा या आदेश के विरुद्ध अपील करने की विशेष इजाज़त देने का विवेकाधिकार देता है।
  • यह अनुच्छेद अंतिम एवं अंतर्वर्ती दोनों आदेशों पर लागू होता है और राज्य की न्यायिक शक्ति के एक भाग के साथ निवेशित अधिकरणों पर भी लागू होता है, जिसका अर्थ अर्द्ध-न्यायिक प्राधिकरण है।
  • यह अनुच्छेद अपील करने का अधिकार नहीं देता है, बल्कि केवल विशेष इजाज़त के लिये आवेदन करने का अधिकार प्रदान करता है, जो यदि दी जाती है, तो तब तक अपील करने का अधिकार प्रदान करती है, जब तक कि इजाज़त रद्द नहीं कर दी जाती।
  • उच्चतम न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में अनुच्छेद 136 के तहत शक्ति का प्रयोग करता है, जब भी सामान्य सार्वजनिक महत्त्व के कानून का कोई प्रश्न उठता है।

निर्णयज विधि:

  • राजेश प्रसाद बनाम बिहार राज्य (2022) मामले में, इस न्यायालय ने COI के अनुच्छेद 136 के तहत बरी करने के आदेशों में अपने हस्तक्षेप का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की है। वे हैं:
    • जब उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण या तर्क विकृत समझा जाता है तो हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। ऐसा तब होता है जब उच्च न्यायालय, संदेह और अनुमान के आधार पर, साक्ष्य को खारिज़ कर देता है या जब दोषमुक्ति मुख्य रूप से अभियुक्त के पक्ष में संदेह का लाभ देने के नियम के अतिरंजित पालन में निहित होती है।
    • हस्तक्षेप की एक और परिस्थिति तब उत्पन्न होती है जब दोषमुक्ति से न्याय का दुरुपयोग हो सकता है। यह उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ उच्च न्यायालय साक्ष्य की सरसरी जाँच के माध्यम से अभियुक्त और अपराध के बीच संबंध का पता लगाता है।