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सिविल कानून
तलाक के मामलों में वाद-हेतुक
« »02-Jan-2024
हेमसिंह @ टिंचू बनाम श्रीमती भावना "एक बार जब क्रूरता साबित हो जाती है, तो तलाक लेने का वाद-हेतुक बनता है।" न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और शिव शंकर प्रसाद |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हेमसिंह @ टिंचू बनाम श्रीमती भावना के मामले में माना है कि एक बार जब क्रूरता साबित हो जाती है, तो तलाक लेने का वाद-हेतुक बनता है।
हेमसिंह @ टिंचू बनाम श्रीमती भावना मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, प्रतिवादी (पत्नी) ने क्रूरता के आधार पर विवाह के विघटन की मांग की थी।
- पारिवारिक न्यायालय के संबंधित प्रधान न्यायाधीश ने प्रतिवादी के कहने पर दोनों पक्षों के बीच विवाह को विघटित कर दिया।
- इसके बाद, अपीलकर्त्ता (पति) ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
- अपील को खारिज़ करते हुए, उच्च न्यायालय ने माना कि क्रूरता का कार्य साबित किया गया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति शिव शंकर प्रसाद की पीठ ने कहा कि एक बार जब क्रूरता पाई जाती है तो तलाक लेने का वाद-हेतुक बनता है। उसके बाद पक्षकार किस प्रकार आचरण करेंगे, यह प्रासंगिक कारक बना रह सकता है। फिर भी कानून का कोई नियम उत्पन्न नहीं हो सकता, जो न्यायालय को अन्य उपस्थित परिस्थितियों को देखे बिना पक्षकारों के बीच वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिये आदेश पारित करने का निर्देश दे सकता है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि क्रूरता के कार्य छिटपुट या एकल नहीं हैं, जिस पर आगे विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।
वाद-हेतुक क्या है?
- परिचय:
- 'वाद-हेतुक' उन तथ्यों का एक बंडल है, जिसे यदि लागू कानून के साथ देखा जाए तो वह वादी को प्रतिवादी के खिलाफ राहत का अधिकार देता है।
- दूसरे शब्दों में, यह तथ्यात्मक परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न होता है।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 20 वाद-हेतुक की अवधारणा से संबंधित है।
- CPC की धारा 20:
- इस धारा में कहा गया है कि पूर्वोक्त परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, हर वाद ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर-
(a) प्रतिवादी, या जहाँ एक से अधिक प्रतिवादी हैं वहाँ प्रतिवादियों में से हर एक वाद के प्रारंभ के समय वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिये स्वयं काम करता है; अथवा
(b) जहाँ एक से अधिक प्रतिवादी हैं वहाँ प्रतिवादियों में से कोई भी प्रतिवादी वाद के प्रारंभ के समय वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है या कारबार करता है या अभिलाभ के लिये स्वयं काम करता है, परंतु यह तब जबकि ऐसी अवस्था में या तो न्यायालय की इजाज़त दे दी है या जो प्रतिवादी पूर्वोक्त रूप में निवास नहीं करते या कारबार नहीं करते या अभिलाभ के लिये स्वयं काम नहीं करते, वे ऐसे संस्थित किये जाने के लिये उपमत हो गए हैं; अथवा
(c) वाद-हेतुक पूर्णतः या भागतः उत्पन्न होता है।
- इस धारा में कहा गया है कि पूर्वोक्त परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, हर वाद ऐसे न्यायालय में संस्थित किया जाएगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर-
- निर्णयज विधि:
- दक्षिण पूर्व एशिया शिपिंग बनाम नव भारत एंटरप्राइजेज़ (1996) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि वाद-हेतुक अनिवार्य रूप से तथ्यों का एक बंडल है जिसके कारण विवाद की उत्पत्ति हुई, और वादी को न्यायालय का रुख करने का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ। इसलिये, वाद-हेतुक में आवश्यक रूप से प्रतिवादी का एक कार्य शामिल होता है, जिसके अभाव में मुकदमा संभवतः अस्तित्व में नहीं हो सकता है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ बनाम भारत संघ एवं अन्य (2000) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि वाद-हेतुक शब्द का न्यायिक रूप से स्थापित अर्थ है। यह अधिकार के उल्लंघन या आचरण के प्रत्यक्ष कारण से संबंधित स्थितियों को संदर्भित करता है।