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आपराधिक कानून

जन्म तिथि सिद्ध करने के लिये मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र वैध

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 27-Nov-2023

श्रीमती मोबीन एवं अन्य बनाम उप. चकबंदी निदेशक और 6 अन्य

"यदि कोई ऐसा दस्तावेज़ जिसे जन्मतिथि के निर्धारण के लिये पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है, यानी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र, तो DNA टेस्ट की आवश्यकता नहीं है।"

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी

स्रोत– इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 112 के तहत माता-पिता के नाम की जाँच के लिये DNA टेस्ट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

श्रीमती मोबीन एवं अन्य बनाम उप. चकबन्दी निदेशक एवं 6 अन्य के मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • यह मामला विवादित भूमि से संबंधित है जो याकूब के नाम पर थी, जिसके तीन बेटे- शकील, जमील और फुरकान हैं।
  • सबसे बड़े बेटे शकील ने याचिकाकर्त्ता 1 से शादी की और यह प्रतिवाद किया गया कि उनकी बिना शादी के एक बेटी (याचिकाकर्त्ता 2) थी जो शकील की मृत्यु के बाद पैदा हुई थी।
  • इसलिये, शकील की वसीयत में उसका नाम नहीं लिखा गया था।
  • मामला शकील की बेटी के रूप में याचिकाकर्त्ता 2 के जनकता से संबंधित है क्योंकि प्रतिवादी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता 2 का जन्म शकील की मृत्यु के बाद याचिकाकर्त्ता 1 की दूसरी शादी से हुआ था।
  • विद्यालय से जारी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाण-पत्र के अनुसार याचिकाकर्त्ता 2 का जन्म शकील की मृत्यु के 615 दिन बाद हुआ था।

न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?

  • उच्च न्यायालय ने कहा कि "यदि कोई ऐसा दस्तावेज़ जिसे जन्मतिथि के निर्धारण के लिये पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है, यानी मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र, तो DNA टेस्ट की आवश्यकता नहीं है।"

DNA टेस्ट पर उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश क्या हैं?

अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया (2023) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने ऐसे सिद्धांत दिये जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि किन परिस्थितियों में एक नाबालिग बच्चे का DNA टेस्ट करने का निर्देश दिया जा सकता है:

  • वैवाहिक विवादों में नियमित रूप से नाबालिग बच्चे के DNA टेस्ट का आदेश नहीं दिया जाना चाहिये। बेवफाई के आरोपों से जुड़े वैवाहिक विवादों में DNA प्रोफाइलिंग के माध्यम से सबूत दिया जाना चाहिये, केवल उन मामलों में जहाँ ऐसे दावों को साबित करने का कोई अन्य तरीका नहीं होता है।
  • वैध विवाह के अस्तित्व के दौरान पैदा हुए बच्चों के DNA टेस्ट का निर्देश तभी दिया जा सकता है, जब IEA की धारा 112 के तहत उपधारणा को खारिज़ करने के लिये पर्याप्त प्रथम दृष्टया सामग्री उपलब्ध हो। इसके अलावा, यदि साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत उपधारणा का खंडन करने के लिये कोई दलील नहीं दी गई है, तो DNA टेस्ट का निर्देश नहीं दिया जा सकता है।
  • ऐसे मामले में जहाँ किसी बच्चे की जनकता सीधे तौर पर मुद्दा नहीं है, बल्कि केवल कार्यवाही के लिये संपार्श्विक है, किसी बच्चे के DNA टेस्ट को यांत्रिक रूप से निर्देशित करना किसी न्यायालय के लिये उचित नहीं होगा।
  • केवल इसलिये कि दोनों पक्षों में से किसी ने जनकता के तथ्य पर विवाद किया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि न्यायालय को विवाद को सुलझाने के लिये DNA टेस्ट या ऐसे अन्य परीक्षण का निर्देश देना चाहिये।
    • पक्षों को जनकता को साबित करने या गलत ठहराने के लिये सबूत पेश करने का निर्देश दिया जाना चाहिये और यदि न्यायालय को ऐसे सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकालना असंभव लगता है, या विवाद को DNA टेस्ट के बिना हल नहीं किया जा सकता है, तो वह DNA टेस्ट का निर्देश दे सकता है और अन्यथा नहीं।
    • दूसरे शब्दों में, केवल असाधारण और योग्य मामलों में, जहाँ विवाद को सुलझाने के लिये ऐसा परीक्षण अपरिहार्य हो जाता है, न्यायालय ऐसे परीक्षण का निर्देश दे सकता है।
  • जारकर्म को सिद्ध करने के साधन के रूप में DNA टेस्ट का निर्देश देते समय, न्यायालय को जारकर्म से पैदा हुए बच्चों पर इसके परिणामों के प्रति सचेत रहना होगा, जिसमें विरासत से संबंधित परिणाम, सामाजिक कलंक आदि शामिल हैं।

इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

  • IEA की धारा 112: विवाह के दौरान जन्म, धर्मजता का निश्चायक प्रमाण:
    • यह तथ्य कि किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माँ और किसी पुरुष के बीच वैध विवाह की निरंतरता के दौरान या उसके विघटन के दो सौ अस्सी दिनों के भीतर हुआ था, माँ अविवाहित रही, निश्चायक प्रमाण होगा कि वह उस व्यक्ति का धर्मज पुत्र है , जब तक कि यह सिद्ध न किया जा सके कि विवाह के पक्षों का किसी भी समय एक-दूसरे से कोई संपर्क नहीं था जब वह गर्भाहित किया जा सकता था।