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आपराधिक कानून
CrPC की धारा 391
« »31-Jan-2024
अजीतसिंह चेहुजी राठौड़ बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य "CrPC की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य दर्ज करने की शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब ऐसा अनुरोध करने वाले पक्ष को उचित परिश्रम के बावजूद मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत करने से रोका गया हो।" न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अजीत सिंह चेहुजी राठौड़ बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य दर्ज करने की शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब ऐसा अनुरोध करने वाले पक्ष को उचित प्रयासों के बावजूद मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत करने से रोका गया हो।
अजीतसिंह चेहुजी राठौड़ बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- इस मामले में, अपीलकर्त्ता पर ट्रायल कोर्ट के समक्ष परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI अधिनियम) की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिये मुकदमा चलाया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को दोषी ठहराया।
- अपीलकर्त्ता ने प्रधान सत्र न्यायाधीश, गांधीनगर के समक्ष अपील दायर की और उसके लंबित रहने के दौरान, उसने अपीलीय चरण में अतिरिक्त साक्ष्य लेने के लिये CrPC की धारा 391 के तहत एक आवेदन दायर किया।
- अपीलकर्त्ता द्वारा दिये गए ऐसे आवेदन को संबंधित प्रधान सत्र न्यायाधीश, गांधीनगर द्वारा खारिज़ कर दिया गया था।
- इसके बाद, अपीलकर्त्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष आपराधिक आवेदन दायर किया जिसे खारिज़ कर दिया गया।
- इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जिसे बाद में न्यायालय ने खारिज़ कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य दर्ज करने की शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिये जब ऐसा अनुरोध करने वाले पक्ष को उचित प्रयासों के बावजूद मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत करने से रोका गया हो, या कि ऐसी प्रार्थना को जन्म देने वाले तथ्य अपील के लंबित रहने के दौरान बाद के चरण में सामने आए और ऐसे सबूतों को दर्ज न करने से न्याय की विफलता हो सकती है।
CrPC की धारा 391:
परिचय:
- CrPC की धारा 391 अपीलीय न्यायालय द्वारा अन्य सबूत प्राप्त करने या इससे संबंधित निर्देश देने से संबंधित है, जबकि यही प्रावधान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 432 के तहत शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि-
(1) इस अध्याय के अधीन किसी अपील पर विचार करने में यदि अपीलीय न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक समझता है तो वह अपने कारणों को अभिलिखित करेगा और ऐसा साक्ष्य या तो स्वयं ले सकता है, या मजिस्ट्रेट द्वारा, या जब अपीलीय न्यायालय उच्च न्यायालय है तब सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा, लिये जाने का निदेश दे सकता है।
(2) जब अतिरिक्त साक्ष्य सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा ले लिया जाता है तब वह ऐसा साक्ष्य प्रमाणित करके अपील न्यायालय को भेजेगा और तब ऐसा न्यायालय अपील निपटाने के लिये अग्रसर होगा।
(3) अभियुक्त या उसके प्लीडर को उस समय उपस्थित होने का अधिकार होगा जब अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाता है।
(4) इस धारा के अधीन साक्ष्य का लिया जाना अध्याय 23 के उपबंधों के अधीन होगा मानो वह कोई जाँच हो।
निर्णयज विधि:
- अशोक शेरिंग भूटिया बनाम सिक्किम राज्य (2011) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 391 के तहत शक्ति का प्रयोग कम से कम एवं केवल असाधारण उपयुक्त मामलों में किया जाना चाहिये, जहाँ न्यायालय संतुष्ट है कि अतिरिक्त सबूत निर्देशित करने से उसके हितों की पूर्ति होगी। यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा कि न्याय व समाज की भलाई की अवधारणाओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी अनुमति दी जानी चाहिये या नहीं।
- राम बाबू बनाम महाराष्ट्र राज्य (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 391 उस सामान्य नियम का अपवाद है कि अपील का निर्णय ट्रायल कोर्ट के समक्ष मौजूद साक्ष्यों के आधार पर किया जाना चाहिये। न्याय के उद्देश्यों को हासिल करने के लिये इसमें सावधानी बरतनी होगी।