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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 397

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 26-Feb-2024

संजय नागायच बनाम मध्य प्रदेश राज्य

CrPC की धारा 397 के तहत आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन दायर करने से पहले किसी आरोपी का आत्मसमर्पण करना आवश्यक नहीं है।

जस्टिस विशाल धगट

स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने संजय नागायच बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में माना है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 397 के तहत आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन को प्राथमिकता देने से पहले किसी आरोपी का आत्मसमर्पण करना आवश्यक नहीं है।

संजय नागायच बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, आवेदक ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित फैसले के खिलाफ पुनरीक्षण आवेदन दायर किया है, जिसके द्वारा आवेदक की सज़ा बढ़ा दी गई है।
  • आवेदक की ओर से उपस्थित विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि सज़ा बढ़ाने से पहले आवेदक को नोटिस देना आवश्यक है।
  • आवेदक की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि इस न्यायालय के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण को प्राथमिकता देते समय आवेदक का आत्मसमर्पण करना आवश्यक नहीं है।
  • HC ने पुनरीक्षण आवेदन को अनुमति दे दी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति विशाल धगट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि CrPC की धारा 397 के तहत पुनरीक्षण आवेदन पर विचार करने पर कोई रोक नहीं है, भले ही आवेदक कारावास में न हो।
  • इसमें आगे कहा गया कि अगर सज़ा का क्रियान्वयन निलंबित होने पर या अपीलीय अदालत का फैसला निलंबित होने पर आरोपी जेल में है तो उसे ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है। यदि वह जेल में नहीं है तो अदालत उसे आवश्यकता पड़ने पर उच्च न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने के लिये ज़मानत बांड भरने के लिये कह सकती है।

CrPC की धारा 397 क्या है?

परिचय:

  • यह धारा पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिये किसी भी अधीनस्थ (सबॉर्डिनेट) अदालत के समक्ष किसी भी कार्यवाही के रिकॉर्ड को बुलाने और उसकी जाँच करने का अधिकार देती है:
    (1) उच्च न्यायालय या कोई भी सत्र न्यायाधीश स्वयं को संतुष्ट करने के उद्देश्य से अपने या अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार के भीतर स्थित किसी भी अवर आपराधिक न्यायालय के समक्ष किसी भी कार्यवाही के रिकॉर्ड की मांग और जाँच कर सकता है; किसी भी निष्कर्ष, सज़ा या आदेश, वाक्य या आदेश की शुद्धता, वैधता या औचित्य के बारे में और ऐसे अवर न्यायालय की किसी भी कार्यवाही की नियमितता के बारे में तथा ऐसे, रिकॉर्ड के लिये मांग करते समय, निर्देश दे सकता है कि किसी भी सज़ा या आदेश का निष्पादन निलंबित कर दिया जाए एवं यदि अभियुक्त कारावास में है, उसे अभिलेखों का परीक्षण होने तक ज़मानत अथवा स्वयं के मुचलके पर रिहा किया जाए।
    स्पष्टीकरण— सभी मजिस्ट्रेट, चाहे कार्यकारी हों या न्यायिक और चाहे वे मूल या अपीलीय क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर रहे हों, इस उप-धारा तथा धारा 398 के प्रयोजनों के लिये सत्र न्यायाधीश से निम्नतर माने जाएँगे।
    (2) उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग किसी अपील, जाँच, मुकदमे या अन्य कार्यवाही में पारित किसी भी अंतरिम आदेश के संबंध में नहीं किया जाएगा।
    (3) यदि इस धारा के तहत किसी व्यक्ति द्वारा उच्च न्यायालय या सत्र न्यायाधीश को आवेदन किया गया है, तो उसी व्यक्ति के किसी भी अन्य आवेदन पर उनमें से दूसरे द्वारा विचार नहीं किया जाएगा।

निर्णय विधि:

  • ईश्वरमूर्ति बनाम एन कृष्णास्वामी (2006) के मामले में, मद्रास उच्च न्यायालय ने माना कि CrPC धारा 397(1) में उल्लिखित शब्द 'निर्देश दें कि सज़ा या आदेश का निष्पादन निलंबित कर दिया जाए' को शब्दों से 'अलग-अलग' पढ़ा जाना चाहिये’ और यदि अभियुक्त कारावास में है तो उसे रिकॉर्ड की जाँच होने तक ज़मानत पर या उसके बांड पर रिहा किया जाएगा।