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आपराधिक कानून

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 और 319

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 13-Feb-2024

सुरेश कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य, अपर मुख्य सचिव गृह विभाग, लखनऊ और अन्य

"अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाले किसी आरोपी को तलब करने से पहले, मजिस्ट्रेट को केवल निज़ी शिकायत में लगाए गए आरोपों पर भरोसा नहीं करना चाहिये।"

न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान

स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत तलब किया गया व्यक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के तहत रिहाई की मांग नहीं कर सकता है।

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी सुरेश कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य, अपर मुख्य सचिव गृह विभाग, लखनऊ और अन्य के मामले में दी।

सुरेश कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य, अपर मुख्य सचिव गृह विभाग, लखनऊ और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शिकायत दर्ज की गई थी।
  • आवेदक के वकील ने सीआरपीसी की धारा 227 के तहत आरोपी को आरोप मुक्त करने के लिये एक आवेदन दायर किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिपण्णी की,कि "दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 के तहत तलब किए गए आरोपी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा के तहत शक्ति के अवैध और अनुचित प्रयोग के खिलाफ कानून के तहत उपाय लागू करने के हकदार हैं, लेकिन दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा 227 के तहत आरोपमुक्त करने की मांग करने से आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता है।"

मामले में क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता(CrPC) की धारा 227:
    • उद्देश्य
      • धारा 227 का उद्देश्य अभियुक्त को बरी करने के लिये विधिक प्रावधान प्रदान करना है, यदि न्यायालय संतुष्ट है, कि अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई के लिये पर्याप्त आधार नहीं है
    • न्यायिक विवेकाधिकार
      • यह धारा न्यायालय को यह विचार करने के लिये न्यायिक विवेक का अधिकार देती है, कि क्या आरोपी के खिलाफ वाद चलाने के लिये पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं।
    • विचार का दायरा
      • न्यायालय मामले के पूरे रिकॉर्ड पर विचार करेगी और आरोप- पत्र के साथ प्रस्तुत दस्तावेजों, यदि कोई हो, की भी जाँच कर सकती है।
    • साक्ष्य का मूल्यांकन
      • न्यायालय को अपने सामने रखी गई सामग्री का मूल्यांकन करना चाहिये, जिसमें गवाहों के बयान और अन्य प्रासंगिक साक्ष्य शामिल हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है या नहीं।
    • पर्याप्त आधार का अभाव
      • यदि न्यायालय को यह ज्ञात होता है, कि आरोपी के खिलाफ वाद आगे बढ़ने के लिये पर्याप्त आधार नहीं हैं, तो वह आरोपी को आरोपमुक्त कर देंगे
    • प्रमाण के मानक
      • इस स्तर पर न्यायालय का निर्धारण उचित संदेह से परे अपराध स्थापित करने के स्थान पर साक्ष्यों के प्रथम दृष्टया मूल्यांकन पर आधारित है, जो परीक्षण के दौरान एक मानक है।
    • सुरक्षात्मक उपाय
      • यह प्रावधान निरर्थक या निराधार अभियोजनों के खिलाफ एक सुरक्षात्मक उपाय के रूप में कार्य करता है, जिससे अभियुक्तों के अनावश्यक उत्पीड़न को रोका जा सकता है।
    • निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
      • इस धारा के तहत आरोपमुक्त करने से पश्चात् यदि मुकदमे की आवश्यकता के लिये नए साक्ष्य सामने आते हैं, तब पुन: जाँच या कार्रवाई फिर से शुरू होने की संभावना पर कोई रोक नहीं होती है।
  • दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 319:
    • उद्देश्य:
      • न्यायालय को मुकदमे के दौरान अतिरिक्त अभियुक्तों को शामिल करने का अधिकार देना, यदि न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है, कि ऐसे व्यक्तियों पर मूल अभियुक्तों के साथ ही वाद चलाया जाना चाहिये।
    • न्यायालय का विवेकाधिकार:
      • न्यायालय, जाँच या मुकदमे के किसी भी चरण में, किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाई कर सकता है, जो आरोपी नहीं है, यदि साक्ष्य से ऐसा प्रतीत होता है, कि ऐसे व्यक्ति ने कोई अपराध किया है, जिसके लिये उस पर आरोपी के साथ मिलकर वाद चलाया जा सकता है।
    • कार्रवाई के लिये शर्तें:
      • अतिरिक्त व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का न्यायालय का निर्णय परीक्षण या पूछताछ के दौरान सामने आने वाले साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिये, जो अपराध में उनकी भागीदारी को प्रदर्शित करते हैं।
    • प्रक्रिया:
      • न्यायालय के पास किसी भी व्यक्ति को आरोपी के रूप में जोड़ने की शक्ति है, भले ही मूल आरोप एक अलग अपराध का हो, जब तक कि साक्ष्य नए आरोप का समर्थन करते हैं।
    • वाद का समेकन
      • दक्षता और निष्पक्षता के उद्देश्य से, न्यायालय अधिक प्रतिवादियों को शामिल करने के बाद उन सभी अभियुक्तों के परीक्षणों को संयोजित करने का निर्णय ले सकता है।
    • उद्देश्य:
      • धारा 319 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है, कि सभी दोषी पक्षों को एक ही कार्रवाई में वाद चलाकर व्यापक रूप से न्याय दिया जाए।