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आपराधिक कानून

BNSS के अंतर्गत अभियोजन का प्रत्याहरण

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 17-Jul-2024

शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

"दोहरे हत्याकांड जैसे जघन्य अपराध के मामले में केवल आरोपी की अच्छी सार्वजनिक छवि के आधार पर उसके अभियोजन का प्रत्याहरण नहीं किया जा सकता।"

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि केवल आरोपी की अच्छी सार्वजनिक छवि के आधार पर उसके अभियोजन का प्रत्याहरण नहीं किया सकता।

  • उच्चतम न्यायालय ने शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में यह निर्णय दिया।

शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • पाँच नामजद आरोपियों के विरुद्ध तथा दो अज्ञात लोगों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 147, धारा 148, धारा 149, धारा 307 और धारा 302 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी।
  • शिकायतकर्त्ता का आरोप है कि आरोपियों ने शिकायतकर्त्ता एवं अन्य लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलाईं, जिससे दो लोगों की मृत्यु कारित हो गई।
  • जाँच के दौरान छोटे सिंह एवं गंगा सिंह के नाम अज्ञात व्यक्तियों के रूप में दर्ज किये गए।
  • आरोपी छोटे सिंह विधानसभा के सदस्य चुने गए।
  • सभी आरोपियों के विरुद्ध अभियोजन के प्रत्याहरण के लिये एक सरकारी आदेश पारित किया गया।
  • ट्रायल कोर्ट ने छोटे सिंह के विरुद्ध अभियोजन के प्रत्याहरण की अनुमति इस आधार पर दी कि वह समाज के सम्मानित नागरिक हैं। अन्य आरोपियों के संबंध में आवेदन खारिज कर दिया गया।
  • प्रथम सूचना प्रदाता ने अभियोजन के प्रत्याहरण के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की।
  • वर्ष 2023 में, उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण याचिका अपास्त कर दी, जिसके बाद उन्होंने उच्चतम न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिये कि कोई अभियुक्त विधानसभा के लिये निर्वाचित हुआ है, यह आम जनता के बीच उसकी छवि का प्रमाण नहीं हो सकता।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि केवल अभियुक्त की अच्छी सार्वजनिक छवि के आधार पर अभियोजन का प्रत्याहरण अस्वीकार्य है।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई अनुमति के अनुसार अभियुक्त के अभियोजन प्रत्याहरण अपास्त कर दिया।

CrPC  की धारा 321 के अधीन अभियोजन का प्रत्याहरण क्या है?

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में, CrPC की धारा 321 के अधीन अभियोजन का प्रत्याहरण का प्रावधान किया गया है।
  • CrPC की धारा 321 के अनुसार, केवल लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक जो किसी विशेष मामले का प्रभारी है, संबंधित मामले से प्रत्याहरण के लिये आवेदन कर सकता है।
  • इस धारा में प्रावधान है कि अभियोजन के प्रत्याहरण से पहले न्यायालय की सहमति ली जानी चाहिये ।
  • अभियोजन के प्रत्याहरण की प्रक्रिया निर्णय दिये जाने से पहले किसी भी समय हो सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, यह सामान्य रूप से या किसी एक या अधिक अपराधों के संबंध में हो सकती है, जिसके लिये अभियुक्त का अभियोजन किया जा रहा है।
  • अभियोजन से प्रत्याहरण के परिणाम इस प्रकार हैं:

आरोप तय होने से पहले

उन्मोचन

आरोप तय होने के बाद

दोषमुक्ति

  •  उक्त प्रावधान यह दर्शाता है कि निम्नलिखित अपराधों के लिये अभियोजक को अभियोजन के प्रत्याहरण के लिये केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी, यदि मामले का प्रभारी अभियोजक केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त, उपरोक्त मामलों में सहमति देने से पहले न्यायालय अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन के प्रत्याहरण के लिये केंद्र सरकार द्वारा दी गई अनुमति उसके समक्ष प्रस्तुत करे।
    • जिन अपराधों पर प्रावधान लागू होता है वे हैं:

1. किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध अपराध जिस पर संघ की कार्यकारी शक्ति लागू होती है

2. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अंतर्गत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना द्वारा जाँच किया गया अपराध

3. केंद्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुरुपयोग, विनाश या क्षति पहुँचाने से संबंधित अपराध

4. केंद्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्त्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते हुए किया गया अपराध

BNSS की धारा 360 द्वारा संकलित की गई नई विशेषताएँ क्या हैं?

  • BNSS की धारा 360 में प्रावधान में परिवर्तन किया गया है, जो उन मामलों में लागू होगा जहाँ अभियोजन के प्रत्याहरण से पहले केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है।
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (CrPC की धारा 321 के अधीन) द्वारा जाँच किये गए अपराधों के बजाय, नया प्रावधान किसी भी केंद्रीय अधिनियम के अधीन जाँच किये गए अपराध का प्रावधान करता है।
  • इसके अतिरिक्त, इस धारा में एक नया प्रावधान भी जोड़ा गया है जो पहले नहीं था।
    • नए प्रावधान में यह प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को विचारण का अवसर दिये बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा।
    • इस प्रकार, यह पीड़ित के हित को आगे बढ़ाता है क्योंकि अभियोजन से वापसी से पहले उन्हें विचारण का अवसर दिया जाता है।
  • शेष सभी प्रावधान CrPC की धारा 321 के समान हैं।

BNSS की धारा 360 एवं CrPC की धारा 321 के अधीन अभियोजन से प्रत्याहरण की तुलनात्मक तालिका?

CrPC की धारा 321

BNSS की धारा 360

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक, न्यायालय की सहमति से, निर्णय दिये जाने के पूर्व किसी भी समय, किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिये उसका विचारण किया जा रहा है, प्रत्याहरण कर सकता है; तथा ऐसे प्रत्याहरण पर -

(a) यदि यह आरोप विरचित किये जाने के पूर्व किया गया है, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा;

(b) यदि यह आरोप विरचित किये जाने के पश्चात् किया गया है, या जब इस संहिता के अधीन कोई आरोप अपेक्षित नहीं है, तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा।

बशर्ते कि ऐसा अपराध-

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है, या

(ii) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा जाँच की गई थी, या

(iii) जिसमें केंद्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुरुपयोग या विनाश या क्षति शामिल है, या

(iv) केंद्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने आधिकारिक कर्त्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया हो,

तथा मामले का प्रभारी अभियोजक केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केंद्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिये न्यायालय से उसकी सहमति के लिये आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पहले, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिये   केंद्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे।

किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक न्यायालय की सहमति से निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी भी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन से सामान्यतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के संबंध में, जिनके लिये उसका विचारण किया जा रहा है, प्रत्याहरण कर सकता है; तथा ऐसे प्रत्याहरण पर -

(a) यदि आरोप विरचित किये जाने के पूर्व किया गया हो, तो अभियुक्त को ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में उन्मोचित कर दिया जाएगा;

(b) यदि आरोप विरचित किये जाने के पश्चात् किया गया हो, या जब इस संहिता के अधीन आरोप अपेक्षित न हो, तो उसे ऐसे अपराध या अपराधों के संबंध में दोषमुक्त कर दिया जाएगा:

बशर्ते कि ऐसा अपराध-

(i) किसी ऐसे विषय से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध था जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है; या

(ii) किसी केंद्रीय अधिनियम के अधीन जाँच की गई थी; या

(iii) केंद्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुर्विनियोजन, विनाश या क्षति शामिल थी; या

(iv) केंद्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा अपने पदीय कर्त्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का प्रकल्पना करते समय किया गया था,

तथा मामले का भारसाधक अभियोजक केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह, जब तक कि उसे केंद्रीय सरकार द्वारा ऐसा करने की अनुमति न दी गई हो, अभियोजन से हटने के लिये न्यायालय से उसकी सहमति के लिये   आवेदन नहीं करेगा और न्यायालय, सहमति देने से पूर्व, अभियोजक को निर्देश देगा कि वह अभियोजन से हटने के लिये  केंद्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुमति को उसके समक्ष प्रस्तुत करे:

आगे यह भी प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय मामले में पीड़ित को विचारण का अवसर दिये बिना ऐसी वापसी की अनुमति नहीं देगा।

 महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • एम. बालकृष्ण रेड्डी बनाम सरकार के प्रधान सचिव, गृह विभाग (1999)
    • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि:
      • अपराध का शिकार न होने वाले व्यक्ति को भी अभियोजन से प्रत्याहरण के आवेदन का विरोध करने का उतना ही अधिकार है जितना कि अपराध के पीड़ित को।
      • न्यायालय ने आगे कहा कि तीसरा व्यक्ति उस समुदाय का अंश है जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है, इसलिये उसे वापसी का विरोध करने का अधिकार है।
  • वी.एस. अच्युतानंदन बनाम आर. बालाकृष्णन पिल्लई (1995)
    • उच्चतम न्यायालय ने एक मंत्री के विरुद्ध अभियोजन के प्रत्याहरण के आवेदन का विरोध करने में विपक्षी नेता के अधिकार को स्वीकार कर लिया, क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति ऐसे आवेदन का विरोध नहीं कर रहा था।