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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

सतीश चंद्र शर्मा

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 19-Jan-2024

न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा कौन हैं?

न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा 09 नवंबर, 2023 को नवनियुक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हैं। उच्चतम न्यायालय में उनकी नियुक्ति को कॉलेजियम ने 06 नवंबर, 2023 को मंज़ूरी दे दी थी। न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा एक प्रतिष्ठित कानूनी हस्ती हैं जो कानून और न्याय के क्षेत्र में अपने योगदान के लिये जाने जाते हैं। 30 नवंबर, 1961 को जन्मे न्यायमूर्ति शर्मा का कॅरियर न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता के कारण उल्लेखनीय रहा है।

कैसी रही न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की कॅरियर यात्रा?

  • न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा को स्नातकोत्तर अध्ययन के लिये राष्ट्रीय योग्यता छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया।
  • उन्होंने वर्ष 1981 में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्य प्रदेश में लॉ के छात्र के रूप में दाखिला लिया।
  • उन्होंने 1 सितंबर, 1984 को एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन किया।
  • उन्होंने जबलपुर में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष संविधानिक, सेवा, सिविल और आपराधिक मामलों में अभ्यास किया।
  • उन्हें 28 मई, 1993 को अतिरिक्त केंद्र सरकार अधिवक्ता और 28 जून, 2004 को भारत सरकार द्वारा वरिष्ठ पैनल अधिवक्ता नियुक्त किया गया था।
  • वर्ष 2003 में उन्हें 42 वर्ष की कम आयु में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था, वह मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के सबसे कम आयु के वरिष्ठ अधिवक्ताओं में से एक थे।
  • उन्हें 18 जनवरी, 2008 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।
  • उन्हें 15 जनवरी, 2010 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • न्यायमूर्ति एस.सी. शर्मा एक शौकीन पाठक हैं और विभिन्न विश्वविद्यालयों में उनके योगदान के लिये भी जाने जाते हैं।
  • 31 दिसंबर, 2020 को उन्हें न्यायाधीश के रूप में कर्नाटक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया और 4 जनवरी, 2021 को उन्होंने शपथ ली।
  • बाद में उन्हें 31 अगस्त, 2021 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
  • उन्हें 11 अक्तूबर, 2021 को तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के पद पर स्थानांतरित कर दिया गया, उन्होंने 28 जून, 2022 को इस पद की शपथ ली।
  • उन्हें 9 नवंबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।

न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • आदिनारायण शेट्टी बनाम प्रधान सचिव (2020):
    • न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा की पीठ ने कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड, जो राज्य का एक साधन है, के खिलाफ याचिका की अनुमति देते हुए सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत का उपयोग किया।
  • कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम केंद्रीय विद्यालय संगठन (2023):
    • नेशनल एसोसिएशन ऑफ डेफ ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की जिसमें कहा गया कि निःशक्त व्यक्ति अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD अधिनियम) की धारा 17 के तहत निःशक्त शिक्षकों सहित शिक्षकों को नियोजित करने का आदेश दिया गया है।
    • RPwD अधिनियम की धारा 34 में निःशक्त व्यक्तियों (PwD) के लिये 4% आरक्षण अनिवार्य है, जिसमें से 1% पद बधिर और कम सुनने वाले व्यक्तियों के लिये आरक्षित हैं।
    • एसोसिएशन ने तर्क दिया कि केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) ने भर्ती के लिये अपने विज्ञापन में RPwD अधिनियम के तहत निहित वैधानिक प्रावधानों को अनदेखा किया है।
    • न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा की पीठ ने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव को सभी विभागों द्वारा समान तरीके से आरक्षण नीति के कार्यांवयन के लिये उपयुक्त दिशानिर्देश जारी करने का भी निर्देश दिया।
  • रविकांत चौहान बनाम भारत संघ (2023):
    • परिवार एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना इस मुद्दे के तहत थी, जिसमें सरोगेसी प्रक्रियाओं में दाता युग्मकों के उपयोग की अनुमति नहीं दी गई थी।
    • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि यह मनमाने ढंग से और अनुचित रूप से बांझ युगलों के लिये कानूनी रूप से विनियमित सरोगेसी सेवाओं तक पहुँच को कम कर देता है, जिसमें कोई भी/दोनों साथी व्यवहार्य युग्मक उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं।
    • न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा की पीठ ने कहा कि यह अधिसूचना एक विवाहित बांझ युगल को कानूनी और चिकित्सकीय रूप से विनियमित प्रक्रियाओं एवं सेवाओं तक पहुँच से वंचित करके माता-पिता बनने के मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है
    • इसके अलावा, विवादित अधिसूचना सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने के उद्देश्य से युग्मक उत्पन्न करने की क्षमता के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव करने के लिये किसी तर्कसंगत औचित्य, आधार मानदंड का खुलासा नहीं करती है।
  • अमित साहनी बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय (2023):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ जिसमें न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा भी शामिल थे, ने निर्देश दिया कि दिल्ली उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि जब भी बुनियादी ढाँचा उपलब्ध हो और ज़िला न्यायाधीश, वाणिज्यिक न्यायालयों के पद पर नियुक्त होने के लिये अधिकारी उपलब्ध हों, तो सभी वाणिज्यिक न्यायालय पूरी तरह कार्यात्मक हो जाएँ।
  • नेशनल फेडरेशन ऑफ ब्लाइंड बनाम केंद्रीय विद्यालय संगठन (2023):
    • नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड ने कई पदों पर भर्ती के लिये KVS द्वारा जारी अधिसूचना को PWD के लिये भेदभावपूर्ण बताते हुए चुनौती दी, क्योंकि अधिसूचना RPwD अधिनियम के आदेशों का पालन नहीं करती थी।
    • न्यायमूर्ति एस. सी. शर्मा की सदस्यता वाली पीठ ने यह भी कहा कि भेदभाव केवल कानून के समक्ष समान सुरक्षा के वचन से इनकार नहीं करता है। बल्कि, अपवर्जन का प्रत्येक कार्य किसी व्यक्ति की गरिमा पर हमला है।