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सिविल कानून

आदेश VI नियम 17 का अनुप्रयोग

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 03-Sep-2024

सिन्हा डेवलपमेंट ट्रस्ट एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 15 अन्य 

“वर्ष 2002 में संशोधन के माध्यम से सम्मिलित किया गया CPC का आदेश VI नियम 17, उन वादों पर लागू नहीं होगा, जो संशोधन होने की तिथि के पहले से ही लंबित हैं।”

न्यायमूर्ति नीरज तिवारी

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सिन्हा डेवलपमेंट ट्रस्ट एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 15 अन्य के मामले में माना है कि 2002 में संशोधन के माध्यम से सम्मिलित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश VI नियम 17, उन वादों पर लागू नहीं होंगे, जो संशोधन की तिथि से पहले लंबित हैं।

सिन्हा डेवलपमेंट ट्रस्ट एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 15 अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में विवाद ट्रस्ट के नाम पर भूमि के अंतरण से संबंधित था, न कि किसी निजी व्यक्ति के नाम पर।
  • याचिकाकर्त्ता ने अंतिम चरण में संपत्ति को व्यक्ति के नाम पर न करके ट्रस्ट के नाम पर अंतरित करने के लिये एक औपचारिक संशोधन आवेदन प्रस्तुत किया।
  • अंतिम चरण में ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर आवेदन अस्वीकार कर दिया कि यह बहुत विलंब से दायर किया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
  • याचिकाकर्त्ता ने स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद बनाम टाउन म्युनिसिपल काउंसिल (2007) के मामले का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि CPC के आदेश VI नियम 17 का वर्ष 2000 का संशोधन, संशोधन से पहले दर्ज किये गए मामलों पर लागू नहीं होता है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद बनाम टाउन म्युनिसिपल काउंसिल (2007) के मामले में माना था कि CPC के आदेश VI नियम 17 का 2000 का संशोधन, संशोधन से पहले लंबित मामलों पर लागू नहीं होगा।
  • उपरोक्त निर्णय के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निचले न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्त्ता को वादपत्र में आवश्यक संशोधन करने की अनुमति दे दी।

CPC का आदेश VI नियम 17 क्या है?

परिचय:

  • CPC का आदेश VI सामान्य रूप से अभिवचन से संबंधित है।
  • अभिवचन का सामान्य अर्थ है वादपत्र या लिखित बयान।

अभिवचन:

  • अभिवचन लिखित रूप में दिये गए कथन होते हैं, जो प्रत्येक पक्षकार बारी-बारी से अपने प्रतिद्वंद्वी को देता है, जिसमें वह वाद के दौरान अपने तर्कों का वर्णन करता है तथा ऐसे सभी विवरण देता है, जो उसके प्रतिद्वंद्वी को उत्तर में अपना मामला तैयार करने के लिये जानने की आवश्यकता होती है।
  • यह अभिवचन की एक अनिवार्य आवश्यकता है कि अभिवचन में भौतिक तथ्य और आवश्यक विवरण अवश्य बताए जाने चाहिये तथा निर्णय अभिवचन के बाहर के आधारों पर आधारित नहीं हो सकते।

 नियम 17:

  • यह नियम अभिवचनों के संशोधन से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि न्यायालय कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी पक्षकार को अपने अभिवचनों को ऐसे तरीके से और ऐसी शर्तों पर परिवर्तित या संशोधित करने की अनुमति दे सकता है, जो न्यायसंगत हो, और ऐसे सभी संशोधन किये जाएंगे जो पक्षों के बीच विवाद के वास्तविक प्रश्नों को निर्धारित करने के प्रयोजन के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
  • बशर्ते कि विचारण प्रारंभ होने के पश्चात संशोधन के लिये कोई आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक कि न्यायालय इस निष्कर्ष पर न पहुँच जाए कि समुचित तत्परता के बावजूद पक्षकार विचारण प्रारंभ होने से पूर्व मामले को नहीं उठा सकता था।
  • नियम 17 का उद्देश्य वाद-प्रतिवाद को न्यूनतम करना, विलंब को न्यूनतम करना तथा वाद-प्रतिवाद की बहुलता से बचना है।

नियम 17 में संशोधन:

  • CPC के अंतर्गत याचिका में संशोधन आदेश VI नियम 17 के तहत किया जा सकता है।
  • नियम का पहला भाग न्यायालय को विवेकाधिकार शक्ति प्रदान करता है, जिसमें कहा गया है कि वह विवाद में वास्तविक प्रश्न का निर्धारण करने के लिये संशोधन के लिये आवेदन को अनुमति दे सकता है।
  • दूसरे भाग में यह अनिवार्य किया गया है कि यदि न्यायालय को यह पता चले कि पक्षकारों ने सुनवाई प्रारंभ होने से पहले समुचित तत्परता के बावजूद मुद्दा नहीं उठाया है तो वह आवेदन को स्वीकार कर ले।
  • आदेश VI में परंतुक के रूप में दूसरा भाग जोड़ा गया तथा नियम 17 वर्ष 2002 में जोड़ा गया।

CPC के आदेश VI नियम 17 की प्रयोज्यता पर आधारित मामले क्या हैं?

  • सलेम एडवोकेट बार एसोसिएशन, तमिलनाडु बनाम भारत संघ एवं अन्य (2005):
    • उच्चतम न्यायालय ने माना है कि इस प्रावधान को जोड़ने का उद्देश्य उन तुच्छ आवेदनों को रोकना है, जो वाद में विलंब करने के लिये दायर किये जाते हैं।
  • रेवाजीतु बिल्डर्स एंड डेवलपर्स बनाम नारायणस्वामी एंड संस (2009):
    • उच्चतम न्यायालय ने आदेश VI नियम 17 के अंतर्गत आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिये निम्नलिखित मूलभूत सिद्धांत निर्धारित किये हैं:
      • संशोधन से दूसरे पक्ष को ऐसा कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिये जिसकी भरपाई धन के रूप में पर्याप्त रूप से न की जा सके।
      • संशोधन से प्रतिषेध करने से वस्तुतः अन्याय होगा या अनेक वाद-प्रतिवाद की स्थिति उत्पन्न होगी।
      • सामान्यतः न्यायालय को संशोधनों को अस्वीकार कर देना चाहिये, यदि संशोधित दावों पर नया मुकदमा, आवेदन तिथि की परिसीमा के कारण वर्जित हो।
  • प्रकाश कोडवानी बनाम श्रीमती विमला देवी लखवानी एवं अन्य (2023):
    • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि CPC के आदेश VI के नियम 17 के प्रावधानों के अनुसार संशोधन आवेदन में केवल प्रस्तावित अभिवचनों पर ही विचार किया जाना चाहिये , न कि प्रस्तावित संशोधन के गुण-दोष पर।
  • खन्ना रेयॉन इंडस्ट्रीज़ प्रा. लिमिटेड बनाम स्वास्तिक एसोसिएट्स एवं अन्य। (2023):
    • न्यायालय ने कहा कि "यह नहीं कहा जा सकता कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के अनुसार प्रक्रियात्मक विधान यानी CPC में प्रस्तुत की गई कठोरता को अनदेखा किया जा सकता है, क्योंकि वाणिज्यिक वादों के संदर्भ में CPC के आदेश VI नियम 17 में संशोधन नहीं किया गया है।"
    • न्यायालय ने आगे कहा कि "एक आवेदन, जो मूलतः वाणिज्यिक वादों के लिये लागू CPC के आदेश XI से संबंधित आवेदन है, CPC के आदेश VI नियम 17 के अंतर्गत संशोधन के लिये आवेदन के रूप में प्रच्छन्न हो सकता है।"