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सिविल कानून

ब्लैक लिस्टिंग

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 09-Aug-2024

ब्लू ड्रीम्ज़ एडवरटाइजिंग बनाम कोलकाता नगर निगम 

“किसी व्यक्ति को, भले ही कुछ वर्षों के लिये ब्लैक लिस्ट करना, उसकी सिविल मृत्यु के समान है, क्योंकि वह व्यक्ति व्यावसायिक रूप से बहिष्कृत हो जाता है”।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, संजय करोल और के.वी. विश्वनाथन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग करने से एक पक्ष की सिविल मृत्यु हो जाती है।  

  • उच्चतम न्यायालय ने ब्लू ड्रीम्ज़ एडवरटाइजिंग बनाम कोलकाता नगर निगम मामले में यह निर्णय दिया।

ब्लू ड्रीम्ज़ एडवरटाइजिंग बनाम कोलकाता नगर निगम मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • प्रतिवादी संख्या 1 (कोलकाता नगर निगम) ने अपने अधिकार क्षेत्र में स्ट्रीट होर्डिंग्स, बस यात्री शेल्टर और स्टाल पर विज्ञापन प्रदर्शित करने के लिये संविदा के आवंटन के लिये निविदाएँ आमंत्रित कीं।
  • 28 मई 2014 के निर्णय द्वारा अपीलकर्त्ता को सफल बोली लगाने वाले के रूप में अधिसूचित किया गया।
  • अपीलकर्त्ता को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया कि उसका आवंटन क्यों न समाप्त कर दिया जाए, क्योंकि बकाया राशि और ब्याज का भुगतान नहीं किया गया है।
  • इसके उपरांत अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में एक नोटिस प्रकाशित किया गया कि अपीलकर्त्ता को ब्लैक लिस्ट कर गया है।
  • अपीलकर्त्ता का कहना था कि मध्यस्थता कार्यवाही का प्रयोग किये बिना ब्लैक लिस्ट में डालने का निर्णय अवैध है।
  • दिनांक 2 मार्च 2016 के आदेश द्वारा, निगम ने अपीलकर्त्ता को कंपनी के उपेक्षापूर्ण प्रदर्शन/कार्यवाही एवं बड़ी राशि का भुगतान न करने के आरोप से मुक्त करने की तिथि तक या किसी भी प्राधिकरण/फोरम/न्यायालय के निर्देश के अंतर्गत ब्याज सहित संपूर्ण बकाया राशि का भुगतान करने की तिथि तक, जो भी बाद में हो, पाँच वर्षों के लिये किसी भी निविदा में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया।
  • उपर्युक्त आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की गई थी। मामले को आगे अपील में आगे बढ़ाया गया।
  • उच्च न्यायालय ने कहा कि चूँकि अपीलकर्त्ता को सुनवाई का अवसर दिया गया था, इसलिये अपीलकर्त्ता को सुनवाई से वंचित करने के लिये पर्याप्त आधार मौजूद थे।
  • अपीलकर्त्ता इस आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में गया था।
  • न्यायालय के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि क्या अपीलकर्त्ता को पाँच वर्ष के लिये प्रतिबंधित करने वाला निगम का 2 मार्च 2016 का आदेश वैध एवं विधिक रूप से न्यायोचित है?

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि उपचार के रूप में निषेध का प्रयोग केवल उन मामलों में किया जाना चाहिये जहाँ सार्वजनिक हित को हानि हो या हानि होने की संभावना हो।
  • ऐसा केवल उन मामलों में किया जाना चाहिये जहाँ दण्ड के रूप में निषेध से ही सार्वजनिक हित की रक्षा की जा सके तथा व्यक्ति को उसके ऐसे कार्यों को दोहराने से रोका जा सकेगा जिनसे सार्वजनिक हित को खतरा हो सकता है।
  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) के अंतर्गत अनुबंध के सामान्य उल्लंघन के मामले में, जहाँ व्यक्ति द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण वास्तविक विवाद को उत्पन्न करता है, दण्ड के रूप में ब्लैक लिस्ट में डालने/निषेध करने का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये।

ब्लैकलिस्टिंग क्या है?

  • इंग्लैंड के विधिक के विश्वकोश के अनुसार ब्लैकलिस्ट का अर्थ है "ब्लैकलिस्ट उन व्यक्तियों या फर्मों की सूची है जिनके विरुद्ध इसका अनुपालक जनता या जनता के एक वर्ग को चेतावनी देता है कि; इस सूची में उल्लिखित व्यक्ति ऋण देने के लिये अयोग्य हैं, या इनके साथ संविदा करना उचित नहीं है।"
  • ब्लैकलिस्ट आदेश के परिणामस्वरूप सिविल परिणाम सामने आते हैं और व्यक्ति की व्यावसायिक संभावनाओं पर असर पड़ता है।
  • किसी भी प्राधिकारी को किसी व्यक्ति को ब्लैकलिस्ट में डालने के लिये मनमाने तरीके से कार्य नहीं करना चाहिये तथा निष्पक्ष तरीके से कार्य करना चाहिये।

ब्लैकलिस्टिंग कब उचित है?

  • निम्नलिखित स्थितियों में ब्लैकलिस्टिंग उचित है:
    • जब फर्म के स्वामी को न्यायालय द्वारा दोषी ठहराया जाता है।
    • यदि इस बात पर प्रबल सहमति हो कि व्यक्ति रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी जैसे कदाचारों का दोषी है।
    • यदि फर्म में कोई सरकारी कर्मचारी कार्यरत है जिसे भ्रष्टाचार के कारण पदच्युत या निलंबित दिया गया हो।
    • जहाँ व्यक्ति ने बार-बार आदेश के बावजूद काम आरंभ करने से प्रतिषेध कर दिया हो।
    • ठेकेदार 25 दिन की समय-सीमा का पालन करने में विफल रहा और कारण बताओ नोटिस का कोई उपयुक्त उत्तर नहीं दिया गया। न्यायालय ने माना कि ब्लैकलिस्ट में डालने का आदेश उचित था और प्राकृतिक न्याय की कोई विफलता नहीं थी।
      • यह निर्णय बी.एस. कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम एम.सी.डी. कमिश्नर (2008) के मामले में दिया गया था।
    • जब एक ठेकेदार को इस आधार पर ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया कि उसने बिना अनुमोदन प्राप्त किये काम को दूसरे व्यक्ति को ठेके पर दे दिया, तो न्यायालय ने माना कि ब्लैकलिस्ट में डालने का आदेश न्यायोचित नहीं था।
      • यह माना गया कि सरकार ने संविदा की धाराओं की गलत व्याख्या की है तथा ब्लैकलिस्ट में डालने का आदेश विधिक दृष्टि से अनुचित है।
      • यह बात पी.टी. साम्बर मित्रा जया बनाम NHAI(2003) मामले में कही गई।

ब्लैकलिस्टिंग से संबंधित प्रमुख मामले क्या हैं?

  • एरूसियन इक्विपमेंट एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य (1975):
    • ब्लैकलिस्टिंग का प्रभाव यह होता है कि यह किसी व्यक्ति को लाभ के उद्देश्य से सरकार के साथ वैध संबंध बनाने के विशेषाधिकार और लाभ से वंचित कर देता है।
    • यह तथ्य कि ब्लैकलिस्ट में डालने के आदेश से अयोग्यता उत्पन्न होती है, दर्शाता है कि संबंधित प्राधिकारी को वस्तुनिष्ठ संतुष्टि प्राप्त हुई है।
  • श्री बी.एस.एन. जोशी एंड संस लिमिटेड बनाम नायर कोल सर्विसेज लिमिटेड (2006):
    • न्यायालय ने कहा कि ब्लैकलिस्ट में डालने से निविदाकर्त्ता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
    • जब किसी निविदाकर्त्ता को डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाता है, तो उसे कोई भी संविदा नहीं मिल पाती है तथा उसे अपना व्यवसाय बंद करना पड़ सकता है।
    • जब कोई मांग की जाती है और संबंधित व्यक्ति इस संबंध में सद्भावनापूर्ण विवाद उठाता है तो जब तक विवाद का समाधान नहीं हो जाता है, उसे डिफॉल्टर घोषित नहीं किया जा सकता।
  • कुलजा इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड बनाम मुख्य महाप्रबंधक पश्चिमी दूरसंचार परियोजना BSNL एवं अन्य (2014):
    • इस मामले में दो न्यायाधीशों की पीठ ने माना कि किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट में डालने की शक्ति अंतर्निहित है और विधि द्वारा ऐसी शक्ति प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि किसी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट में डालने के निर्णय के गंभीर परिणाम होते हैं तथा उच्च न्यायालय द्वारा इसकी जाँच की जा सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, निर्णय की जाँच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और आनुपातिकता के सिद्धांत पर भी की जानी चाहिये।
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने ब्लैकलिस्टिंग (अमेरिकी विधि के तहत निषेध) के लिये अमेरिकी संघीय सरकार द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों पर निर्भरता प्रदर्शित की। उच्चतम न्यायालय ने उन कारकों के लिये दिशा-निर्देशों पर भी भरोसा किया जो अधिकारी के निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं।