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आपराधिक कानून
दहेज़ मृत्यु के लिये अनिवार्यताएँ
« »11-Sep-2024
छबी करमारकर एवं अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य “मामले में साक्षियों ने यह नहीं कहा कि ऐसी क्रूरता एवं उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में था”। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि इस मामले में यह सिद्ध नहीं हुआ कि दहेज़ की मांग के चलते मृतका के साथ उसकी मृत्यु से पहले क्रूरता की गई थी, इसलिये यह दहेज़ हत्या का मामला नहीं है।
छबी करमारकर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- मृतका एवं अपीलकर्त्ता संख्या 2 का विवाह मार्च 2003 में हुआ था।
- 2 मई 2006 को मृतका ने अपने ससुराल में फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
- पोस्टमार्टम करवाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतका के शरीर पर लिगचर के निशान थे तथा कोई अन्य मृत्यु-पूर्व चोट नहीं थी।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि मृतका को दहेज़ की मांग को लेकर परेशान किया जा रहा था।
- इसलिये, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 304 B, धारा 498 A एवं धारा 306 के साथ धारा 34 के अधीन मामला दर्ज किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने मृतका की ननद (अपीलकर्त्ता संख्या 1), पति (अपीलकर्त्ता संख्या 2) एवं सास को दोषसिद्धि दी।
- उच्च न्यायालय ने अपील में दोषसिद्धि एवं सज़ा को यथावत् रखा।
- परिणामस्वरूप, अपील उच्चतम न्यायालय में दायर की गई।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- न्यायालय ने माना कि निम्नलिखित प्रावधान बिना किसी संदेह के सिद्ध हो चुके हैं:
- मृतका की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के अंदर हो गई।
- उसकी मृत्यु वैवाहिक घर में आत्महत्या के कारण हुई।
- उसके ससुराल वालों एवं विशेष रूप से पति द्वारा उसे प्रताड़ित किया जाता था।
- पति-पत्नी के मध्य वैवाहिक कलह थी।
- अभियोजन पक्ष ने कई साक्षियों से पूछताछ की है।
- न्यायालय ने माना कि यह स्पष्ट है कि मृतका को अपने पति के हाथों उत्पीड़न एवं क्रूरता का सामना करना पड़ा, हालाँकि इन साक्षियों ने यह नहीं बताया कि ऐसी क्रूरता एवं उत्पीड़न दहेज़ की मांग के संबंध में था।
- दहेज़ की मांग के संबंध में कुछ सामान्य बयान दिये गए थे जो IPC की धारा 304 B के अधीन आरोपी को दोषी ठहराने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि वर्तमान परिस्थितियों में अभियुक्त को धारा 306 (आत्महत्या के लिये उकसाना) तथा धारा 498 A (क्रूरता) के अधीन दोषी ठहराया जा सकता है।
- हालाँकि धारा 304 B (दहेज़ हत्या) के अधीन दोषसिद्धि को खारिज कर दिया गया।
दहेज़ क्या है?
- परिचय:
- दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 में दहेज़ की परिभाषा दी गई है।
- दहेज़ के घटक:
- कोई भी संपत्ति या
- मूल्यवान सुरक्षा
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई या दिये जाने पर सहमति व्यक्त किया जाना
- दहेज़ के पक्षकार:
- विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को
- विवाह के किसी भी पक्ष के माता-पिता द्वारा या विवाह के किसी भी पक्ष को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति को
- दहेज़ का समय:
- उक्त पक्षों के विवाह के संबंध में विवाह के समय या उससे पहले या विवाह के बाद किसी भी समय
- दहेज़ में शामिल नहीं है:
- इसमें उन व्यक्तियों के मामले में दहेज़ या मेहर शामिल नहीं है जिन पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) लागू होता है।
आपराधिक विधियों में “दहेज़ मृत्यु” से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
पुराने आपराधिक विधियों में प्रावधान |
नए आपराधिक विधियों में प्रावधान |
आवश्यक तथ्य |
IPC की धारा 304बी |
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 80 (बीएनएस) |
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 113 B |
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 118 |
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दहेज़ मृत्यु के मूल तत्त्वों को स्पष्ट करने वाले निर्णय क्या हैं?
- चरण सिंह @ चरणजीत सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य (2023)
- इस मामले में न्यायालय ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 B लागू करने से मना कर दिया।
- न्यायालय ने माना कि मोटरसाइकिल एवं ज़मीन की मांग के संबंध में केवल कुछ मौखिक कथन ही दिये गए थे, जो घटना से काफी पहले के थे।
- उपरोक्त घटना किसी भी तरह से भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304B के अधीन दोषसिद्धि या धारा 113B के तहत अनुमान लगाने के लिये आवश्यक पूर्वापेक्षाओं को पूरा नहीं करती है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि विवाह के सात वर्ष के अंदर मृतक की अप्राकृतिक मृत्यु मात्र IPC की धारा 304B एवं और 498A के अधीन अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।
- राजिंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2015):
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 B के अंतर्गत दहेज मृत्यु के अपराध के चार तत्त्व हैं:
- महिला की मृत्यु किसी जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई हो या उसकी मृत्यु सामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से हुई हो
- ऐसी मृत्यु उसकी विवाह के सात वर्ष के अंदर हुई हो
- उसकी मृत्यु से ठीक पहले, उसके पति या उसके पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया हो
- ऐसी क्रूरता या उत्पीड़न दहेज़ की मांग के संबंध में होना चाहिये।
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 B के अंतर्गत दहेज मृत्यु के अपराध के चार तत्त्व हैं:
- शेर सिंह उर्फ परतापा बनाम हरियाणा राज्य (2015)
- इस मामले में न्यायालय ने “शीघ्र” शब्द की व्याख्या IPC की धारा 304 B के अनुसार की।
- “शीघ्र” शब्द की व्याख्या दिनों, महीनों या वर्षों के संदर्भ में नहीं की जानी चाहिये।
- दहेज़ की मांग पुरानी या अतीत की बात नहीं होनी चाहिये, बल्कि धारा 304 B के अधीन मृत्यु का एक निरंतर कारण होना चाहिये।
- एक बार जब अभियोजन पक्ष द्वारा इन सहवर्ती कारकों को स्थापित कर दिया जाता है, यहाँ तक कि संभावना की प्रबलता की सीमा तक भी, तो निर्दोषता की प्रारंभिक धारणा को अभियुक्त के अपराध की धारणा द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है।
- दिनेश सेठ बनाम दिल्ली राज्य (2008)
- न्यायालय ने दो धाराओं अर्थात् भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A एवं धारा 304B की व्यापकता एवं दायरे की जाँच की।
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A का दायरा व्यापक है क्योंकि इसमें वे सभी मामले शामिल हैं जिनमें पत्नी को उसके पति या उसके पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का सामना करना पड़ता है।
- दोनों धाराओं में "क्रूरता" का तत्त्व समान है, लेकिन दोनों धाराओं की व्यापकता एवं दायरा अलग-अलग है, जहाँ तक धारा 304B का संबंध विवाह के सात वर्षों के अंदर क्रूरता या उत्पीड़न के परिणामस्वरूप मृत्यु के मामलों से है तथा धारा 498A उन सभी मामलों से संबंधित है, जहाँ पत्नी को उसके पति या उसके पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का सामना करना पड़ता है।