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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला

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 22-May-2024

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला कौन हैं?

जमशेद बुर्जोर पारदीवाला का जन्म 12 अगस्त 1965 को मुंबई में हुआ था और उन्होंने वर्ष 1988 में, के.एम. लॉ कॉलेज, वलसाड (गुजरात) से विधि में स्नातक की डिग्री पूरी की। वह उस संविधान पीठ के सदस्य थे जिसने 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 की वैधता को सुनिश्चित किया था।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की कॅरियर यात्रा कैसी रही?

  • उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ ई. टी. हाई स्कूल, वलसाड से प्राप्त की।
  • उन्होंने वर्ष 1985 में जे.पी. आर्ट्स कॉलेज, वलसाड से स्नातक और वर्ष 1988 में के.एम.लॉ कॉलेज, वलसाड से LLB की पढ़ाई पूरी की।
  • उन्होंने वर्ष 1989 में वलसाड में विधिक व्यवसाय प्रारंभ किया तथा वर्ष 1990 में गुजरात उच्च न्यायालय की बार में सम्मिलित हुए।
  • उनका जन्म वकीलों के परिवार में हुआ था।
    • उनके परदादा श्री नवरोजी भीखाजी पारदीवाला ने वर्ष 1894 में वलसाड में विधिक व्यवसाय प्रारंभ किया।
    • दादाजी श्री कावसजी नवरोजी पारदीवाला ने वर्ष 1929 में वलसाड में विधिक व्यवसाय प्रारंभ किया।
    • पिता श्री बुर्जोर कैवासजी पारदीवाला ने वर्ष 1955 में वलसाड में विधिक व्यवसाय प्रारंभ किया।
  • उन्हें दिसंबर 1989 से मार्च 1990 तक 7वीं गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में भी नियुक्त किया गया था।
  • उन्हें वर्ष 1994 से 2000 तक गुजरात विधिज्ञ परिषद के सदस्य के रूप में चुना गया था।
  • उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य के रूप में भी काम किया।
  • उन्हें वर्ष 2002 में गुजरात उच्च न्यायालय और उसके अधीनस्थ न्यायालयों के लिये स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • 17 फरवरी 2011 को उन्हें गुजरात उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया तथा 28 जनवरी 2013 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
  • उन्होंने मुख्य रूप से आपराधिक और नागरिक विधि, सेवाओं तथा अप्रत्यक्ष कराधान से संबंधित मामलों का निर्णय किया।
  • उन्हें 09 फरवरी 2022 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला के उल्लेखनीय निर्णय क्या हैं?

  • सुओ मोटो बनाम गुजरात राज्य (2020):
    • इस मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 में कोविड-19 के दौरान प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा और राज्य के अस्पतालों में प्रबंधन के लिये स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) लिया।
    • पीठ में न्यायमूर्ति इलेश जे. वोरा भी शामिल थे और उन्होंने कहा कि कोविड 19 संकट मूल रूप से एक मानवीय संकट है, अतः मानव जीवन को बाकी सभी चीज़ों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि प्रवासी श्रमिकों को अपने मूल स्थान की यात्रा के लिये आगे कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।
  • जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022):
    • इस मामले में 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
    • वह इस संविधान पीठ के सदस्य थे जिसने 3:2 के बहुमत से 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को सुनिश्चित किया। बहुमत में न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला शामिल थे।
    • पीठ ने कहा कि EWS आरक्षण (10%) से संबंधित संशोधन संवैधानिक रूप से वैध है।
  • डॉ. जया ठाकुर बनाम भारत सरकार (2023):
    • याचिका भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दायर की गई थी। याचिका महिला मासिक धर्म स्वच्छता से संबंधित थी।
    • तीन न्यायाधीशों की पीठ में मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे।
    • उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह की अवधि में, मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन रणनीतियों तथा योजनाओं को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन संचालन समूह को सौंपें, जिन्हें या तो केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की गई धनराशि से या अपने स्वयं के कोष के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।