समग्र एवं खंडित क्षैतिज आरक्षण
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सांविधानिक विधि

समग्र एवं खंडित क्षैतिज आरक्षण

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 23-Aug-2024

रेखा शर्मा बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर एवं अन्य

“समग्र क्षैतिज आरक्षण के मामले में, आरक्षण प्रत्येक ऊर्ध्वाधर श्रेणी के लिये विशिष्ट नहीं है।”

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को प्रदान किया गया आरक्षण समग्र क्षैतिज आरक्षण के रूप में है, इसलिये अलग से कट ऑफ की कोई आवश्यकता नहीं है।

  • उच्चतम न्यायालय ने रेखा शर्मा बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।

रेखा शर्मा बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • राजस्थान उच्च न्यायालय ने सिविल जज कैडर के अंतर्गत सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट के 120 पदों पर सीधी भर्ती के लिये विज्ञापन निर्गत किया था।
  • स्थायी विकलांगता वाले दो अपीलकर्त्ता रेखा शर्मा एवं रतन लाल ने भी इस पद के लिये आवेदन किया था।
  • दोनों को प्रारंभिक परीक्षा में असफल घोषित किया गया।
  • परिणाम में बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों की श्रेणी के लिये कट ऑफ अंकों को छोड़कर हर श्रेणी के लिये कट ऑफ अंक दिये गए।
  • अपीलकर्त्ताओं का मामला यह था कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14, 16 एवं 21 के अंतर्गत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया था तथा यह राजस्थान न्यायिक सेवा नियम, 2010 (RJS नियम) के साथ राजस्थान दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार नियम, 2018 का भी उल्लंघन था।
  • उच्च न्यायालय ने रिट याचिका खारिज कर दी।
  • इस प्रकार, उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने सबसे पहले निर्गत की गई रिक्तियों का विश्लेषण किया तथा पाया कि बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों के लिये आरक्षित सीटों की संख्या कुल 89 रिक्तियों (वर्ष 2020 के लिये) में से 4 एवं कुल 31 रिक्तियों (वर्ष 2021 के लिये) में से 1 थी।
  • न्यायालय ने पाया कि विकलांग व्यक्तियों के पक्ष में आरक्षण एक समग्र क्षैतिज आरक्षण था तथा यह विभाजित आरक्षण नहीं था।
  • न्यायालय ने कहा कि RJS नियम, 2010 प्रतिवादियों के लिये बेंचमार्क विकलांग व्यक्तियों के लिये अलग से कट ऑफ अंक घोषित करना अनिवार्य नहीं बनाता है।
  • यह देखा गया कि महिलाओं (विधवा या परित्यक्ता) के लिये आरक्षण विभाजित आरक्षण था, जबकि बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिये आरक्षण समग्र आरक्षण था।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिये अलग से कट ऑफ निर्धारित न करना मनमाना या अपीलकर्त्ताओं के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।

आरक्षण क्या है?

  • आरक्षण सकारात्मक भेदभाव का एक रूप है, जिसे हाशिये पर पड़े वर्गों के मध्य समानता को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है, ताकि उन्हें सामाजिक एवं ऐतिहासिक अन्याय से बचाया जा सके।
  • सामान्यतः इससे तात्पर्य है कि रोज़गार एवं शिक्षा तक पहुँच में समाज के हाशिये पर पड़े वर्गों को वरीयता देना।
  • इसे मूल रूप से वर्षों से चले आ रहे भेदभाव को व्यवस्थित करने एवं वंचित समूहों को बढ़ावा देने के लिये विकसित किया गया था।
  • भारत में, लोगों के साथ जाति के आधार पर ऐतिहासिक रूप से भेदभाव किया जाता रहा है।

भारतीय संविधान, 1950 (COI) में आरक्षण से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) का भाग XVI केंद्र एवं राज्य विधानसभाओं में SC और ST के आरक्षण से संबंधित है।
  • COI के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) ने राज्य एवं केंद्र सरकारों को SC तथा ST के सदस्यों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाया।
  • संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में संशोधन किया गया तथा सरकार को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिये अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) डाला गया।
  • बाद में, आरक्षण देकर पदोन्नत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने के लिये संविधान (85वाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा खंड (4A) को संशोधित किया गया।
  • संविधान के 81वें संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा अनुच्छेद 16 (4B) को शामिल किया गया, जो राज्य को किसी वर्ष की रिक्तियों को भरने का अधिकार देता है, जो अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित हैं, जिससे उस वर्ष की कुल रिक्तियों पर पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा समाप्त हो जाती है।
  • संविधान की धारा 330 और 332 में संसद एवं राज्य विधानसभाओं में क्रमशः अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व का प्रावधान है।
  • अनुच्छेद 243D में प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • अनुच्छेद 233T में प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान किया गया है।
  • संविधान की धारा 335 में कहा गया है कि प्रशासन की प्रभावकारिता को बनाए रखने के साथ अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार किया जाएगा।

आरक्षण के प्रकार क्या हैं?

इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने माना कि आरक्षण दो प्रकार के होते हैं:

  • ऊर्ध्वाधर आरक्षण
    • ये विशेष प्रावधानों का उच्चतम रूप है जो विशेष रूप से पिछड़े वर्गों SC, ST और OBC के सदस्यों के लिये है।
    • यह COI के अनुच्छेद 16 (4) के अंतर्गत आता है।
    • ये 50% से अधिक नहीं हो सकते।
  • क्षैतिज आरक्षण
    • ये विशेष प्रावधानों का कमतर रूप हैं तथा अन्य वंचित नागरिकों (जैसे- विकलांग, महिलाएँ आदि) के लिये हैं।
    • इनका प्रावधान COI के अनुच्छेद 16 (1) के अंतर्गत किया गया है।
    • क्षैतिज आरक्षण, ऊर्ध्वाधर आरक्षणों के प्रभाव को क्षीण करता है।
      क्षैतिज आरक्षण के प्रकार:
    • खंडित क्षैतिज आरक्षण
      • इस प्रकार के आरक्षण में प्रत्येक ऊर्ध्वाधर आरक्षित श्रेणी में आनुपातिक सीटें आरक्षित की जाती हैं।
      • उदाहरण के लिये, यदि रिक्तियों की कुल संख्या 89 है। विभाजित आरक्षण के मामले में उन्हें निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता है:

कुल रिक्तियाँ

सामान्य

SC

ST

OBC

EWS

89

35 जिनमें से 10 महिलाओं के लिये 10 में से 2 पद विधवा के लिये आरक्षित

 

14 जिनमें से 4 पद महिलाओं के लिये तथा 1 पद विधवा के लिये

 

10 में से 3 पद महिलाओं के लिये

 

18 में से 5 पद महिलाओं के लिये

 

8 में से 2 पद महिलाओं के लिये

 

  •  समग्र क्षैतिज आरक्षण
    • यहाँ आरक्षण प्रत्येक ऊर्ध्वाधर श्रेणी के लिये विशिष्ट नहीं है।
    • यहाँ प्रदान किया गया आरक्षण विज्ञापित कुल पदों पर प्रदान किया गया है, अर्थात् ऐसा आरक्षण प्रत्येक ऊर्ध्वाधर श्रेणी के लिये विशिष्ट नहीं है।
    • उदाहरण के लिये, यदि रिक्तियों की कुल संख्या 89 है तथा कुल सीटों में से 4 सीटें विकलांग व्यक्तियों के लिये आरक्षित हैं, तो यह समग्र क्षैतिज आरक्षण होगा।

समग्र एवं खंडित क्षैतिज आरक्षण की प्रयोज्यता पर एक महत्त्वपूर्ण मामला कौन-सा है?

  • अनिल कुमार गुप्ता एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (1995)
    • समग्र और विभाजित आरक्षण के बीच अंतर इस प्रकार है:

समग्र क्षैतिज आरक्षण

कम्पार्टमेंटलाइज़्ड क्षैतिज आरक्षण

विशेष आरक्षण अभ्यर्थियों की श्रेणी आवंटित करते समय विशेष आरक्षण श्रेणियों के पक्ष में समग्र आरक्षण का सम्मान किया जाना चाहिये।

जहाँ क्षैतिज आरक्षण के लिये आरक्षित सीटें ऊर्ध्वाधर आरक्षणों के बीच आनुपातिक रूप से विभाजित की जाती हैं तथा वे अंतर-हस्तांतरणीय नहीं होती हैं।