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सांविधानिक विधि

उच्चतम न्यायालय द्वारा परिसीमन आयोग के आदेश का न्यायिक पुनर्विलोकन

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 08-Aug-2024

किशोरचंद्र छंगनलाल राठौड़ बनाम भारत संघ और अन्य

“परिसीमन आयोग के आदेशों को न्यायिक पुनर्विलोकन से छूट प्राप्त नहीं है”।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने परिसीमन आयोग के आदेशों का पुनर्विलोकन करने के अपने अधिकार को यथावत् रखा है, यदि उन्हें स्पष्ट रूप से मनमाना या संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला माना जाता है। हालाँकि परिसीमन के मामलों में न्यायिक पुनर्विलोकन आम तौर पर प्रतिबंधित है, लेकिन न्यायालय तब हस्तक्षेप कर सकता है जब कोई आदेश संवैधानिक मूल्यों के विपरीत हो।

किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता ने परिसीमन आयोग द्वारा किये गए परिसीमन कार्यवाही को चुनौती देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की।
  • परिसीमन कार्यवाही के परिणामस्वरूप गुजरात के बारडोली विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र को अनुसूचित जाति समुदाय के लिये आरक्षित कर दिया गया।
  • परिसीमन आयोग ने परिसीमन अधिनियम, 2002 के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए निर्वाचन क्षेत्र को आरक्षित कर दिया।
  • परिसीमन आयोग ने दिनांक 12.12.2006 को आदेश संख्या 33 जारी किया, जिसे भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई।
  • अपीलकर्त्ता की रिट याचिका में परिसीमन आयोग के आदेश की वैधता को चुनौती देने की मांग की गई थी।
  • गुजरात उच्च न्यायालय ने भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 329 (a) का उदहारण देते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया।
  • संविधान के अनुच्छेद 329(a) में कहा गया है कि निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में सीटों के आवंटन से संबंधित किसी भी विधि की वैधता पर किसी भी न्यायालय में प्रश्न नहीं किया जाएगा।
  • विचाराधीन परिसीमन कार्यवाही वर्ष 2006 में किया गया था।
  • अपीलकर्त्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय के दिनांक 21.09.2012 के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की। ​​
  • यह मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील अनुच्छेद 329(a) का निर्वचन एवं परिसीमन कार्यवाही से संबंधित मामलों में न्यायिक पुनर्विलोकन की परिधि से संबंधित है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के आदेश न्यायिक पुनर्विलोकन के लिये पूरी तरह से असंवेदनशील हैं।
  • जबकि अनुच्छेद 329 परिसीमन विधियों की वैधता के संबंध में न्यायिक पुनर्विलोकन की परिधि को प्रतिबंधित करता है, इसे परिसीमन कार्यवाही के लिये न्यायिक पुनर्विलोकन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के रूप में नहीं समझा जा सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक न्यायालय संविधान के मानक पर परिसीमन आयोग के आदेशों की वैधता की समीक्षा कर सकते हैं।
  • यदि परिसीमन आयोग का आदेश स्पष्ट रूप से मनमाना एवं संवैधानिक मूल्यों के साथ असंगत पाया जाता है, तो न्यायालय स्थिति को सुधारने के लिये उचित उपाय प्रदान कर सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप पर पूरी तरह से रोक लगाने से नागरिकों के पास अपनी शिकायतें रखने के लिये कोई मंच नहीं बचेगा, जो न्यायालय के कर्त्तव्यों एवं शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत होगा।
  • न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक न्यायालय परिसीमन के मामलों में उचित स्तर पर सीमित परिधि में न्यायिक पुनर्विलोकन कर सकते हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया तथा उच्च न्यायालय के निर्णय के पैराग्राफ 3 को इस सीमा तक खारिज कर दिया कि सीमांकन आदेशों को चुनौती देने पर रोक है।
  • न्यायालय ने कहा कि हालाँकि 2006 के सीमांकन अभ्यास में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनाया गया था, लेकिन अपीलकर्त्ता बाद की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, यदि सलाह दी जाती है तो फिर से उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

संविधान का अनुच्छेद 329 क्या है?

  • परिचय:
    • अनुच्छेद 329 भारत के संविधान, 1950 के भाग XV का अंश है, जो विशेष रूप से चुनावों से संबंधित है।
    • यह लेखों की एक शृंखला (अनुच्छेद 324-329) में शामिल है जो चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं, जिसमें चुनाव के संचालन से लेकर चुनाव अधिकारियों की भूमिका एवं उत्तरदायित्व निहित हैं।
  • न्यायपालिका एवं चुनावी मामले:
    • अनुच्छेद 329 विशेष रूप से चुनावी मामलों में न्यायपालिका की भूमिका से संबंधित है। यह न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं को रेखांकित करता है, यह सुनिश्चित करता है कि कुछ चुनावी प्रक्रियाओं को विधिक चुनौतियों से बचाया जाए, सिवाय विशिष्ट माध्यमों के।
  • अनुच्छेद 329(ए):
    • न्यायिक पुनर्विलोकन का निषेध: अनुच्छेद 329(a) न्यायपालिका को चुनावी ज़िलों के परिसीमन या उन ज़िलों में सीटों के आवंटन से संबंधित विधियों की संवैधानिकता को चुनौती देने से रोकता है।
  • अनुच्छेद 329(b):
    • संशोधन का इतिहास: इस खंड को संविधान (19वाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 द्वारा संशोधित किया गया था।
    • चुनाव याचिकाएँ: इसमें प्रावधान है कि संसद के किसी भी सदन या राज्य विधानमंडल के किसी भी चुनाव को चुनाव याचिका के माध्यम से ही प्रश्नगत किया जाएगा। ऐसी याचिकाएँ उचित विधानमंडल द्वारा बनाए गए विधि द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिये।
    • विधिक ढाँचा: इन याचिकाओं को प्रस्तुत करने का तरीका भी उचित विधानमंडल द्वारा बनाए गए विधि के अनुसार होना चाहिये। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि चुनाव संबंधी पूछताछ को विशेष रूप से चुनाव याचिकाओं के माध्यम से संबोधित किया जाता है।
  • पूरक विधान:
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, अनुच्छेद 329(b) का पूरक है, जो उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाओं की सुनवाई करने एवं उन पर निर्णय लेने का अधिकार देता है।
    • इन याचिकाओं पर उच्च न्यायालयों द्वारा लिये गए निर्णयों को भारत के उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

भारत का चुनाव आयोग क्या है?

  • भारतीय संविधान, 1950 (COI) के भाग XV में उल्लिखित अनुच्छेद 324 से 329 में ECI के संबंध में प्रावधान है।
  • यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा एवं राज्य विधानसभाओं तथा देश में राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के पदों के लिये चुनाव का उपबंध करता है।
  • इसका राज्यों में पंचायतों एवं नगर पालिकाओं के चुनावों से कोई संबंध नहीं है।
  • इसके लिये भारतीय संविधान में एक अलग राज्य चुनाव आयोग का उपबंध उल्लिखित है।

चुनाव से संबंधित मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • द्रविड़ मुनेत्र कड़गम बनाम तमिलनाडु राज्य, (2020)
    • इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 243O एवं 243ZG का निर्वचन किया गया, जो अनुच्छेद 329 के समान हैं।
    • यह निर्धारित किया गया कि एक संवैधानिक न्यायालय चुनावों को सुविधाजनक बनाने के लिये या जब दुर्भावनापूर्ण या मनमाने ढंग से सत्ता के प्रयोग का मामला बनता है, तो हस्तक्षेप कर सकता है।
  • मेघराज कोठारी बनाम परिसीमन आयोग एवं अन्य (1966 SCC ऑनलाइन SC 12)
    • यह उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ का निर्णय था।
    • इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप को प्रतिबंधित किया गया था, क्योंकि इससे चुनाव प्रक्रिया में अनावश्यक रूप से विलंब हो सकता था।
    • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय परिसीमन के मामलों में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध का समर्थन नहीं करता है।