न्यायमूर्ति सूर्यकांत
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महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व

न्यायमूर्ति सूर्यकांत

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 03-Jul-2024

परिचय:

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी 1962 को हिसार (हरियाणा) में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1981 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हिसार से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और वर्ष 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से विधि में स्नातक की डिग्री पूरी की।

कॅरियर:

  • न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने वर्ष 1984 में हिसार ज़िला न्यायालय में अपना विधिक व्यवसाय आरंभ कर अपनी पेशेवर यात्रा प्रारंभ की।
  • वर्ष 1985 में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपना विधिक अभ्यास चंडीगढ़ में स्थानांतरित कर दिया, जहाँ उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से संबंधित मामलों पर गहन अध्ययन किया।
  • 7 जुलाई 2000 को उन्हें हरियाणा का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया।
  • मार्च 2001 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
  • 9 जनवरी 2004 को उन्हें पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
  • उन्होंने 5 सितंबर 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया।
  • उन्हें 24 मई 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।

उल्लेखनीय निर्णय:

  • ऐतिहासिक निर्णय:
    • मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम 1996 और भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899 (2023) के अधीन मध्यस्थता समझौतों के बीच परस्पर क्रिया:
    • मुद्दा यह था कि यदि अंतर्निहित अनुबंध पर स्टाम्प नहीं लगाई गई तो क्या मध्यस्थता समझौता अप्रवर्तनीय और अवैध हो जाएगा।
    • न्यायालय ने कहा कि स्टाम्प अधिनियम की धारा 35 स्पष्ट है और यह स्टाम्प रहित दस्तावेज़ को अमान्य बनाती है, शून्य नहीं।
    • स्टाम्प शुल्क का भुगतान न करना एक सुधार योग्य दोष माना जाता है।
    • न्यायालय ने निम्नलिखित निर्णय दिया :
      • जिन समझौतों पर मुहर नहीं लगी है या जिन पर अपर्याप्त रूप से मुहर लगी है, उन्हें स्टाम्प अधिनियम की धारा 35 के तहत साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे समझौतों को शून्य या आरंभ से ही शून्य या अप्रवर्तनीय नहीं माना जाता है।
      • स्टाम्प न लगाना या अपर्याप्त स्टाम्प लगाना एक सुधार योग्य दोष है।
      • स्टाम्पिंग के विषय में आपत्ति, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 8 या 11 के तहत निर्धारित नहीं होती है। संबंधित न्यायालय को यह जाँच करनी चाहिये कि क्या मध्यस्थता समझौता प्रथम दृष्टया उपस्थित है।
      • समझौते पर स्टाम्प लगाने के संबंध में कोई भी आपत्ति, मध्यस्थ न्यायाधिकरण के दायरे में आती है।
      • एन. एन. ग्लोबल मर्केंटाइल (P) लिमिटेड बनाम इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड (2021) और एस. एम. एस. टी एस्टेट्स (P) लिमिटेड बनाम चांदमारी टी कंपनी (P) लिमिटेड, (2011) के निर्णयों को अस्वीकार कर दिया गया। इसके अतिरिक्त, गरवारे वॉल रोप्स लिमिटेड बनाम कोस्टल मरीन कंस्ट्रक्शन एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड, (2019) के खंड 22 और 29 को उस सीमा तक अस्वीकार कर दिया गया।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 के संबंध में (2023):
    • उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के निर्णय की वैधता को यथावत् रखा।
    • न्यायालय ने कहा कि व्याख्या खंड का उपयोग संविधान में संशोधन करने के लिये नहीं किया जा सकता, इसका उपयोग केवल विशेष शब्दों को परिभाषित करने या अर्थ देने के लिये किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370(3) के अंतर्गत एकपक्षीय रूप से यह अधिसूचित करने का अधिकार है कि अनुच्छेद 370 समाप्त हो जाएगा।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने माना कि चूँकि अनुच्छेद 370(1)(d) के अंतर्गत शक्ति के प्रयोग के लिये राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है, इसलिये राष्ट्रपति द्वारा भारत संघ की सहमति प्राप्त करना दुर्भावनापूर्ण नहीं था।
  • एस. जी. वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ (2022):
    • भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 124 A की वैधता को इस आधार पर चुनौती देते हुए याचिकाएँ दायर की गईं कि यह भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19 (1) (A), अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
    • इस मामले में न्यायालय ने आदेश पारित किया कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार को IPC की धारा 124A लागू करके FIR दर्ज करने, कोई भी जाँच जारी रखने या कोई भी दंडात्मक उपाय करने से रोका जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 A से उत्पन्न सभी कार्यवाही स्थगित रखी जाए।
  • लामनी टेक्स बनाम पी. बालासुब्रमण्यम (2022):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब चेक या विलेख पर हस्ताक्षर स्वीकार कर लिये गए, तो ट्रायल कोर्ट को यह मान लेना चाहिये था कि चेक विधिक रूप से लागू करने योग्य ऋण के लिये जारी किया गया था।

हालिया निर्णय:

  • अरविंद कुमार पांडे बनाम गिरीश पांडे (2024):
    • इस मामले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दावा दायर किया गया।
    • मृतका 50 वर्षीय महिला थी जो गृहिणी थी।
    • न्यायालय ने कहा कि गृहिणी की भूमिका परिवार के किसी भी अन्य सदस्य के समान ही महत्त्वपूर्ण है, जिसकी आय परिवार के लिये आजीविका के स्रोत के रूप में मूर्त हो।
    • न्यायालय ने कहा कि एक गृहिणी के रूप में उसकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मासिक आय किसी भी परिस्थिति में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम के अधीन उत्तराखंड राज्य में एक दैनिक श्रमिक को मिलने वाली राशि से कम नहीं हो सकती।
  • दिल्ली सरकार बनाम मेसर्स बीएसके रियलटर्स एलएलपी और अन्य (2024):
    • न्यायालय ने कहा कि मुकदमेबाज़ी के पहले दौर में लिया गया निर्णय, दूसरे दौर पर रोक लगाने के लिये न्यायिक पूर्वनिर्णय के रूप में काम नहीं कर सकता, विशेष रूप से उन स्थितियों पर विचार करते हुए जहाँ व्यापक सार्वजनिक हित दाँव पर लगा हो।
      • यह ज्ञात हुआ कि GNCTD और DDA के बीच न तो उच्च न्यायालय के समक्ष तथा न ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष कोई परस्पर विरोधी हित थे।
      • पहले दौर में उनके बीच कोई विवादित मुद्दा नहीं था।
    • जनहित की चिंता को ध्यान में रखते हुए, दिल्ली सरकार द्वारा दायर अधिकांश अपीलों को स्वीकार कर लिया गया तथा निर्देश जारी किये गए।
      • अन्य मामलों में अलग आदेश पारित किये गए।
    • न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, "न्यायालयों को अधिक लचीला रुख अपनाना चाहिये, क्योंकि कुछ मामले व्यक्तिगत विवादों से परे होते हैं और इनके दूरगामी जनहित निहितार्थ होते हैं”।
  • मरियम फसीहुद्दीन एवं अन्य बनाम राज्य अदुगोडी पुलिस स्टेशन एवं अन्य (2024):
    • न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 के प्रावधानों को लागू करने के लिये अभियोजन पक्ष को न केवल यह सिद्ध करना होगा कि आरोपी ने किसी को धोखा दिया है, बल्कि यह भी सिद्ध करना होगा कि ऐसा करके उसने, उस व्यक्ति को संपत्ति देने के लिये बेईमानी से प्रेरित किया है जिसके साथ धोखाधड़ी हुई है ।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि धोखाधड़ी में सामान्यतः एक पूर्ववर्ती कपटपूर्ण कार्य शामिल होता है, जिसमें किसी व्यक्ति को बेईमानी से किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के किसी भाग को सौंपने के लिये प्रेरित किया जाता है तथा प्रेरित व्यक्ति को उक्त कार्य करने के लिये प्रेरित किया जाता है, जिसे वह प्रलोभन के बिना नहीं करता।