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आपराधिक कानून

शनाख्त परेड परीक्षा

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 18-Mar-2024

जाफर बनाम केरल राज्य

"पुलिस स्टेशन में अभियुक्त व्यक्तियों की पहचान करने वाले अभियोजन पक्ष के साक्षी की गवाही को अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये उचित शनाख्त परेड परीक्षा के रूप में नहीं माना जा सकता है।"

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संदीप मेहता

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने जाफर बनाम केरल राज्य के मामले में माना है कि पुलिस स्टेशन में अभियुक्त व्यक्तियों की पहचान करने वाले अभियोजन पक्ष के साक्षी की गवाही को अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिये उचित शनाख्त परेड परीक्षा (TIP) के रूप में नहीं माना जा सकता है।

जाफर बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 395 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 397 के तहत दण्डनीय अपराध के लिये ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था और उसे 10,000/- रुपए के ज़ुर्माने के साथ सात वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई; ज़ुर्माना अदा न करने पर तीन माह के साधारण कारावास की सज़ा सुनाई।
  • इसके बाद, केरल उच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील दायर की गई।
  • उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता द्वारा दायर अपील को खारिज़ कर दिया और ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि की पुष्टि की गई।
  • इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की
  • ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के साक्षी की गवाही के आधार पर अपीलकर्त्ता को दोषी ठहराया, जिसने स्वीकार किया कि पुलिस ने उसे अपीलकर्त्ता दिखाया था तथा इस तरह, उसने उसकी पहचान की गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने अपील स्वीकार की और अपीलकर्त्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • पीठ में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और संदीप मेहता ने अपीलकर्त्ता को यह कहकर बरी कर दिया कि पुलिस स्टेशन में साक्षी द्वारा अभियुक्त की पहचान को उचित शनाख्त परेड परीक्षा नहीं माना जा सकता है।
  • आगे यह माना गया कि अभियोजन पक्ष के साक्षी ने अभियुक्त व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन में देखकर उनकी पहचान की। उसने आगे स्वीकार किया कि कोई शनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई थी। इस प्रकार, यह देखा जा सकता है कि अपीलकर्त्ता की पहचान काफी संदिग्ध है क्योंकि कोई शनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई है। अभियोजन पक्ष के साक्षी ने स्पष्ट रूप से कहा कि उसने अभियुक्त व्यक्तियों की पहचान की क्योंकि पुलिस ने उसे उन दो लोगों को दिखाया था।

इसमें कौन-से प्रासंगिक विधिक प्रावधान शामिल हैं?

शनाख्त परेड परीक्षा (TIP)

परिचय:

  • अभियुक्त की पहचान स्थापित करने का एक तरीका TIP है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 9 के तहत प्राप्त होता है।
    • IEA की धारा 9 सुसंगत तथ्यों को समझाने या पेश करने के लिये आवश्यक तथ्यों से संबंधित है।

उद्देश्य:

  • परेड का उद्देश्य साक्षियों के एक समूह से, एक अज्ञात व्यक्ति को पहचानने की उसकी क्षमता के संबंध में साक्षी की सत्यता का आकलन करना है जिसे साक्षी ने किसी अपराध के संबंध में देखा था।
  • इसके दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं:
    • जाँच अधिकारियों को संतुष्ट करने के लिये कि एक निश्चित व्यक्ति जिसे साक्षी पहले से नहीं जानता था अपराध के कमीशन में शामिल था।
    • संबंधित साक्षी द्वारा न्यायालय के समक्ष दी गई गवाही की पुष्टि के लिये साक्ष्य प्रस्तुत करना।

आवश्यक तत्त्व:

  • जहाँ तक संभव हो जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पहचान परेड आयोजित की जाएगी।
  • पहचान परेड के दौरान पहचान करने वाले साक्षी द्वारा दिये गए कथनों को कार्यवाही में दर्ज किया जाना चाहिये। यदि कोई साक्षी गलती भी करता है तो उसे दर्ज किया जाना चाहिये।
  • TIP कानून में साक्ष्य का सारभूत आधार नहीं है और इसका उपयोग केवल न्यायालय में दिये गए संबंधित गवाहों के साक्ष्य की पुष्टि या खंडन करने के लिये किया जा सकता है।

निर्णयज विधि:

  • रामकिशन बनाम बॉम्बे राज्य (1955) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने जाँच के दौरान कहा, पुलिस को पहचान परेड आयोजित करने की आवश्यकता है। ये परेड गवाहों को उन संपत्तियों की पहचान करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से कार्य करती हैं जो अपराध का केंद्र बिंदु होते हैं या अपराध में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने में सक्षम होते हैं।

IPC की धारा 395:

  • यह धारा डकैती के लिये दण्ड से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि जो कोई डकैती करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • IPC की धारा 391 के तहत डकैती का अपराध बताया गया है।

IPC की धारा 397:

  • यह धारा मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा, या किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा।