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सांविधानिक विधि
केंद्र और कॉलेजियम प्रणाली
« »19-Oct-2023
स्रोत- द हिंदू
परिचय
हाल ही में, न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल को मणिपुर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है।
- न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल को 13 मार्च, 2008 को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था और वह उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अवर न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहे हैं।
इस नियुक्ति की पृष्ठभूमि
- 5 जुलाई, 2023 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में शीर्ष न्यायालय के कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल को मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की।
- 9 अक्तूबर, 2023 को, उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति पर अंततः केंद्र का ध्यान गया है और इसे जल्द ही अधिसूचित किया जाएगा।
- 16 अक्तूबर, 2023 को उच्चतम न्यायालय की कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल के नाम की सिफारिश किये जाने के तीन माह से अधिक समय के बाद, उन्हें मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया।
- न्यायाधीश मृदुल की नियुक्ति में विलंब का मूल कारण राज्य सरकारों द्वारा प्रस्ताव पर अपना विचार प्रकट करने में विलंब करना है।
नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सरकार और कॉलेजियम प्रणाली के बीच मतभेद
- नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सरकार और कॉलेजियम प्रणाली के बीच मतभेद काफी स्पष्ट है, जो प्रायः प्रज्ज्वलन ताप (flash point) तक पहुँच जाता है।
- उच्चतम न्यायालय अपनी सिफारिशों के प्रति सरकार के चयनात्मक व्यवहार के बारे में मुखर रहा है।
- उदाहरण के लिये, सरकार ने उन नामों को वापस कर दिया है, जिन्हें एक से अधिक बार दोहराया गया है।
- इस मतभेद का एक मुख्य कारण सरकार का राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का समर्थन करना और न्यायपालिका का कॉलेजियम प्रणाली का समर्थन करना है।
- न्यायाधीश संजय किशन कौल की अगुवाई में पीठ ने भारत के महान्यायवादी आर. वेंकटरमणी के साथ इस मामले को साझा कर कहा, कि 11 नवंबर, 2022 से उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम द्वारा की गई सत्तर सिफारिशें केंद्र सरकार के पास लंबित हैं।
नियुक्तियों में विलंब को रोकने हेतु उच्चतम न्यायालय द्वारा उठाए गए कदम
- पीएलआर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स प्राइवेट लिमिटेड (2019) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम प्रस्थापना हेतु निम्नलिखित समयसीमा निर्धारित की है:
- आसूचना ब्यूरो (IB) को उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश की तिथि से 4 से 6 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट/इनपुट केंद्र सरकार को सौंपनी होगी।
- यह वाँछनीय होगा कि केंद्र सरकार राज्य सरकार से विचार और आसूचना ब्यूरो से रिपोर्ट/इनपुट प्राप्त होने की तिथि से 8 से 12 सप्ताह के भीतर फाइल/सिफ़ारिशों को उच्चतम न्यायालय में प्रेषित करे।
- इसके बाद यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह उपर्युक्त विचार पर शीघ्र नियुक्ति करने हेतु आगे बढ़े और निस्संदेह यदि सरकार को उपयुक्तता पर या लोक हित में कोई आपत्ति है, तो उसी अवधि के भीतर इसे विशिष्ट कारण के साथ उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम को दर्ज की गई आपत्ति के लिये वापस भेज सकती है।
- यदि उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम उपर्युक्त इनपुट पर विचार करने के बाद भी सर्वसम्मति से सिफ़ारिशों को दोहराता है तो ऐसी नियुक्ति प्रक्रिया में लाई जानी चाहिये और 3 से 4 सप्ताह के भीतर नियुक्ति की जानी चाहिये।
नियुक्ति संबंधी विधिक् प्रावधान
भारत में, वर्ष 1993 तक, न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से की जाती थी।
वर्ष 1993 से, यह उच्चतम न्यायालय द्वारा विकसित कॉलेजियम प्रणाली बन गई है, जो उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर निर्णय लेती है, हालाँकि नामीय नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी भारत के राष्ट्रपति हैं।
कोलेजियम प्रणाली
- यह उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक संरचना है।
- उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। जबकि,
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम में पदधारी मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
कॉलेजियम प्रणाली का विकास
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981):
- एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) का मामला प्रथम न्यायाधीश मामले के रूप में जाना जाता है।
- यह मामला न्यायाधीशों की नियुक्ति पर था जिसमें न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 124 में परामर्श का अर्थ सहमति नहीं है।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993):
- एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1993) का मामले को दूसरे न्यायाधीश मामले के रूप में जाना जाता है।
- न्यायालय ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की प्राथमिक भूमिका न्यायाधीशों की नियुक्ति में है।
- न्यायिक क्षेत्र में कार्यपालिका का दबदबा नहीं हो सकता।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998):
- यह राष्ट्रपति के निर्देश का मामला था जहाँ न्यायालय ने 'परामर्श' शब्द को न्यायाधीशों की बहुलता के लिये परामर्श के रूप में परिभाषित किया था।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश को कॉलेजियम के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिये।
- चतुर्थ न्यायाधीश मामला (2015):
- उच्चतम न्यायालय के एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में, न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 की संवैधानिकता को रद्द कर दिया।
- अगस्त, 2014 में संसद ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियाँ करने के लिये NJAC अधिनियम, 2014 पारित किया। इस अधिनियम ने NJAC प्रतिपादित करके कॉलेजियम प्रणाली को बदलने की मांग की, जिसे भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा संयुक्त रूप से नियुक्त किये जाने वाले दो प्रतिष्ठित व्यक्ति, भारत के प्रधानमंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता की एक समिति के रूप में प्रस्थापित किया गया।
- न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली को पुनः स्थापित किया।
- उच्चतम न्यायालय के एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में, न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 की संवैधानिकता को रद्द कर दिया।
न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सांविधिक प्रावधान
- भारत के संविधान (COI) का अनुच्छेद 124(2) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को अनुच्छेद 124A में विनिर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित और मुहर लगे अधिपत्र द्वारा नियुक्त किया जाएगा और वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त करने तक पद पर बना रहेगा। बशर्ते कि-
(a) एक न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षरित पत्र द्वारा, अपना पद त्याग सकता है;
(b) एक न्यायाधीश को इस अनुच्छेद के खंड (4) में दिये गए तरीके से उसके पद से हटाया जा सकता है।
- भारत के संविधान (COI) का अनुच्छेद 126 भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जब भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या जब मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा, अपने कार्यालय के कर्त्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तो कार्यालय के कर्त्तव्यों का पालन न्यायालय के ऐसे किसी अन्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा जिसे राष्ट्रपति इस उद्देश्य के लिये नियुक्त करे।
- भारत के संविधान (COI) का अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 124A में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग और राज्य के राज्यपाल तथा मुख्य न्यायाधीश के अलावा किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर हस्ताक्षर और मुहर लगे अधिपत्र द्वारा की जाएगी। अनुच्छेद 224 के अनुसार किसी अतिरिक्त या कार्यवाहक न्यायाधीश के मामले में और किसी अन्य मामले में, जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक पद धारण करेगा।
बशर्ते कि—
(a) एक न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित कर अपने हस्ताक्षरित पत्र द्वारा, अपना पद त्याग सकता है।
(b) राष्ट्रपति द्वारा एक न्यायाधीश को उसके पद से अनुच्छेद 124 के खंड (4) के तहत हटाया जा सकता है।
(c) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किये जाने या राष्ट्रपति द्वारा भारत की क्षेत्रीय सीमा में किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किये जाने से रिक्त हो जाएगा।
(2) कोई व्यक्ति उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये भारत का नागरिक होना अनिवार्य है; और-
(a) कम-से-कम दस वर्षों तक भारत के क्षेत्र में न्यायिक पद पर रहा हो; या
(b) कम-से-कम दस वर्षों तक उच्च न्यायालय या दो या अधिक उच्च न्यायालयों का अधिवक्ता रहा हो।
- भारत के संविधान (COI) का अनुच्छेद 223 उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जब किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या जब ऐसा कोई मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थिति के कारण या अन्यथा, अपने कार्यालय के कर्त्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तो कार्यालय के कर्त्तव्यों का पालन न्यायालय के ऐसे किसी अन्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा जिसे राष्ट्रपति इस उद्देश्य के लिये नियुक्त करे।
निष्कर्ष
न्यायपालिका का राजनीतिकरण करने और उसकी स्वतंत्रता पर हमला करने के लिये NJAC की आलोचना की गई थी। जबकि सरकार कॉलेजियम प्रणाली की अस्पष्टता, पक्षपात की गुंजाइश और न्यायाधीशों को उनके वास्तविक कार्य से ध्यान भटकाने के लिये आलोचना करती है क्योंकि नियुक्ति एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, जो न्यायपालिका के बहुमूल्य समय का अतिक्रमण करती है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संरक्षित करने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिये एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय आ गया है, जो न्यायिक प्रधानता को सुनिश्चित करता है, न कि न्यायिक विशिष्टता।