होम / भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता एवं दण्ड प्रक्रिया संहिता
आपराधिक कानून
परिहार
« »19-Mar-2024
परिचय:
परिहार से तात्पर्य किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दी गई सज़ा में कमी या लघुकरण से है, और कई कारकों तथा विचारों के आधार पर कारावास या अन्य दण्ड की अवधि को कम करने की अनुमति देता है, दूसरे शब्दों में, सज़ा की प्रकृति को प्रभावित किये बिना, यह केवल सज़ा की अवधि में कमी है।
परिहार के उद्देश्य:
- परिहार का प्राथमिक उद्देश्य मामले के कुछ पहलुओं पर विचार करना होता है जो विधिक न्यायालय में कार्यवाही के दौरान उत्पन्न नहीं होते और कार्यपालिका कानून के अनुसार, सज़ा में परिहार, निलंबन या लघुकरण के माध्यम से दोषी पर दया दिखा सकती है।
- परिहार में, सज़ा की प्रकृति को बदले बिना सज़ा की अवधि कम कर दी जाती है। कैदी को शर्तों के साथ या बिना शर्तों के रिहा किया जाता है और कानून की नज़र में वह एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा।
- हालाँकि, परिहार की किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में, इसे रद्द कर दिया जाएगा, और दोषी को वह पहले वाली अवधि पूरी करनी होगी जिसके लिये उसे मूल रूप से सज़ा सुनाई गई थी।
- किसी कैदी को परिहार पर रिहा करने की शक्ति के प्रयोग को दान या करुणा के कार्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये, बल्कि निर्धारित शर्तों को पूरा करने पर आवश्यक विधिक कर्त्तव्य के निर्वहन के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि किसी कैदी द्वारा जेल में उसके अच्छे आचरण के आधार पर परिहार अर्जित किया जाता है।
परिहार के लिये वैधानिक प्रावधान:
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) जेल की सज़ा में परिहार का प्रावधान करती है, जिसका अर्थ है कि पूरी सज़ा या उसका कुछ हिस्सा रद्द किया जा सकता है।
- CrPC की धारा 432 दण्डादेश को निलंबन करने या परिहार करने की शक्ति से संबंधित है।
- CrPC की धारा 432, किसी अपराध के लिये किसी भी सज़ा पर लागू होती है।
- यह धारा सरकार को ज़ुर्माने की सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से परिहार करने का अधिकार देती है, जो कि एक मूल सज़ा है, लेकिन ज़ुर्माने का भुगतान न करने पर कारावास की सज़ा का परिहार नहीं करती है।
- CrPC की धारा 432 के तहत, समुचित सरकार किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से, शर्तों के साथ या बिना शर्तों के, निलंबित या परिहार कर सकती है।
(i) जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिये दण्डादेश दिया जाता है, तब समुचित सरकार किसी समय, शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों पर जिन्हें दण्डादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करे, उसके दण्डादेश के निष्पादन का निलंबन या जो दण्डादेश उसे दिया गया है उसका पूरे का या उसके किसी भाग का परिहार कर सकती है।
(ii) जब कभी समुचित सरकार से दण्डादेश के निलंबन या परिहार के लिये आवेदन किया जाता है, तब समुचित सरकार उस न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से, जिसके समक्ष दोषसिद्धि हुई थी या जिसके द्वारा उसकी पुष्टि की गई थी, अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस बारे में कि आवेदन मंज़ूर किया जाए या नामंज़ूर किया जाए, अपनी राय ऐसी राय के लिये अपने कारणों सहित कथित करे और अपनी राय के कथन के साथ विचारण के अभिलेख की, या उसके ऐसे अभिलेख की, जैसा विद्यमान हो, प्रमाणित प्रतिलिपि भी भेजे।
(iii) यदि कोई शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया गया है, समुचित सरकार की राय में पूरी नहीं हुई है तो समुचित सरकार निलंबन या परिहार को रद्द कर सकती है और तब, यदि वह व्यक्ति, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया गया था मुक्त है, तो वह किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है और दण्डादेश के अनवसित भाग को भोगने के लिये प्रतिप्रेषित किया जा सकता है।
(iv) वह शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलंबन या परिहार इस धारा के अधीन किया जाए, ऐसी हो सकती है जो उस व्यक्ति द्वारा, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया जाए, पूरी की जाने वाली हो या ऐसी हो सकती है जो उसकी इच्छा पर आश्रित न हो।
(v) समुचित सरकार दण्डादेशों के निलंबन के बारे में, तथा उन शर्तों के बारे में जिन पर अर्ज़ियाँ उपस्थित की और निपटाई जानी चाहिएँ, साधारण नियमों या विशेष आदेशों द्वारा निदेश दे सकती है। परंतु अठारह वर्ष से अधिक की आयु के किसी पुरुष के विरुद्ध किसी दण्डादेश की दशा में (जो ज़ुर्माने के दण्डादेश से भिन्न है) दण्डादिष्ट व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई कोई ऐसी अर्ज़ी तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी, जब तक दण्डादिष्ट व्यक्ति जेल में न हो।
(vi) ऊपर की उपधाराओं के उपबंध दण्ड न्यायालय द्वारा इस संहिता की या किसी अन्य विधि की किसी धारा के अधीन पारित ऐसे आदेश को भी लागू होंगे जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्बंधित करता है या उस पर या उसकी संपत्ति पर कोई दायित्व अधिरोपित करता है। - समुचित सरकार पद से अर्थ है:-
(i) उन दशाओं में जिनमें दण्डादेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिये हैं, या उपधारा (6) में निर्दिष्ट आदेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के अधीन पारित किया गया है, जिस विषय पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, केंद्रीय सरकार, अभिप्रेत है।
(ii) अन्य दशाओं में, उस राज्य की सरकार अभिप्रेत है जिसमें अपराधी दण्डादिष्ट किया गया है या उक्त आदेश पारित किया गया है। - परिहार की शक्ति एक कार्यकारी कार्रवाई होती है और इसका प्रयोग मनमाने ढंग से नहीं, बल्कि निष्पक्षता से किया जाना चाहिये।
- CrPC की धारा 433A राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्ति को इस तरह प्रतिबंधित करती है कि वे मृत्यु की सज़ा को 14 वर्ष से कम की उम्रकैद में नहीं बदल सकते।
संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान, 1950 (COI) द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को क्षमादान की संप्रभु शक्ति प्रदान की गई है।
- COI के अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति के पास मंत्रिपरिषद के परामर्श से किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा करने, प्रविलंबन करने, विराम देने या परिहार करने या निलंबित करने, कम करने की शक्ति है।
- इसी प्रकार, COI के अनुच्छेद 161 के तहत, ये शक्तियाँ राज्यों के राज्यपालों को प्रदान की जाती हैं।
निर्णयज विधि:
- हरियाणा राज्य बनाम महेंद्र सिंह (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भले ही किसी भी दोषी के पास सज़ा के परिहार का मौलिक अधिकार नहीं होता है, फिर भी राज्य को सज़ा के परिहार की अपनी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हुए प्रत्येक मामले प्रासंगिक कारक को ध्यान में रखते हुए विचार करना चाहिये। इसके अलावा, न्यायालय का यह भी विचार था कि परिहार के लिये विचार किये जाने के अधिकार को कानूनी माना जाना चाहिये।
- हितेश @ बावको शिवशंकर देव बनाम गुजरात राज्य (2023) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कि आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे दोषी को सज़ा परिहार करने का अधिकार कानून के तहत होगा जैसा कि उस तारीख को प्रचलित था जिस दिन दोषसिद्धि और सज़ा का निर्णय सुनाया गया था।