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सांविधानिक विधि
अंतर्राज्यीय परिषद
« »08-Mar-2024
परिचय:
भारत के संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 263 केंद्र तथा राज्यों के मध्य समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से अंतर्राज्यीय परिषद के गठन का प्रावधान करता है।
भारत के संविधान(COI) का अनुच्छेद 263:
यह अनुच्छेद एक अंतर्राज्यीय परिषद के संबंध में प्रावधानों से संबंधित है। जो प्रकट करता है कि-
यद्यपि राष्ट्रपति को परिषद के कार्यों को निर्धारित करने की शक्ति है, फिर भी अनुच्छेद 263 इसके कर्त्तव्यों का उल्लेख करता है-
(a) राज्यों के मध्य होने वाले विवादों की जाँच करना और इस संबंध में सलाह देना।
(b) विभिन्न राज्यों और केंद्र तथा राज्यों के समान हित वाले विषयों पर अन्वेषण तथा विचार-विमर्श करना।
(c) समान हित वाले विषयों पर सिफारिशें करना, और विशेष रूप से उस विषय के संबंध में नीति तथा कार्रवाई के बेहतर समन्वय के लिये सिफारिशें करना। राष्ट्रपति के लिये ऐसी परिषद की स्थापना करना और कर्त्तव्यों की प्रकृति को परिभाषित करना वैध होगा। इसे संगठन एवं प्रक्रिया द्वारा निष्पादित किया जाएगा।
अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना:
- राष्ट्रपति किसी भी समय ऐसी परिषद की स्थापना कर सकता है, यदि उसे लगे कि इसकी स्थापना से सार्वजनिक हितों की पूर्ति होगी।
- राष्ट्रपति ऐसी परिषद द्वारा निभाए जाने वाले कर्त्तव्यों की प्रकृति और उसके संगठन एवं प्रक्रिया को परिभाषित कर सकता है।
- परिषद की बैठक वर्ष में कम से कम तीन बार हो सकती है और सभी प्रश्नों पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है।
- परिषद की एक स्थायी समिति भी होती है।
अंतर्राज्यीय परिषद की पृष्ठभूमि:
- सरकारिया आयोग (1983-88) ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार परिभाषित अधिदेश के अनुसरण में परामर्श करने के लिये एक स्वतंत्र राष्ट्रीय फोरम के रूप में अंतर्राज्यीय परिषद स्थापित किये जाने की महत्त्वपूर्ण सिफारिश की थी।
- परिषद की स्थापना वर्ष 1990 में हुई थी।
अंतर्राज्यीय परिषद की संरचना:
- इसमें निम्नलिखित सदस्य शामिल हैं:
- अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री
- सभी राज्यों के मुख्यमंत्री
- विधान सभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री
- केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासक जिनके पास विधान सभाएँ नहीं हैं।
- राष्ट्रपति शासन के अधीन राज्यों के राज्यपाल।
- गृह मंत्री सहित छह केंद्रीय कैबिनेट मंत्रियों को प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाएगा।
- परिषद के अध्यक्ष (अर्थात, प्रधानमंत्री) द्वारा नामित कैबिनेट रैंक के पाँच मंत्री / राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) परिषद में स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं।
अंतर्राज्यीय परिषद के कार्य:
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत उच्चतम न्यायालय के क्षेत्राधिकार के पूरक अंतर-राज्य विवादों की जाँच करना और सलाह देना।
- परिषद किसी भी विवाद से निपट सकती है, चाहे वह कानूनी हो या गैर-कानूनी, लेकिन इसका कार्य अदालत के विपरीत सलाहकारी है जो बाध्यकारी निर्णय देता है।
- देश में सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने और उसका समर्थन करने के लिये एक मज़बूत संस्थागत ढाँचा तैयार करना तथा नियमित बैठकें आयोजित करके परिषद व क्षेत्रीय परिषदों को सक्रिय करना।
- क्षेत्रीय परिषदों और अंतर्राज्यीय परिषद द्वारा केंद्र-राज्य तथा अंतर-राज्य संबंधों के सभी लंबित व उभरते मुद्दों पर विचार करने की सुविधा प्रदान करता है।
- उनके द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक प्रणाली विकसित करना।