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आपराधिक कानून
मानहानि की अवधारणा
« »31-Jan-2024
संजय उपाध्या बनाम आनंद दुबे "परिणामस्वरूप, IPC की धारा 500 के तहत प्रतिवादी-शिकायतकर्त्ता द्वारा दायर शिकायत के अनुसरण में अपीलकर्त्ता के विरुद्ध की जाने वाली सभी कार्यवाही रद्द की जाती है।" न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 500 के तहत एक अखबार के विरुद्ध मानहानि की शिकायत को खारिज़ कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने संजय उपाध्या बनाम आनंद दुबे के मामले में शिकायत को रद्द कर दिया।
संजय उपाध्याय बनाम आनंद दुबे मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- शिकायतकर्त्ता द्वारा दर्ज IPC की धारा 500 के तहत अभियोजन का सामना कर रहे अभियुक्त (अपीलकर्त्ता) ने तत्काल अपील दायर की।
- कथित तौर पर, अपीलकर्त्ता, 'संडे ब्लास्ट' एक अखबार के मालिक ने तथ्यों की पुष्टि किये बिना एक मानहानिकारक लेख प्रकाशित किया।
- वर्ष 2017 में मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज़ की गई शिकायत के बावजूद, एक पुनरीक्षण प्रक्रिया ने वर्ष 2018 में निर्णय को उलट दिया।
- उच्च न्यायालय में अपीलकर्त्ता की याचिका को वर्ष 2020 में खारिज़ कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "परिणामस्वरूप, IPC की धारा 500 के तहत प्रतिवादी-शिकायतकर्त्ता द्वारा दायर शिकायत के अनुसरण में अभियुक्त अपीलकर्त्ता के विरुद्ध की जाने वाली सभी कार्यवाहियाँ भी रद्द कर दी जाती है"।
- उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय इस आधार पर लिया कि प्रारंभिक खारिज़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए उचित आधार पर की गई थी।
- प्रकाशन संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए सद्भाव में किया गया था।
- इस प्रकार, निचले न्यायालय का निर्णय न्यायसंगत रहा, इसमें आगे किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी।
मानहानि के अभिकथन की अवधारणा और अपवाद क्या है?
- अवधारणा:
- IPC में धारा 499 और 500 मानहानि से संबंधित हैं। मानहानि एक ऐसा कथन कहने का कृत्य है जो किसी व्यक्ति या इकाई की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाता है।
- IPC की धारा 500 मानहानि के लिये सज़ा का प्रावधान करती है। जो कोई किसी अन्य व्यक्ति की मानहानि करेगा, वह सादा कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
- हालाँकि, भारतीय कानून के तहत मानहानि के कुछ अपवाद हैं, जो IPC की धारा 499 में उल्लिखित हैं।
- ये अपवाद कुछ परिस्थितियों में मानहानि के अभियुक्त व्यक्तियों को प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं।
- अपवाद:
- सत्य:
- यदि कोई कथन सत्य है और साक्ष्य के साथ उचित ठहराया जा सकता है तो उसे मानहानिकारक नहीं माना जाता है।
- सत्य मानहानि के अभिकथनों के विरुद्ध एक मान्य प्रतिरक्षा है।
- लोक कल्याण:
- लोक कल्याण के हित में दिये गए कथनों को मानहानिकारक नहीं माना जाता है।
- यदि कोई कथन लोक कल्याण या लोक हित के आशय से दिया गया है, तो इसे मानहानिकारक नहीं माना जा सकता है।
- राय:
- तथ्य के दावे के विपरीत राय की अभिव्यक्ति को आमतौर पर मानहानिकारक नहीं माना जाता है।
- हालाँकि, यदि कोई राय तथ्य के कथन के रूप में प्रस्तुत की जाती है और किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाती है, तो यह अभी भी कार्रवाई योग्य हो सकती है।
- उचित टिप्पणी:
- लोक हित के मामलों पर उचित टिप्पणियाँ मानहानिकारक नहीं मानी जातीं।
- यह अपवाद व्यक्तियों को मानहानि के आरोपों का सामना किये बिना लोक चिंता के मामलों पर अपनी राय या आलोचना व्यक्त करने की अनुमति देता है, जब तक कि टिप्पणियाँ उचित हों और सद्भाव स्वरूप की गई हों।
- विशेषाधिकार:
- कानून द्वारा मान्यता प्राप्त कुछ विशेषाधिकारों के तहत दिये गए कथनों को मानहानि के दावों से छूट दी गई है।
- उदाहरण के लिये, न्यायिक कार्यवाही, विधायी बहस या सरकारी अधिकारियों द्वारा अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान दिये गए कथनों को मानहानि के दावों से बचाया जा सकता है।
- सत्य:
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) में मानहानि की स्थिति:
- BNS की धारा 356 मानहानि के अपराध की परिभाषा और सज़ा प्रदान करती है।