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आपराधिक कानून
हत्या के मामलों में परिहार
« »21-Mar-2024
नवास @ मुलानावास बनाम केरल राज्य न्यायालय ने उन कारकों को संक्षेप में प्रस्तुत किया, जिन पर न्यायालय ने सज़ा में परिहार मांगने से पहले दोषी की सज़ा की अवधि तय करते समय विचार किया था। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, के.वी. विश्वनाथन और संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने नवास @ मुलानावास बनाम केरल राज्य के मामले में कुछ कारकों को संक्षेप में प्रस्तुत किया, जिन पर न्यायालय ने सज़ा में परिहार मांगने से पहले दोषी की सज़ा की अवधि तय करते समय विचार किया था।
नवास @ मुलानावास बनाम केरल राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता (एकमात्र अभियुक्त) को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये दोषी पाया।
- उपरोक्त कृत्य कारित करने के बाद अभियुक्त ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया।
- ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 302 के तहत दण्डनीय अपराध के लिये अभियुक्त को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई।
- जब मामला केरल उच्च न्यायालय के समक्ष पुष्टि के लिये गया, तो उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए सज़ा में संशोधन किया।
- मृत्युदण्ड को संशोधित किया गया और इसे बदलकर आजीवन कारावास में बदल दिया गया, साथ ही निर्देश दिया गया कि अभियुक्त को जीवनकालीन कारावास में नहीं भेजा जाएगा, बल्कि पूर्व से हो चुकी सज़ा के साथ मिलाकर कुल 30 वर्ष की सज़ा निर्धारित की जाएगी।
- इससे व्यथित होकर अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।
- अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, के.वी. विश्वनाथन और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि उदाहरण के तौर पर मामले के लिये सबसे उपयुक्त वर्षों की संख्या तक पहुँचने की प्रक्रिया में, दोषी को सज़ा से गुज़रना होगा, जिसके पहले परिहार की शक्तियों का उपयोग किया जा सकता है, कुछ प्रासंगिक कारक जिन्हें न्यायालय ध्यान में रखते हैं, वे हैं: -
(a) उस अपराध के पीड़ित मृतकों की संख्या और उनकी आयु व लिंग।
(b) लैंगिक उत्पीड़न सहित क्षति की प्रकृति, यदि कोई हो।
(c) जिस उद्देश्य से अपराध किया गया था।
(d) क्या अपराध तब किया गया था जब दोषी किसी अन्य मामले में ज़मानत पर था।
(e) अपराध की पूर्वचिंतित प्रकृति।
(f) अपराधी और पीड़ित के बीच संबंध।
(g) विश्वास का दुरुपयोग, यदि कोई हो।
(h) आपराधिक इतिहास और क्या दोषी को रिहा किया गया तो वह समाज के लिये खतरा होगा।
न्यायालय ने अभियुक्त की आयु, सुधार की संभावना और पश्चातापपूर्ण आचरण जैसे सकारात्मक कारकों को भी सूचीबद्ध किया। कुछ सकारात्मक कारक हैं:
दोषी की आयु।
दोषियों के सुधार की संभावना।
दोषी कोई पेशेवर हत्यारा नहीं है।
अभियुक्त की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
अभियुक्त के परिवार की संरचना।
पश्चाताप व्यक्त करने वाला आचरण।
न्यायालय ने आगे कहा कि सज़ा की अवधि तय करने के लिये कोई स्ट्रेटजैकेट फॉर्मूला (एक गणितीय सूत्र) नहीं है। हालाँकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि इस विवेकाधिकार का प्रयोग उचित आधार पर किया जाना चाहिये।
परिहार क्या है?
परिचय:
- परिहार सामान्यतः उस सज़ा का निलंबन करने या परिहार करने को संदर्भित करती है, जो किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति को दी गई है, तथा दूसरे शब्दों में कई कारकों और विचारों में, सज़ा की प्रकृति को प्रभावित किये बिना यह केवल सज़ा की अवधि में कमी को प्रदर्शित करती है।
सांविधिक प्रावधान:
- दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 432 सज़ा को निलंबन करने या परिहार करने की शक्ति से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
(1) जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिये दण्डादेश दिया जाता है, तब समुचित सरकार किसी समय, शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों पर जिन्हें दण्डादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करे, उसके दण्डादेश के निष्पादन का निलंबन या जो दण्डादेश उसे दिया गया है उसके संपूर्ण या किसी भाग का परिहार कर सकती है।
(2) जब कभी समुचित सरकार से दण्डादेश के निलंबन या परिहार के लिये आवेदन किया जाता है, तब समुचित सरकार उस न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से, जिसके समक्ष दोषसिद्धि हुई थी या जिसके द्वारा उसकी पुष्टि की गई थी, अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस बारे में कि आवेदन मंज़ूर किया जाए या नामंज़ूर किया जाए, अपनी राय ऐसी राय के लिये अपने कारणों सहित कथित करे और अपनी राय के कथन के साथ विचारण के अभिलेख की, या उसके ऐसे अभिलेख की, जैसा विद्यमान हो, प्रमाणित प्रतिलिपि भी भेजे।
(3) यदि कोई शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया गया है, समुचित सरकार की राय में पूरी नहीं हुई है तो समुचित सरकार निलंबन या परिहार को रद्द कर सकती है और तब, यदि वह व्यक्ति, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया गया था मुक्त है, तो वह किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है और दण्डादेश के अनवसित भाग को भोगने के लिये प्रतिप्रेषित किया जा सकता है।
(4) वह शर्त, जिस पर दण्डादेश का निलंबन या परिहार इस धारा के अधीन किया जाए, ऐसी हो सकती है जो उस व्यक्ति द्वारा, जिसके पक्ष में दण्डादेश का निलंबन या परिहार किया जाए, पूरी की जाने वाली हो या ऐसी हो सकती है जो उसकी इच्छा पर आश्रित न हो।
(5) समुचित सरकार दण्डादेशों के निलंबन के बारे में, तथा उन शर्तों के बारे में जिन पर अर्ज़ियाँ उपस्थित की और निपटाई जानी चाहियें, साधारण नियमों या विशेष आदेशों द्वारा निदेश दे सकती है।
परंतु अठारह वर्ष से अधिक की आयु के किसी पुरुष के विरुद्ध किसी दण्डादेश की दशा में (जो ज़ुर्माने के दण्डादेश से भिन्न है) दण्डादिष्ट व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई कोई ऐसी अर्ज़ी तब तक ग्रहण नहीं की जाएगी, जब तक दण्डादिष्ट व्यक्ति जेल में न हो।
(a) जहाँ ऐसी याचिका सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा की जाती है, इसे जेल के भारसाधक अधिकारी के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है; या
(b) जहाँ ऐसी याचिका किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की जाती है, इसमें एक घोषणा होती है कि सज़ा पाने वाला व्यक्ति कारावास में है।
(6) ऊपर की उपधाराओं के उपबंध दण्ड न्यायालय द्वारा इस संहिता की या किसी अन्य विधि की किसी धारा के अधीन पारित ऐसे आदेश पर भी लागू होंगे जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्बंधित करता है या उस पर या उसकी संपत्ति पर कोई दायित्व अधिरोपित करता है।
(7) समुचित सरकार पद से अर्थ है, -
(a) उन दशाओं में जिनमें दण्डादेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिये हैं, या उपधारा (6) में निर्दिष्ट आदेश ऐसे विषय से संबद्ध किसी विधि के अधीन पारित किया गया है, जिस विषय पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, केंद्रीय सरकार, अभिप्रेत है।
(b) अन्य दशाओं में, उस राज्य की सरकार अभिप्रेत है जिसमें अपराधी दण्डादिष्ट किया गया है या उक्त आदेश पारित किया गया है। - CrPC की धारा 433A कुछ मामलों में परिहार या लघुकरण की शक्तियों पर प्रतिबंध से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि धारा 432 में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिये, जिसके लिये मृत्युदण्ड विधि द्वारा उपबंधित दण्डों में से एक है, आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया गया है, या धारा 433 के अधीन किसी व्यक्ति को दिये गए मृत्यु दण्डादेश का आजीवन कारावास के रूप में लघुकरण किया गया है, वहाँ ऐसा व्यक्ति कारावास से तब तक रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसने चौदह वर्ष का कारावास पूरा न कर लिया हो।
संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान, 1950 (COI) द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को क्षमादान की संप्रभु शक्ति प्रदान की गई है।
- COI के अनुच्छेद 72 के तहत, राष्ट्रपति के पास मंत्रिपरिषद के परामर्श से किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए, किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा करने, प्रविलंबन करने, विराम देने या परिहार करने या निलंबित करने, कम करने की शक्ति है।
- इसी प्रकार, COI के अनुच्छेद 161 के तहत, ये शक्तियाँ राज्यों के राज्यपालों को प्रदान की जाती हैं।
निर्णयज विधि:
- हरियाणा राज्य बनाम महेंद्र सिंह (2007) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भले ही किसी भी दोषी के पास सज़ा के परिहार का मौलिक अधिकार नहीं होता है, फिर भी राज्य को सज़ा के परिहार की अपनी कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हुए प्रत्येक मामले प्रासंगिक कारक को ध्यान में रखते हुए विचार करना चाहिये। इसके अलावा, न्यायालय का यह भी विचार था कि परिहार के लिये विचार किये जाने के अधिकार को कानूनी माना जाना चाहिये।