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व्यापारिक सन्नियम

अंस्टांप्ड माध्यस्थम् समझौते पर सर्वोच्च निर्णय

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 14-Dec-2023

A & C अधिनियम और भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के बीच परस्पर क्रिया से संबंधित

"गैर-स्टांपिंग या अपर्याप्त स्टांपिंग एक सुधार योग्य दोष है।"

सात न्यायाधीशों की पीठ, उच्चतम न्यायालय

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की सात-न्यायाधीश पीठ ने पाया कि माध्यस्थम् समझौते की गैर-स्टांपिंग या अपर्याप्त स्टांपिंग एक सुधार योग्य दोष है।

  • उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 और भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत माध्यस्थम् समझौतों के बीच परस्पर समन्वय के संबंध में दिया।

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 तथा भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 मामले के तहत माध्यस्थम् समझौतों के बीच परस्पर क्रिया की पृष्ठभूमि क्या है?

  • याचिकाकर्त्ताओं द्वारा चुनौती:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि स्टांप में कमी एक सुधार योग्य दोष है, जिसका प्रभाव राज्य का राजस्व हित सुरक्षित होते ही समाप्त हो जाता है।
    • स्टांप शुल्क का भुगतान न करना, एक अस्थायी व्याधि होने के कारण, माध्यस्थम् समझौते की वैधता को प्रभावित नहीं कर सकता है।
    • याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 8 या धारा 11 चरण में न्यायालयों को स्टांपिंग के मुद्दे की जाँच करने का आदेश देना A&C अधिनियम की धारा 5 में निहित न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप के विधायी उद्देश्य को विफल करेगा।
    • माध्यस्थम् न्यायाधिकरण के पास अपने अधिकारिता के तहत शासन करने की क्षमता है, जिसमें सक्षमता-क्षमता के सिद्धांत (Doctrine of Competence-Competence) के तहत स्टांपिंग से संबंधित मुद्दे भी शामिल हैं।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्देश:
    • उच्चतम न्यायालय को एक मुद्दे को हल करने के लिये बुलाया गया था जो तीन कानूनों के संदर्भ में उत्पन्न हुआ था जो कि A&C अधिनियम, भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 और भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act- ICA) हैं।
    • निर्देश के तहत न्यायालय के समक्ष प्रमुख मुद्दा यह था कि यदि अंतर्निहित संविदा पर स्टांप नहीं लगाया गया है तो क्या ऐसे माध्यस्थम् समझौते अस्तित्त्वहीन, अप्रवर्तनीय या अमान्य होंगे?
  • ऐतिहासिक निर्णयों को चुनौती:
    • एन. एन. ग्लोबल मर्केंटाइल (P) लिमिटेड बनाम इंडो यूनिक फ्लेम लिमिटेड (2023):
      • उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ द्वारा दिये गए फैसले पर विचार किया गया, जहाँ उच्चतम न्यायालय ने माना कि माध्यस्थम् समझौते वाला एक अंस्टांप्ड उपकरण ICA की धारा 2 (g) के तहत अमान्य है।
      • न्यायालय ने आगे कहा कि A&C अधिनियम की धारा 11 के तहत कार्य करने वाला न्यायालय स्टांप अधिनियम, 1899 की धारा 33 और 35 के आदेश की अवहेलना नहीं कर सकता है, जिसके लिये अंस्टांप्ड या अपर्याप्त स्टांप्ड उपकरण की जाँच करने और उसे ज़ब्त करने की आवश्यकता होती है।
    • SMS टी. एस्टेट्स (प्राइवेट) लिमिटेड बनाम चांदमारी टी. कंपनी (प्राइवेट) लिमिटेड (2005):
      • उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय पर विचार किया जहाँ उसने माना कि बिना मुहर लगी संविदा में माध्यस्थम् करार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती।
    • गरवारे वॉल रोप्स लिमिटेड बनाम कोस्टल मरीन कंस्ट्रक्शन्स एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (2019):
      • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बिना मुहर लगी वाणिज्यिक संविदा में माध्यस्थम् करार कानून के मामले में "अस्तित्व में" नहीं होगा और जब तक अंतर्निहित संविदा पर विधिवत मुहर नहीं लगाई जाती तब तक उस पर कार्रवाई नहीं की जा सकती।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • अग्राह्यता और शून्यता के बीच अंतर:
    • न्यायालय ने कहा कि जब कोई करार शून्य होता है तो हम न्यायालय में उसकी प्रवर्तनीयता के बारे में बात कर रहे होते हैं। जब यह अग्राह्य होता है, तो हम इस बात का उल्लेख कर रहे होते हैं कि क्या न्यायालय मामले का निर्णय करते समय इस पर विचार कर सकती है या उस पर भरोसा कर सकती है।
      • यह शून्यता और ग्राह्यता के बीच अंतर का सार है।
  • A&C अधिनियम की प्रधानता:
    • न्यायालय ने कहा कि A&C अधिनियम भारत में माध्यस्थम् से संबंधित कानून को मज़बूत करने के लिये बनाया गया एक कानून है। माध्यस्थम् करारों के संबंध में भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 और ICA पर इसकी प्रधानता होगी क्योंकि ये सामान्य कानून हैं।
    • यह घिसा-पिटा कानून है कि एक सामान्य कानून को एक विशेष कानून की जगह देनी चाहिये।
  • बिना मुहर लगे माध्यस्थम् करार की स्थिति:
    • जिन करारों पर मुहर नहीं लगी होती है या अपर्याप्त रूप से स्टांप्ड लगाया जाता है, वे भारतीय स्टांप्ड अधिनियम, 1899 की धारा 35 के तहत साक्ष्य में अस्वीकार्य होते हैं।
    • ऐसे करार प्रारंभ से ही शून्य या अप्रवर्तनीय नहीं होते हैं।
  • माध्यस्थम् करार को जाँच करने की न्यायालय की शक्ति:
    • स्टांप्ड पर आपत्ति A&C अधिनियम की धारा 8 या 11 के तहत निर्धारित नहीं होती है।
    • संबंधित न्यायालय को यह जाँच करनी चाहिये कि प्रथम दृष्टया माध्यस्थम् करार मौजूद है या नहीं।
  • खारिज़ किये गए ऐतिहासिक निर्णय:
    • उच्चतम न्यायालय ने एन. एन. ग्लोबल मर्केंटाइल केस (2023), एस.एम.एस. टी. एस्टेट केस (2005) और गरवारे वॉल रोप्स (2019) के पैरा 22 में दिये गए अपने निर्णय को खारिज़ कर दिया।

इस मामले में माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 के क्या कानूनी प्रावधान शामिल हैं?

  • धारा 8: जहाँ माध्यस्थम् करार है वहाँ पार्टियों को माध्यस्थम् के लिये संदर्भित करने की शक्ति:
    • A&C अधिनियम की धारा 8 आमतौर पर माध्यस्थम् प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप से संबंधित है।
    • यह माध्यस्थम् करार होने पर पार्टियों को माध्यस्थम् के लिये संदर्भित करने और कानूनी कार्यवाही पर रोक लगाने के मुद्दे को संबोधित करती है।
    • यह आमतौर पर माध्यस्थम् करार का सम्मान करने और पार्टियों द्वारा सहमति के अनुसार माध्यस्थम् प्रक्रिया को आगे बढ़ने की अनुमति देने के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
  • A&C अधिनियम की धारा 11: माध्यस्थों की नियुक्ति:
    • A&C अधिनियम की धारा 11 माध्यस्थों की नियुक्ति से संबंधित है।
    • यह उन मामलों में माध्यस्थों की नियुक्ति की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार करती है जहाँ पक्ष स्वयं नियुक्ति पर सहमत होने में असमर्थ होते हैं।
    • यह धारा समय-समय पर माध्यस्थ संस्थानों को नामित करने और माध्यस्थ नियुक्त करने की शक्ति के लिये उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का प्रावधान करती है।