Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री

    «    »
 26-Sep-2024

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश    

हम न्यायालयों को यह नोटिस देते हैं कि "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द का उपयोग किसी भी न्यायिक आदेश या निर्णय में नहीं किया जाएगा। इसके बजाय "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) शब्द का समर्थन किया जाना चाहिये।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

भारत के उच्चतम न्यायालय ने सिफारिश की है कि संसद को "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) से परिवर्तित करने के लिये लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) में संशोधन करना चाहिये।

  • न्यायालय ने कहा कि "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द अपराध की गंभीरता को कम करता है, क्योंकि यह सहमति और स्वैच्छिक कृत्यों को दर्शाता है, जबकि CSEAM बच्चों के शोषण और दुर्व्यवहार को सटीक रूप से दर्शाता है।
  • न्यायालय ने सभी न्यायिक निकायों को इन अपराधों की गंभीरता को उजागर करने के लिये अपने फैसलों में CSEAM का उपयोग करने का निर्देश दिया।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश के मामले में फैसला सुनाया।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 29 जनवरी 2020 को चेन्नई के अंबत्तूर में अखिल महिला पुलिस स्टेशन को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की साइबर टिपलाइन रिपोर्ट के बारे में अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त से सूचना मिली।
  • रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी नंबर 1 चाइल्ड पोर्नोग्राफी का सक्रिय उपभोक्ता था और उसने अपने मोबाइल फोन पर ऐसी सामग्री डाउनलोड की थी।
  • उसी दिन प्रतिवादी नंबर 1 के विरुद्ध सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 67B और लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो) की धारा 14(1) के तहत अपराधों के लिये एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
  • जाँच के दौरान प्रतिवादी का मोबाइल फोन ज़ब्त कर लिया गया और फोरेंसिक जाँच के लिये भेज दिया गया।
  • जाँचकर्त्ताओं द्वारा पूछताछ किये जाने पर प्रतिवादी ने कॉलेज में नियमित रूप से पोर्नोग्राफी देखने की बात स्वीकार की।
  • 22 अगस्त 2020 की कंप्यूटर फोरेंसिक जाँच रिपोर्ट में प्रतिवादी के फोन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित दो वीडियो फाइलों के साथ-साथ सौ से अधिक अन्य अश्लील वीडियो फाइलें पाई गईं।
  • जाँच पूर्ण होने पर 19 सितंबर 2023 को प्रतिवादी के विरुद्ध IT अधिनियम की धारा 67B और पोक्सो की धारा 15(1) के तहत अपराधों के लिये आरोप-पत्र दायर किया गया।
    • एकत्र किये गए साक्ष्य के आधार पर पोक्सो के तहत आरोप को धारा 14(1) से परिवर्तित कर 15(1) कर दिया गया।
  • प्रतिवादी ने मद्रास उच्च न्यायालय में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत एक आपराधिक मूल याचिका दायर की, जिसमें आरोप-पत्र को रद्द करने की मांग की गई।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और 11 जनवरी 2024 को आरोप-पत्र को रद्द कर दिया, जिससे प्रतिवादी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही प्रभावी रूप से समाप्त हो गई।
  • अपीलकर्त्ता, जो मूल कार्यवाही में पक्ष नहीं थे, ने मामले में शामिल सार्वजनिक महत्त्व के गंभीर मुद्दे का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिये उच्चतम न्यायालय से अनुमति मांगी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • मद्रास उच्च न्यायालय:
    • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, यह फैसला सुनाया कि केवल निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या रखना, इसे प्रकाशित या प्रसारित किये बिना, POCSO अधिनियम की धारा 14 (1) या आईटी अधिनियम की धारा 67 B के तहत अपराध नहीं बनता है।
    • उच्च न्यायालय ने कहा कि इन कानूनों के तहत अपराध बनाने के लिये, इस बात का साक्ष्य होना चाहिये कि आरोपी ने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिये किसी बच्चे का इस्तेमाल किया या सामग्री प्रकाशित/प्रसारित की, जो इस मामले में सिद्ध नहीं हुआ।
  • उच्चतम न्यायालय:
    • न्यायालय ने संसद को निर्देश दिया कि वह लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) में संशोधन करने पर विचार करे, ताकि "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) से बदला जा सके।
      • न्यायालय ने सुझाया कि भारत संघ अंतरिम रूप से अध्यादेश के माध्यम से इस संशोधन को लाने पर विचार करे।
    • न्यायालय ने कहा कि, हम न्यायालयों को यह नोटिस देते हैं कि "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द का उपयोग किसी भी न्यायिक आदेश या निर्णय में नहीं किया जाएगा। इसके बजाय "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) शब्द का समर्थन किया जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द अपराध की संपूर्ण सीमा को संबोधित करने में असमर्थ है और अपराध को महत्त्वहीन बना सकता है, क्योंकि पोर्नोग्राफी प्रायः वयस्कों के बीच सहमति से किये गए कृत्यों से संबंधित है।
    • न्यायालय ने कहा कि CSEAM शब्द अधिक सटीक रूप से इस वास्तविकता को दर्शाता है कि ऐसी सामग्री उन घटनाओं का रिकॉर्ड है, जहाँ किसी बच्चे का यौन शोषण या उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया है।
    • न्यायालय ने कहा कि CSEAM शब्द का उपयोग उचित रूप से बच्चे के शोषण और दुर्व्यवहार पर बल देता है, जो कृत्य की आपराधिक प्रकृति और गंभीर प्रतिक्रिया की आवश्यकता को उजागर करता है।
    • न्यायालय ने पाया कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में एक गंभीर त्रुटि की थी, परिणामस्वरूप विवादित निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया।

IT अधिनियम की धारा 67B क्या संबोधित करती है?

  • इलेक्ट्रॉनिक रूप में चाइल्ड पोर्नोग्राफी का प्रकाशन, प्रसारण, निर्माण, संग्रह, ब्राउज़िंग, डाउनलोड, विज्ञापन, प्रचार, आदान-प्रदान या वितरण शामिल है।
  • यौन रूप से स्पष्ट कृत्यों के लिये बच्चों को ऑनलाइन संबंधों में फँसाना या उन्हें कृत्य के लिये लुभाना शामिल है।
  • पहली बार दोषी पाए जाने पर 5 वर्ष का कारावास या 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
  • बाद में दोषी पाए जाने पर: 7 वर्ष तक का कारावास और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना का प्रावधान है।

IT अधिनियम की धारा 67B का विश्लेषण

  • धारा 6767B(a): चाइल्ड पोर्नोग्राफी का प्रसार
    • लैंगिक रूप से स्पष्ट कृत्यों में बच्चों को शामिल करने वाली सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण पर दंडित करता है।
    • वास्तविक प्रकाशन/प्रसारण और प्रक्रिया में आरोपी की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
  • धारा 67B(b): चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री का निर्माण, संग्रह और उससे संबंध 
    • बच्चों को अश्लील/अशिष्ट/लैंगिक रूप से स्पष्ट चित्रित करने वाले विडियो या छवि-आधारित सामग्री के निर्माण को शामिल करता है।
    • ऐसी सामग्री के संग्रह, ब्राउज़िंग, डाउनलोडिंग, विज्ञापन, प्रचार, विनिमय या वितरण को दंडित करता है।
    • सामग्री के निर्माण और उससे संबंध आदि, समेत 67B(a) के प्रावधानों से अधिक व्यापक।
  • धारा 67B(c): यौन कृत्यों के लिये बच्चों को लुभाना
    • कंप्यूटर संसाधनों का उपयोग करके यौन रूप से स्पष्ट कृत्यों में भाग लेने के लिये बच्चों को प्रेरित या लुभाना दंडित करता है।
    • वास्तविक प्रलोभन पर्याप्त है; अपराध के लिये बच्चे की भागीदारी आवश्यक नहीं है।
  • धारा 67B(d): सुकर ऑनलाइन बाल शोषण 
    • सुकर ऑनलाइन बाल शोषण के किसी भी रूप को दंडित करता है।
    • किसी भी विशिष्ट आशय की आवश्यकता नहीं है; कार्य में ऑनलाइन बाल शोषण में सहायता या सक्षमता की संभावना होनी चाहिये।
  • धारा 67B(e): बच्चों से संबंधित लैंगिक कृत्यों की रिकॉर्डिंग
    • बच्चे के साथ या उसकी उपस्थिति में यौन रूप से स्पष्ट कृत्यों की रिकॉर्डिंग को दंडित करता है।
    • बच्चे को शारीरिक रूप से मौजूद होने की आवश्यकता नहीं है; ऐसे कृत्यों (जैसे- वीडियो के माध्यम से) के संपर्क में आना पर्याप्त है।

POCSO अधिनियम का विधायी इतिहास और उद्देश्य क्या है?

  • बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों के संबंध में मौजूदा कानूनों में अपर्याप्तता को दूर करने के लिये अधिनियमित
  • बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से बचाने के लिये एक व्यापक ढाँचा प्रदान करने का लक्ष्य
  • साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, जाँच और परीक्षण प्रक्रियाओं के संदर्भ में बच्चों के अनुकूल बनाया गया

POCSO की धारा 15 का विश्लेषण

  • POCSO के तहत "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" की परिभाषा: 
    • POCSO की धारा 2(1)(d) के अनुसार "बच्चा" अठारह वर्ष से कम आयु का कोई भी हो सकता है।
    • यह परिभाषा लैंगिक-तटस्थ या लैंगिक रूप से अनुकूल नहीं (Gender-Neutral and Gender-Fluid) है।
    • धारा 2(1)(da) के अनुसार "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" किसी भी ऐसे दृश्य चित्रण के रूप में है, जिसमें किसी बच्चे से लैंगिक संबंधी व्यवहार किया गया हो
    • इसमें वास्तविक बच्चे से अलग दिखने वाली तस्वीरें, वीडियो, डिजिटल/कंप्यूटर-जनरेटेड छवियाँ शामिल हैं
    • इसमें बच्चे को चित्रित करने के लिये बनाई गई, अनुकूलित या संशोधित छवियाँ भी शामिल हैं
  • पोर्नोग्राफिक सामग्री में "बच्चे" का निर्धारण:
    • प्रथम दृष्टया उपस्थिति परीक्षण: सामग्री में विवेकशील मस्तिष्क वाले सामान्य व्यक्ति के रूप में बच्चा होना चाहिये
    • उद्देश्यपूर्ण आयु निर्धारण के बजाय व्यक्तिपरक संतुष्टि मानदंड लागू होते हैं
    • तर्क: पोर्नोग्राफिक सामग्री में आयु को निर्णायक रूप से स्थापित करने में व्यावहारिक कठिनाइयाँ
  • धारा 15 के तहत तीन अलग-अलग अपराध:
    • धारा 15(1): चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डिलीट/नष्ट/रिपोर्ट किये बिना संग्रहीत/रखना, साझा/प्रसारित करने का आशय 
    • धारा 15(2): संचारित, प्रदर्शित, प्रचार या वितरण के लिये संग्रहीत/रखना
    • धारा 15(3): व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये संग्रहीत/रखना
  • कब्ज़े की अवधारणा:
    • वर्ष 2019 में हुए संशोधन ने धारा 15 के सभी उपखंडों में "भंडारण" के साथ-साथ "कब्ज़ा" शब्द भी जोड़ा
    • इसमें रचनात्मक कब्ज़े की अवधारणा शामिल है: तत्काल भौतिक कब्ज़े के बगैर भी नियंत्रण करने की शक्ति या आशय
  • दोषी मानसिक स्थिति की धारणा (POCSO की धारा 30):
    • विशेष न्यायालय POCSO के तहत अभियोजन में दोषी मानसिक स्थिति के अस्तित्व की धारणा बनाएगा
    • अभियुक्त ऐसी मानसिक स्थिति के दोष को सिद्ध करके इस धारणा का खंडन कर सकता है
    • खंडन के लिये साक्ष्य का मानक: उचित संदेह से परे
    • "दोषी मानसिक स्थिति" में आशय, उद्देश्य, किसी तथ्य का ज्ञान और किसी तथ्य पर विश्वास करने का कारण शामिल है

बाल यौन शोषण एवं शोषण सामग्री (CSEAM) के संबंध में उच्चतम न्यायालय ने भारत संघ को क्या सुझाव दिये हैं?

  • इन अपराधों की प्रकृति को अधिक सटीक रूप से दर्शाने के लिये "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) से परिवर्तित करने के लिये POCSO अधिनियम में संशोधन करने पर विचार करें। यह संशोधन या अध्यादेश के माध्यम से किया जा सकता है।
  • संभावित अपराधियों को रोकने में सहायता करने के लिये CSEAM के कानूनी और नैतिक प्रभावों के बारे में जानकारी शामिल करने वाले व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करना।
  • पीड़ितों के लिये सहायता सेवाएँ और अपराधियों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान करना, जिसमें मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप तथा शैक्षिक सहायता शामिल है।
  • CSEAM की वास्तविकताओं और इसके परिणामों के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाना ताकि इसकी व्यापकता को कम करने में सहायता मिल सके।
  • समस्याग्रस्त यौन व्यवहार (PSB) वाले युवाओं के लिये प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप रणनीतियों को लागू करना, जिसमें चेतावनी संकेतों को पहचानने के लिये शिक्षकों, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और कानून प्रवर्तन के लिये प्रशिक्षण शामिल है।
  • PSB को रोकने में सहायता करने के लिये छात्रों को स्वस्थ संबंधों, सहमति और उचित व्यवहार के बारे में शिक्षित करने के लिये स्कूल-आधारित कार्यक्रम लागू करना
  • स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिये एक व्यापक कार्यक्रम तैयार करने के लिये एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर विचार करना, साथ ही कम उम्र से ही बच्चों के बीच POCSO के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • न्यायालयों को सभी न्यायिक आदेशों और निर्णयों में "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" के स्थान पर "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" (CSEAM) शब्द का प्रयोग करना चाहिये