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वाणिज्यिक विधि

सरकारी उपक्रम एवं मध्यस्थ पंचाट

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 05-Nov-2024

इंटरनेशनल सीपोर्ट ड्रेजिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम कामराजर पोर्ट लिमिटेड

"प्रस्तुत की जाने वाली प्रतिभूति का स्वरूप इस तथ्य पर निर्भर नहीं होना चाहिये कि पक्ष एक सांविधिक या अन्य सरकारी निकाय है या निजी उपक्रम है।"

मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि पक्षकारों को कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती, क्योंकि वह एक सरकारी उपक्रम है। 

  • उच्चतम न्यायालय ने इंटरनेशनल सीपोर्ट ड्रेजिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम कामराजर पोर्ट लिमिटेड के मामले में यह पंचाट दिया।

इंटरनेशनल सीपोर्ट ड्रेजिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम कामराजर पोर्ट लिमिटेड मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता को कामराजर बंदरगाह पर कैपिटल ड्रेजिंग तृतीय चरण को निष्पादित करने के लिये लगभग 274 करोड़ रुपये की राशि की निविदा आमंत्रित किया। 
  • पक्षकारों ने 12 अगस्त 2015 को कुछ कार्यों को पूरा करने के लिये एक संविदा में भागीदार बने। 
  • पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ तथा अपीलकर्त्ता ने मध्यस्थता खंड का आह्वान किया।
  • कार्यवाही प्रारंभ हुई तथा 7 मार्च 2024 को पंचाट दिया गया। 
  • प्रतिवादी ने माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 (A & C एक्ट) की धारा 34 के अंतर्गत पंचाट को चुनौती दी तथा उसके निष्पादन पर रोक लगाने के लिये आवेदन किया। 
  • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा आठ सप्ताह की अवधि के अंदर बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की शर्त पर पंचाट के निष्पादन पर रोक लगा दी।
  • अपीलकर्त्ता यानी मूल दावेदार ने उपरोक्त पंचाट पर इस आधार पर प्रश्न किया कि चूंकि यह पंचाट A&C अधिनियम की धारा 36 के अंतर्गत एक मौद्रिक डिक्री के रूप में संचालित होता है, इसलिये उच्च न्यायालय द्वारा मूल राशि के संबंध में केवल बैंक गारंटी प्रस्तुत करने का निर्देश देना न्यायोचित नहीं था। 
  • अपीलकर्त्ता का मामला यह है कि प्रतिवादी को पंचाट के निष्पादन पर रोक लगाने की शर्त के रूप में दी गई राशि जमा करानी चाहिये थी।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि A&C अधिनियम की धारा 36 (2) में यह प्रावधान है कि जहाँ अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत आवेदन दायर किया गया है, वहाँ इस तरह के आवेदन को दायर करने से ही पंचाट अप्रवर्तनीय नहीं हो जाएगा, जब तक कि न्यायालय पंचाट पर स्थगन प्रदान नहीं कर देता।
    • इसके अतिरिक्त, धारा 36 (3) का प्रावधान, जिसे 2015 के संशोधन के बाद प्रस्तुत किया गया है, यह प्रावधान करता है कि न्यायालय, धन के भुगतान के लिये मध्यस्थता पंचाट के मामले में स्थगन प्रदान करने के लिये आवेदन पर विचार करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) में निहित प्रावधानों को ध्यान में रखेगा। 
    • दूसरा प्रावधान ऐसी स्थिति प्रदान करता है, जहाँ बिना शर्त स्थगन प्रदान किया जा सकता है।
  • न्यायालय ने अभिनिर्णित किया कि उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा मूल राशि के लिये बैंक गारंटी प्रस्तुत करने की शर्त पर पंचाट के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है।
    • इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय ने यह भी अभिनिर्णित किया कि अपीलकर्त्ता को दिये गए ब्याज एवं लागत के संबंध में आदेश जारी नहीं किये गए हैं, क्योंकि याचिकाकर्त्ता कोई फ्लाई बाय ऑपरेटर नहीं है तथा यह एक सांविधिक उपक्रम है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही के लिये विधि केवल इसलिये भिन्न नहीं हो सकता क्योंकि प्रतिवादी एक सांविधिक उपक्रम है। 
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय को प्रतिवादी की सांविधिक प्राधिकारी के रूप में स्थिति पर रोक लगाने की शर्त पर अपना पंचाट जारी नहीं करना चाहिये था।
  • यह देखा गया कि A&C अधिनियम मध्यस्थता अधिनियम एक स्व-निहित संहिता है - यह सरकारी तथा निजी उपक्रमों के बीच अंतर स्थापित नहीं करता है।
  • प्रस्तुत की जाने वाली सुरक्षा का स्वरूप इस तथ्य पर निर्भर नहीं होना चाहिये कि कोई पक्ष सांविधिक या अन्य सरकारी उपक्रम है या निजी उपक्रम है।
  • जहाँ तक मध्यस्थता अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही का संबंध है, सरकारी उपक्रमओं को निजी पक्षों के समान ही माना जाना चाहिये, सिवाय इसके कि जहाँ विधि द्वारा अन्यथा संकेत दिया गया हो।
  • इसलिये, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिवादी को दी गई राशि के संबंध में बैंक गारंटी प्रस्तुत करने का निर्देश देना सही था, क्योंकि वह एक सांविधिक निकाय है।

सरकारी उपक्रम क्या है?

  • कोलिन्स डिक्शनरी के अनुसार 'उपक्रम' शब्द का अर्थ ऐसी चीज़ से है जो अन्य चीज़ों से अलग मौजूद है तथा जिसकी अपनी एक स्पष्ट पहचान है। 
  • इसी तरह, कोलिन्स डिक्शनरी में 'सरकार' शब्द को ऐसे लोगों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है जो देश पर शासन करने के लिये उत्तरदायी हैं। 
  • वास्तु एवं सेवा कर के अंतर्गत सरकारी उपक्रम शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया गया है:
    • सरकारी उपक्रम का अर्थ है प्राधिकरण या बोर्ड या कोई अन्य निकाय जिसमें सोसायटी, ट्रस्ट, निगम निहित हैं।
      • संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम द्वारा स्थापित; या
      • सरकार द्वारा स्थापित
    • केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, संघ राज्य क्षेत्र या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा सौंपे गए कार्य को पूरा करने के लिये इक्विटी या नियंत्रण के माध्यम से 90% या अधिक भागीदारी।

क्या A&C अधिनियम के अंतर्गत किसी सरकारी उपक्रम के साथ अलग व्यवहार किया जाना चाहिये?

  •  पाम डेवलपमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2019):
    • अधिनियम की धारा 18 में यह स्पष्ट किया गया है कि पक्षकारों के साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा।
    • जब अधिनियम में ऐसा अनिवार्य कर दिया जाता है, तो सरकार को पक्षकार के रूप में कोई विशेष व्यवहार नहीं दिया जा सकता।
    • इस प्रकार, मध्यस्थता अधिनियम की योजना के अंतर्गत, मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत कार्यवाही में धन डिक्री के स्थगन के लिये आवेदन पर विचार करते समय सरकार के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है तथा न ही कोई विभेदक व्यवहार किया जाता है। 
    • A&C अधिनियम की धारा 34 के अंतर्गत कार्यवाही में सरकार द्वारा धारा 36 के अंतर्गत स्थगन के लिये दायर आवेदन पर विचार करते समय सरकार के साथ कोई अपवादात्मक व्यवहार नहीं किया जाएगा।
  • टोक्यो इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (2021):
    • न्यायालय ने माना कि मुख्यतः क्योंकि सार्वजनिक निगम इसमें शामिल हैं, इसलिये विवेकाधिकार का प्रयोग आदेश XLI नियम 5 के अंतर्गत सिद्धांतों पर नहीं बल्कि केवल इसलिये किया जाता है क्योंकि बड़ी मात्रा में राशि मौजूद होती है, और सरकारी निगमों को मध्यस्थ पुरस्कारों के अंतर्गत इन राशियों का भुगतान करना होता है। 
    • ये दोनों ही विचार अप्रासंगिक हैं, जैसा कि हमने पहले बताया था।