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विनिर्दिष्ट अनुतोष के लि ये वाद की परिसीमा अवधि

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 13-Aug-2024

उषा देवी एवं अन्य बनाम राम कुमार सिंह एवं अन्य

“जब वाद परिसीमा के अंदर संस्थित नहीं किया जाता है तो उसे खारिज किया जा सकता है”। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.बी. वराले

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि परिसीमा अवधि के बाद संस्थित किया गया वाद खारिज किये जाने योग्य है।

  • उच्चतम न्यायालय ने उषा देवी एवं अन्य बनाम राम कुमार सिंह एवं अन्य के मामले में यह निर्णय दिया।

उषा देवी एवं अन्य बनाम राम कुमार सिंह एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

  • इस मामले में विवाद राँची ज़िले में स्थित एक भूखंड से संबंधित है।
  • बिहारी लाल ने अपने जीवनकाल में ही 22 जुलाई 1983 को वादी के साथ 70,000 रुपए की बिक्री प्रतिफल के लिये एक करार किया था, जिसमें से 1000 रुपए अग्रिम भुगतान किया गया था।
  • इस बिक्री विलेख को 9 महीने के अंदर निष्पादित किया जाना था। हालाँकि बिक्री विलेख निर्धारित समय के अंदर निष्पादित नहीं किया गया था।
  • बाद में 69,000 की राशि का भुगतान किया गया तथा वादी-प्रतिवादियों को उस स्तर पर संपत्ति का कब्ज़ा दे दिया गया।
    • बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया था, वास्तव में, 17 दिसंबर 1989 को पक्षकारों के मध्य एक नया करार निष्पादित किया गया था।
    • करार में एक खंड यह प्रावधानित था कि नए करार के संबंध में बिक्री विलेख एक महीने के अंदर यानी 16 जनवरी 1990 तक निष्पादित किया जाना था।
  • चूँकि बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया था, इसलिये सितंबर 1993 में विनिर्दिष्ट अनुतोष के लिये एक वाद संस्थित किया गया था।
  • उच्च न्यायालय ने प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय एवं डिक्री की पुष्टि करते हुए प्रतिवादियों द्वारा संस्थित विनिर्दिष्ट अनुतोष के वाद को डिक्री दिया।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इस मामले में कई विषय अंतर्निहित थे लेकिन न्यायालय ने स्वयं को इन विषयों तक सीमित रखा कि क्या वाद परिसीमा अवधि द्वारा वर्जित था।
  • न्यायालय ने पाया कि परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 54 में विनिर्दिष्ट अनुतोष का वाद संस्थित करने के लिये परिसीमा अवधि का प्रावधान है।
  • तथ्यों के अनुसार बिक्री विलेख एक महीने के अंदर यानी 16 जनवरी 1990 तक निष्पादित किया जाना था।
  • एक बार जब विनिर्दिष्ट अनुपालन की तिथि समाप्त हो जाती है, तो परिसीमा अवधि प्रारंभ हो जाएगी।
  • इस प्रकार, यहाँ वाद 16 जनवरी 1993 तक संस्थित किया जा सकता था।
  • हालाँकि वर्तमान तथ्यों में वाद सितंबर 1993 को संस्थित किया गया था। इस प्रकार, न्यायालय ने परिसीमा अवधि के आधार पर वाद को खारिज कर दिया।

विनिर्दिष्ट अनुतोष का वाद क्या है?

  • अभिप्राय:
    • विनिर्दिष्ट अनुपालन, विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 (SRA) के अंतर्गत प्रदान किया गया एक उपाय है।
    • इसका उद्देश्य वचन के प्रति दायित्व की विनिर्दिष्ट अनुपालन करना है।
    • SRA की धारा 10 में प्रावधान है कि संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन SRA की धारा 11 (2), धारा 14, धारा 16 में निहित प्रावधानों के अधीन लागू किया जाएगा।
    • धारा 11 (2) में प्रावधान है कि न्यासी (ट्रस्टी) द्वारा की गई कोई भी संविदा लागू नहीं की जा सकती है यदि वह:
      • अपनी शक्तियों से अधिक, या
      • विश्वास भंग
    • धारा 14 में प्रावधान है कि निम्नलिखित संविदा प्रवर्तनीय नहीं हैं:
      • जहाँ धारा 20 के अंतर्गत प्रतिस्थापित अनुपालन है।
      • संविदा प्रकृति में निर्धारणीय है।
      • संविदा पक्ष की व्यक्तिगत योग्यता पर इतना निर्भर है कि इसे विशेष रूप से इसकी भौतिक शर्तों में लागू नहीं किया जा सकता है।
    • संविदा में ऐसे कर्त्तव्य का निरंतर अनुपालन निहित है जिसकी समीक्षा न्यायालय नहीं कर सकता।
    • SRA की धारा 16 राहत के लिये व्यक्तिगत प्रतिबंधों का प्रावधान करती है। निम्नलिखित व्यक्ति के पक्ष में विनिर्दिष्ट अनुतोष की अनुमति नहीं दी जा सकती:
      • धारा 20 के अंतर्गत प्रतिस्थापित निष्पादन किसने प्राप्त किया है,
      • कौन:
        • कार्य करने में असमर्थ हो गया है,
        • संविदा की किसी भी आवश्यक शर्त का उल्लंघन करता है,
        • संविदा का पालन किया जाना शेष है,
        • संविदा के साथ धोखाधड़ी करने वाला कार्य करता है,
        • संविदा के साथ जानबूझकर विपरीत कार्य करता है,
        • संविदा द्वारा स्थापित किये जाने वाले संबंध को नष्ट करने वाला कार्य करता है।
      • जो यह सिद्ध करने में असफल रहता है कि उसने संविदा की उन आवश्यक शर्तों का अनुपालन किया है या अनुपालन करने के लिये सदैव तत्पर एवं इच्छुक रहा है, जिनका अनुपालन उसके द्वारा किया जाना है, सिवाय उन शर्तों के, जिनका अनुपालन प्रतिवादी द्वारा रोका गया है या क्षमा किया गया है।
    • इस खंड के प्रयोजन के लिये:
    • जहाँ किसी संविदा में धन का भुगतान शामिल है, वहाँ वादी के लिये प्रतिवादी को वास्तव में कोई धनराशि देना या न्यायालय में जमा करना आवश्यक नहीं है, सिवाय इसके कि जब न्यायालय द्वारा ऐसा निर्देश दिया गया हो;
    • वादी को संविदा के वास्तविक निर्माण के अनुसार उसका निष्पादन, या निष्पादन के लिये तत्परता एवं इच्छा को सिद्ध करना होगा।
  • विनिर्दिष्ट अनुपालन से राहत अनिवार्य या विवेकाधीन:
    • SRA को वर्ष 2018 में संशोधित किया गया था, जिससे अधिनियम में कुछ बड़े परिवर्तन हुए।
    • इस संशोधन के पीछे मुख्य कारण संविदा के प्रवर्तन में अधिक निश्चितता लाना एवं परिणामस्वरूप “संविदा के प्रवर्तन” और “व्यापारिक सुलभता” में भारत की रैंकिंग में सुधार करना था।
    • ग्लोबल म्यूज़िक जंक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम शत्रुघ्न कुमार उर्फ ​​खेशारी लाल यादव एवं अन्य (2023) मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि वर्ष 2018 में संशोधन के साथ संविदा का विनिर्दिष्ट अनुतोष अपवाद के बजाय एक सामान्य नियम है।
      • न्यायालय ने माना कि विनिर्दिष्ट अनुतोष की प्रकृति न्यायसंगत, विवेकाधीन उपाय से बदलकर सांविधिक उपाय में बदल दी गई है।
  • 2018 संशोधन पूर्वव्यापी या संभावित:
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश ए.वी. रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी एवं न्यायमूर्ति हिमा कोहली की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने माना कि कट्टा सुजाता रेड्डी बनाम सिद्धमसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स (2022) के मामले में 2018 का संशोधन संभावित है।
    • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि 2018 संशोधन उन लेन-देन पर लागू नहीं होगा जो 2018 संशोधन (1 अक्टूबर 2018) के लागू होने से पहले हुए थे।
    • न्यायालय ने माना कि संशोधन पूर्वव्यापी है क्योंकि यह महज़ प्रक्रियागत अधिनियम नहीं है, बल्कि इसके कामकाज में मूलभूत सिद्धांत अंतर्निहित हैं। इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि संशोधन पूर्वव्यापी नहीं है।
  • तत्परता एवं इच्छा:
    • विनिर्दिष्ट अनुपालन के वाद में सिद्ध की जाने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों में से एक है वादी पर संविदा निष्पादित करने के लिये “तत्परता” एवं “इच्छा”।
    • SRA की धारा 16 अनुतोष के लिये व्यक्तिगत प्रतिबंध लगाती है।
    • धारा 16 (c) में प्रावधान है कि किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में विनिर्दिष्ट अनुतोष नहीं किया जा सकता जो यह सिद्ध करने में विफल रहता है कि वह संविदा के अपने हिस्से को पूरा करने के लिये तैयार एवं इच्छुक है।
    • यू.एन. कृष्णमूर्ति बनाम ए.एम. कृष्णमूर्ति (2022) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि
      • तत्परता का अर्थ है संविदा को पूरा करने के लिये पक्ष की क्षमता।
      • इच्छा से अभिप्राय वादी के आचरण से है।

परिसीमा अवधि क्या है?

  • परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 2(j) के अनुसार "परिसीमा अवधि" का अर्थ अनुसूची द्वारा किसी वाद, अपील या आवेदन के लिये निर्धारित परिसीमा अवधि है।
  • परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 3 में प्रावधान है कि निर्धारित अवधि के बाद संस्थित किया गया प्रत्येक वाद, अपील एवं आवेदन खारिज कर दिया जाएगा, भले ही परिसीमा अवधि को बचाव के रूप में स्थापित नहीं किया गया हो।

विनिर्दिष्ट अनुपालन के वाद की परिसीमा अवधि क्या है?

  • परिसीमा अधिनियम, 1963 के अनुच्छेद 54 में प्रावधान है कि संविदा के विशिष्ट निष्पादन के लिये वाद संस्थित करने की सीमा अवधि 3 वर्ष है। जिस समय से अवधि की गणना की जाएगी वह है,
    • अनुपालन के लिये निर्धारित तिथि, या
    • यदि ऐसी कोई तिथि निर्धारित नहीं है, जब वादी को सूचना हो कि प्रदर्शन से मना कर दिया गया है।

विनिर्दिष्ट अनुपालन के वाद की परिसीमा अवधि पर निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • राजेश कुमार बनाम आनंद कुमार एवं अन्य (2024):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि विनिर्दिष्ट अनुतोष के सभी वादों को केवल इसलिये नहीं खारिज किया जाएगा क्योंकि यह करार में निर्धारित परिसीमा अवधि की अनदेखी करते हुए परिसीमा अवधि के अंदर संस्थित किया गया है।
    • तथ्य यह है कि परिसीमा अवधि तीन वर्ष है, इससे तात्पर्य यह नहीं है कि कोई क्रेता वाद संस्थित करने के लिये एक या दो वर्ष तक इंतज़ार कर सकता है।
    • न्यायालय ने माना कि तीन वर्ष की परिसीमा अवधि वादी को संविदा के उल्लंघन के विषय में जानने के बावजूद अंतिम समय में वाद संस्थित करने एवं विनिर्दिष्ट अनुतोष प्राप्त करने की स्वतंत्रता नहीं देती है।
  • विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से सब्बीर (मृत) बनाम विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से अंजुमन (मृतक के बाद) 2023:
    • न्यायालय ने माना कि अनुसूची के अनुच्छेद 54 के अनुसार विनिर्दिष्ट अनुतोष का वाद संस्थित करने की परिसीमा अवधि “संविदा द्वारा निर्धारित तिथि” से 3 वर्ष है या यदि ऐसी कोई तिथि निर्धारित नहीं है तो वादी को “सूचना है कि अनुपालन से मना कर दिया गया है”।
  • ए. वल्लियमई बनाम के.पी. मुरली (2023):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जहाँ संविदा द्वारा अनुपालन का समय निर्धारित नहीं किया गया है, वहाँ अनुसूची के अनुच्छेद 54 भाग II के अनुसार परिसीमा अवधि उस तिथि से चलेगी, जिस दिन वादी को प्रतिवादी की ओर से संविदा को निष्पादित करने से मना करने की सूचना मिली थी, ताकि परिसीमा अवधि निर्धारित की जा सके।