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आप कितने परिचित हैं, अपने संविधान से?

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   07-Sep-2024 | शालिनी वाजपेयी



कुछ देर के लिए सोचिए, अगर आपको किसी ऐसे देश में रहने के लिए कह दिया जाए जहां आपके खाने-पीन, बोलने व नृत्य व उत्सव मनाने से लेकर आपके मनपसंद के कपड़े पहनने तक पर प्रतिबंध अथवा निगरानी हो। जहां आप अपने मनपसंद के हेयरकट नहीं करवा सकते और न ही अपने मनपसंद संगीत को सुन सकते हैं। यहां तक कि आपको ये अधिकार भी न दिया जाए कि आप अपने किचन में कौन-कौन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण रखेंगे और कौन से नहीं। और न ही ये चुनने का अधिकार दिया जाए कि शादी के बाद आप किसकी अराधना या पूजा कर आशीर्वाद लेना चाहते हैं। तो आपको कैसा लगेगा? ज़ाहिर सी बात है; हममें से सभी लोग यही कहेंगे कि ऐसे देश में रहकर घुट-घुटकर मरने से अच्छा है कि किसी जंगल में रह लिया जाए।

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि हम यहां पर किसी काल्पनिक दुनिया की बात नहीं कर रहे। ऐसा देश इसी दुनिया में है और वह है उत्तर कोरिया। जी हां, उत्तर कोरिया में आज भी कोई लोकतंत्र या संविधान नहीं है; वहां तानाशाही चलती है। ये सुनकर रूह कांप जाएगी कि हाल ही में, वहां 30 बच्चों को कतार में खड़े करके सिर्फ इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि उन्होंने दक्षिण कोरियाई सीरियल देखे थे और दक्षिण कोरिया को उत्तर कोरिया अपना दुश्मन मानता है। इतना ही नहीं, वहां 30 सरकारी अधिकारियों को एक साथ फांसी के फंदे पर इसलिए लटका दिया गया क्योंकि वे कुछ महीने पहले आई बाढ़ से हुए जान-माल के नुकसान को रोकने में असफल रहे।

ऐसे में हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि हमें रहने के लिए ऐसी भूमि मिली जहां हमें बोलने की आज़ादी है; अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की आज़ादी है, जहां हमें असहमति जताने व विरोध करने का अधिकार है, जहां जघन्य से जघन्य अपराधी को भी अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाता है। भारत के संविधान के लचीलेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 26 जनवरी 1950 को जब ये लागू हुआ था तब इसमें 22 भाग, 8 अनुसूचियां और 395 अनुच्छेद थे लेकिन परिस्थियों व समय की मांग के अनुसार ढलते-ढलते आज इसमें 22 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हो गई हैं। देश का नागरिक होने के चलते हमारा ये दायित्व है कि हम अपने संविधान को जानें और संविधान को जानने की पहली सीढ़ी है कि उसमें वर्णित अनुच्छेदों को भलीभांति समझें। क्योंकि अनुच्छेदों की ईंटों पर ही संविधान रूपी हमारी मज़बूत इमारत खड़ी है। तो चलिये आपको संक्षेप में बताते हैं कुछ ऐसे महत्वपूर्ण अनुच्छेदों के बारे में, जिन्हें किसी भी स्नातक/परास्नातक, प्रतियोगी छात्र-छात्राओं अथवा देश के एक जागरूक नागरिक को जानना चाहिए-

अनुच्छेद 1: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि इंडिया अर्थात भारत ‘राज्यों का संघ’ होगा।

अनुच्छेद 2: नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना से संबंधित प्रावधान

अनुच्छेद 3: नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन

अनुच्छेद 5: संविधान लागू होने पर नागरिकता

अनुच्छेद-9: इस अनुच्छेद के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी और देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसे भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा और वह अनुच्छेद 5 का लाभ नहीं उठा सकता अर्थात भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता है। दुनिया के कई देश एक से अधिक देशों के नागरिकों को भी नागरिकता देते हैं किंतु भारत का नागरिक होने के लिए शर्त यह है कि आप किसी भी अन्य देश के नागरिक न हों। अगर आप किसी अन्य देश के नागरिक हैं तो भारत की नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकते और यदि आप भारत के नागरिक होते हुए किसी अन्य देश से नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं तो वहां की नागरिकता प्राप्त करते ही आपकी भारतीय नागरिकता स्वत: समाप्त हो जाएगी।

अनुच्छेद- 10: इस अनुच्छेद के मुताबिक, संविधान के प्रारंभ में जो लोग नागरिक थे, वे संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के तहत भी नागरिक बने रहेंगे।

अनुच्छेद 13: यह अनुच्छेद न केवल भारतीय संविधान की सर्वोच्चता का दावा करता है, अपितु न्यायिक समीक्षा के लिए भी प्रावधान करता है। इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की गई है और संसद द्वारा बनाये गये ऐसे किसी भी कानून को संविधान सम्मत न होने की स्थिति में शून्य घोषित करने का अधिकार दिया गया है जो मौलिक अधिकारों की अवमानना करते हों या इनके साथ असंगत हों।

अनुच्छेद 14: इसमें कहा गया है कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिये एकसमान कानून बनायेगा तथा सभी पर एक समान रूप से लागू करेगा अर्थात ये विधि के समक्ष समता तथा विधियों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 15: इसके मुताबिक, राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म-स्थान आदि के आधार पर नागरिकों साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। अर्थात राज्य की नज़रों में सभी भारतीय नागरिक एक समान होंगे।

अनुच्छेद 16: इसके अनुसार, राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संंबंधित विषयों में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान किए जाएंगे। किंतु राज्य को सार्वजनिक नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की अनुमति प्रदान की गई है।

अनुच्छेद-17: इसके तहत अस्पृश्यता यानी छुआछूत के अंत की बात कही गई है। किसी भी रूप में इसके पालन को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।

अनुच्छेद-18: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि सेना या विधि संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।

अनुच्छेद-19: मूल संविधान में सात तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था, अब सिर्फ छह हैं। अनुच्छेद-19 (f) जिसमें संपत्ति का अधिकार शामिल था, उसे 44वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया है।

दी गई छ: तरह की स्वतंत्रताएं निम्न हैं-

  • अनुच्छेद-19 (a)- बोलने की स्वतंत्रता।
  • अनुच्छेद-19 (b)- शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद-19 (c)- संघ बनाने की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद-19 (d)- देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद- 19 (e)- देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
  • अनुच्छेद-19 (g)- कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता

अनुच्छेद-20: इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है-

  • किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिये सिर्फ एक बार सजा मिलेगी।
  • अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी, न कि पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।
  • किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिये बाध्य नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-21: इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ये हमें जीवन का अधिकार देता है। इसके अनुसार, किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। इसी अनुच्छेद के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों को स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराए।

अनुच्छेद-21 (क): इसके अनुसार, राज्य ‘6 से 14 वर्ष’ के आयु के समस्त बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराएगा।

अनुच्छेद-22: इसमें बताया गया है कि अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई हैं-

  • व्यक्ति को हिरासत में लेने का कारण बताना होगा
  • 24 घंटे के अंदर (आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा।
  • उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।

अनुच्छेद-23: इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुई श्रम निषिद्ध ठहराया गया है, जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है। हां, देश का नागरिक होने के चलते राष्ट्र को उसकी ज़रूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिये उसे बाध्य किया जा सकता है।

अनुच्छेद-24: ‘चौदह वर्ष से कम’ आयु वाले किसी बच्चों को कारखानों, खदानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है।

अनुच्छेद-25: कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है।

अनुच्छेद-26: व्यक्ति को अपने धर्म के लिये संस्थानों की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्पत संपत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है।

अनुच्छेद-27: इसके मुताबिक, राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिये बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिये विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है।

अनुच्छेद-28: राज्य निधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी। ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को जबरदस्ती सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकते।

अनुच्छेद-29: कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है। और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा। वर्तमान में छ: समुदायों ‘मुस्लिम, पारसी, ईसाई, सिख, बौद्ध एवं जैन’ को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद-30: कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्थान चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेगी।

अनुच्छेद-32: इस अनुच्छेद के तहत, अगर किसी को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है।

अनुच्छेद-38: राज्य लोक कल्याण की उन्नति के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा, जिससे नागरिक को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा।

अनुच्छेद-39 (क): पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है।

अनुच्छेद-39 (घ): ये अनुच्छेद पुरुषों और स्त्रियों, दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने की बात कहता है।

अनुच्छेद-40: राज्य ग्राम पंचायतों को स्वशासन की इकाइयों के रूप में संगठित करने के लिए कदम उठाएगा।

अनुच्छेद-41: यह अनुच्छेद बेरोज़गारी, बुढ़ापा, बीमारी और विकलांगता के मामलों में कार्य करने, शिक्षा पाने और सार्वजनिक सहायता पाने का अधिकार सुरक्षित करता है।

अनुच्छेद-42: राज्य काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियों को सुनिश्चित करने एवं मातृत्व राहत के लिए प्रावधान करेगा।

अनुच्छेद-43: राज्य सभी कामगारों के लिये निर्वाह योग्य मज़दूरी और एक उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद-44: इसके मुताबिक, सरकार का दायित्व है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू की जाए।

अनुच्छेद-46: राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा।

अनुच्छेद-47: राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कदम उठाएगा और नशीले पेय तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगाएगा।

अनुच्छेद-48: यह अनुच्छेद गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाने तथा मवेशियों को पालने एवं उनकी नस्लों में सुधार करने से संबंधित है। संक्षिप्त में कहें तो इसमें कृषि एवं पशुपालन के संगठन पर जोर दिया गया है।

अनुच्छेद-48 (क): पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा देश के वनों एवं वन्यजीवों की रक्षा करना।

अनुच्छेद-49: राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों व वस्तुओं का संरक्षण करना।

अनुच्छेद-50: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का पृथक्करण।

अनुच्छेद-51: यह घोषणा करता है कि राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा स्थापित करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद-51 (क): इसमें मौलिक कर्तव्यों का वर्णन किया गया है।

अनुच्छेद-52: भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार, भारत का एक राष्ट्रपति होगा।

अनुच्छेद-53: यह अनुच्छेद संघ की कार्यकारी शक्ति से संबंधित है। संघ की कार्यकारी शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और संविधान के अनुसार वह इसका प्रयोग सीधे या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा।

अनुच्छेद-54: इसके तहत राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और सभी राज्यों तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं।

अनुच्छेद-55: इसमें राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली के बारे में बताया गया है।

अनुच्छेद-56: इसके मुताबिक, राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा। अपने पद की समाप्ति के बाद भी वह पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

अनुच्छेद-57: राष्ट्रपति के पद पर रह चुका कोई व्यक्ति, संविधान के अन्य प्रावधानों के तहत राष्ट्रपति पद के लिए फिर से चुनाव लड़ सकता है।

अनुच्छेद-58: इसमें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के लिए योग्यताओं का प्रावधान है।

अनुच्छेद-59: राष्ट्रपति के पद के लिये शर्तें; जैसे-संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य न होना तथा कोई लाभ का पद धारण न करना।

अनुच्छेद-60: इसमें राष्ट्रपति की शपथ और प्रतिज्ञान से जुड़ी बातें बताई गई हैं।

अनुच्छेद-61: राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया।

अनुच्छेद-62: राष्ट्रपति के पद की अवधि की समाप्ति से उत्पन्न रिक्त पद को भरने के लिए चुनाव, पद की समाप्ति से पूर्व किया जाएगा।

अनुच्छेद-63: इसके मुताबिक, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।

अनुच्छेद-64: भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।

अनुच्छेद-65: राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।

अनुच्छेद-66: उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

अनुच्छेद-67: उपराष्ट्रपति के पद की अवधि

अनुच्छेद-68: ये अनुच्छेद उपराष्ट्रपति के पद पर रिक्ति को भरने के लिए चुनाव कराने के समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति के पद की अवधि का वर्णन करता है।

अनुच्छेद-69: इसमें उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान करने की बात कही गई है।

अनुच्छेद-72: इसके अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों का उल्लेख किया गया है।

अनुच्छेद-74: राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन व सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।

अनुच्छेद-75: ये अनुच्छेद मंत्रिपरिषद से संबंधित प्रावधानों के बारे में बताता है।

अनुच्छेद-75 (3): मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।

अनुच्छेद-76: इसमें महान्यायवादी (Attorney General) के पद का प्रावधान है।

अनुच्छेद 78: राष्ट्रपति को सूचना देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य से संबंधित है।

अनुच्छेद-79: इसके मुताबिक, संघ के लिए एक संसद का गठन किया जाएगा जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा से मिलकर बनेगी।

अनुच्छेद-80: ये अनुच्छेद राज्यसभा की संरचना के बारे में विस्तार से बताता है।

अनुच्छेद-81: इसमें लोकसभा की संरचना के बारे में बताया गया है।

अनुच्छेद-89: इसमें सभापति (भारत के उपराष्ट्रपति) और राज्यसभा के उपसभापति का प्रावधान है।

अनुच्छेद-93: लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष को चुनेगी।

अनुच्छेद-97: सभापति और उपसभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते।

अनुच्छेद - 105: संसद के सदन की शक्तियां, विशेषाधिकार आदि

अनुच्छेद- 109: धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया

अनुच्छेद- 110: “धन विधेयक” की परिभाषा

अनुच्छेद- 112: वार्षिक वित्तीय बजट

अनुच्छेद-114: विनियोग विधेयक

अनुच्छेद-123: संसद के अवकाश के दौरान अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्तियाँ

अनुच्छेद-124: सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना

अनुच्छेद-125: न्यायाधीशों का वेतन

अनुच्छेद-126: कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति

अनुच्छेद-127: तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति

अनुच्छेद-128: सर्वोच्च न्यायालय की बैठक में सेवानिवृत्त न्यायाधीश की उपस्थिति

अनुच्छेद-129: सर्वोच्च न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना

अनुच्छेद-130: सर्वोच्च न्यायालय की सीट

अनुच्छेद-136: अपील के लिये सर्वोच्च न्यायालय की विशेष अनुमति।

अनुच्छेद- 137: निर्णयों या आदेशों का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन।

अनुच्छेद- 280: वित्त आयोग का गठन

अनुच्छेद-312: इसके अनुसार राज्यसभा को अखिल भारतीय सेवाओं के गठन की अनन्य शक्ति प्राप्त है।

अनुच्छेद 323 (क): प्रशासनिक अधिकरण

अनुच्छेद-338: राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

अनुच्छेद-338 (क): राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

अनुच्छेद-348: उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में प्रयोग की जाने वाली भाषा

अनुच्छेद-351: हिंदी भाषा के विकास के लिये निदेश

अनुच्छेद- 361: राष्ट्रपति, राज्यपालों और राजप्रमुखों का संरक्षण

अनुच्छेद-368: संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्तियाँ और उसके लिये प्रक्रिया

अनुच्छेद- 371 (क): नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष प्रावधान

अनुच्छेद-371: मणिपुर, असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और मिजोरम सहित 12 राज्यों को “विशेष दर्जा” प्रदान करता है।

अनुच्छेद-378: लोकसेवा आयोगों के बारे में उपबंध

इन अनुच्छेदों के बारे में जानने के बाद आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे संविधान निर्माता कितने दूरदर्शी थे। ये उनकी समझ और दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि इतनी विविधता के बावजूद देश को एक धागे में पिरोकर रखा जा सका है। दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान होने के बावजूद आज तक इसने अपने अस्तित्व को बरकरार रखा है। इसकी कठोरता और लचीलेपन की तुलना हम एक वृक्ष की शाखा से कर सकते हैं। शाखा को इतना भी न झुकाओ कि वह टूट जाय और शाखा इतनी सख्त भी न हो झुक न सके। एक तरफ यह बदलते समय के साथ देश की तरक्की व नागरिकों की खुशहाली तथा लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए यह खुद को बदलने की अनुमति देता है तो वहीं दूसरी तरफ किसी भी मज़बूत व तानाशाही सत्ता द्वारा अथवा आपात स्थिति में खुद की सुरक्षा का पुख्ता व्यवस्था भी खुद में समाहित किये हुए है। आपातकाल में द्वैध शासन प्रणाली (केंद्र सरकार व राज्य सरकारों) से एकल शासन प्रणाली में तब्दील हो जाने और आपतकाल के बाद पुन: सरकारों की बहाली करके द्वैध शासन प्रणाली लागू कर देने की विशेषता भारतीय संविधान में ही है। दुनिया के किसी संविधान में ऐसी व्यवस्था नहीं है। कुल मिलाकर कहें तो अगर हमारा संविधान परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता रखता है तो कठिन व विपरीत से विपरीत समय में मज़बूती से देश के लोकतंत्र व नागरिकों की सुरक्षा की क्षमता भी रखता है।



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