Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

आपराधिक कानून

दहेज़ हत्या के संबंध में दोष की धारणा

    «    »
 17-May-2024

राजा राम मंडल बनाम झारखंड राज्य

यदि अभियोजन पक्ष, IPC की धारा 304B में उल्लेखित दहेज़ हत्या के सभी तत्त्वों को स्थापित करने में विफल रहता है, तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B के अंतर्गत अपराध की धारणा लागू नहीं होती है।

न्यायमूर्ति सुभाष चंद एवं आनंद सेन

स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजा राम मंडल बनाम झारखंड राज्य के मामले में झारखंड उच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 113B में निर्धारित धारणा को प्रभावी बनाने के लिये, अभियोजन पक्ष को साक्ष्य के साथ यह प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि मृतक ने अपने वैवाहिक निवास में अपने अप्राकृतिक मृत्यु से कुछ समय पूर्व दहेज़ के संबंध में क्रूरता या उत्पीड़न का अनुभव किया था।

राजा राम मंडल बनाम झारखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • एक सत्र विचारण में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-VII, धनबाद द्वारा दोषी ठहराए जाने तथा सुनाई गई दोषसिद्धि के निर्णय के विरुद्ध आपराधिक अपील दायर की गई थी।
  • अपीलकर्त्ताओं को भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की धारा 304B के अंतर्गत दोषी ठहराया गया तथा दस वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा दी गई।
  • अभियोजन पक्ष का मामला लगभग चार वर्ष पहले सूचना प्रदाता की बहन के राजा राम मंडल से विवाह पर केंद्रित था।
    • विवाह के छह महीने के अंदर, दहेज़ की मांग पूरी न होने के कारण बहन को कथित तौर पर अपने ससुराल वालों और पति के द्वारा क्रूरता का सामना करना पड़ा।
  • 2 मई 2009 को सूचना प्रदाता को सूचना प्राप्त हुई कि उसकी बहन की ससुराल में मौत हो गई है। आरोप है कि दहेज़ की मांग को लेकर हुए विवाद के कारण उसकी हत्या कर दी गई।
  • आरोपियों पर IPC की धारा 304B के अधीन आरोप लगाए गए तथा ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी पाया। अभियुक्तों की ओर से आपराधिक अपीलें दायर की गईं, जिसमें कहा गया कि दोषसिद्धि एवं सज़ा, साक्ष्यों के उचित मूल्यांकन पर आधारित नहीं थी।
  • उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 304B पर प्रकाश डाला, इस बात पर बल दिया कि अभियोजन पक्ष को पाँच महत्त्वपूर्ण बिंदु स्थापित करने चाहिये:
    • मृत्यु का कारण,
    • विवाह के संबंध में मृत्यु की समय-सीमा
    • मृतिका को अपने पति या उसके रिश्तेदारों से क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना 
    • इस तरह के दुर्व्यवहार का संबंध दहेज़ की मांग से है
    • उसकी मृत्यु से कुछ समय पहले इस दुर्व्यवहार की घटना।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायमूर्ति सुभाष चंद एवं आनंद सेन की खंडपीठ ने कहा, "IPC की धारा 304B एवं IEA की धारा 113B के संयुक्त पाठन से यह पता चलता है कि यह दिखाने के लिये उचित आधार होना चाहिये  कि मृत्यु से तुरंत पहले, पीड़ित के साथ क्रूरता की गई थी या दहेज़ की मांग के आधार पर उत्पीड़न किया गया था”।
    • “चूँकि अभियोजन पक्ष ने साक्ष्यों के द्वारा यह सिद्ध नहीं कर पाए कि विवाह के सात वर्ष के भीतर अपने वैवाहिक घर में अप्राकृतिक मृत्यु से ठीक पहले दहेज़ की मांग के संबंध में मृतक के साथ क्रूरता या उत्पीड़न किया गया था।
    • IEA की धारा 113B के अधीन वैधानिक अनुमान लागू नहीं हो सकता। यह धारणा तभी उत्पन्न होगी, जब अभियोजन पक्ष ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304B के अपराध के सभी तत्त्वों को सिद्ध कर दिया है।
  • न्यायालय ने कहा कि संबंधित ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 304B के अंतर्गत अपराध के संबंध में अपना निष्कर्ष दिये बिना अपीलकर्त्ता दोषी के विरुद्ध गलत अनुमान लगाया है।
  • न्यायालय ने पाया कि दोषी, अपीलकर्त्ताओं के द्वारा दहेज़ के लिये किसी भी उत्पीड़न का संकेत देने वाला कोई साक्ष्य नहीं था।
  • जबकि 2 मई 2009 को मृतक की मृत्यु वास्तव में अप्राकृतिक थी, अभियोजन पक्ष ने इस अप्राकृतिक मृत्यु को दहेज़ के लिये किये गए किसी उत्पीड़न से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये।
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे अपने मामले को पर्याप्त रूप से सिद्ध नहीं किया।
  • दोषसिद्धि का निर्णय एवं ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सज़ा को त्रुटिपूर्ण निष्कर्षों पर आधारित माना गया, जिसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता थी तथा परिणामस्वरूप, दोनों आपराधिक अपीलों को अनुमति के योग्य माना गया।

दहेज़ मृत्यु के संबंध में क्या धारणा है?

  • विधिक अवधारणा
    • विधि मानता है कि विवाह के सात वर्ष के अंदर एक महिला की मृत्यु, जहाँ उसकी मृत्यु से कुछ समय पूर्व दहेज़ की मांग से संबंधित क्रूरता या उत्पीड़न का साक्ष्य है, "दहेज़ मृत्यु" है।
  • साक्ष्य का भार: 
    • यह सिद्ध करने का उत्तरदायित्व आरोपी पर होता है कि मृत्यु, दहेज़ की मांग या उत्पीड़न से संबंधित नहीं था। इससे तात्पर्य यह है कि आरोपियों को दहेज़ संबंधी आरोपों के संबंध में स्वयं की दोषमुक्ति सिद्ध करनी होगी।
  • विधिक धाराएँ: 
    • दहेज़ हत्या की अवधारणा, IEA की धारा 113B एवं IPC की धारा 304B के अधीन प्रावधानित की गई है।
  • समय-सीमा: 
    • यह अनुमान विवाह के सात वर्ष के अंदर होने वाले अप्राकृतिक मौतों पर लागू होता है। उक्त समय-सीमा, यह निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण है कि मृत्यु "दहेज़ मृत्यु" की विधिक परिभाषा के अंतर्गत आती है या नहीं।
  • उद्देश्य
    • इस विधिक प्रावधान का उद्देश्य, दहेज़ से संबंधित अपराधों को सिद्ध करने की चुनौतियों का समाधान करना है, जो अक्सर परिवार के अंदर होते हैं तथा अभियोजन का विचारण कठिन होता है।
    • विधिक धारणा बनाकर, विधि का उद्देश्य, महिलाओं को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना एवं अपराधियों को दहेज़ से संबंधित हिंसा में शामिल होने से रोकना है।

दहेज़ हत्या के संबंध में अवधारणा के लिये विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • दहेज़ हत्या:
    • IPC की धारा 304B दहेज़ हत्या से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जहाँ एक महिला की मृत्यु, किसी जलने या शारीरिक चोट के कारण होती है या उसकी विवाह के सात वर्ष के अंदर सामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी अन्य स्थिति में होती है तथा यह दिखाया जाता है कि उसकी मृत्यु से ठीक पूर्व उसके पति द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न किया गया था या दहेज़ की मांग के लिये या उसके संबंध में उसके पति के किसी भी रिश्तेदार के द्वारा किया गया दहेज़ मृत्यु कहा जाएगा और ऐसे पति या रिश्तेदार को उसकी मृत्यु का कारण माना जाएगा।
  • दहेज़ हत्या के संबंध में उपधारणा:
    • IEA की धारा 113B दहेज़ हत्या की धारणा से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जब प्रश्न यह है कि क्या किसी व्यक्ति ने किसी महिला की दहेज़ हत्या की है तथा यह दिखाया गया है कि उसकी मृत्यु से ठीक पूर्व उस महिला को दहेज़ की किसी भी मांग के लिये या उसके संबंध में उस व्यक्ति द्वारा क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार बनाया गया था तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय यह मान लेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज़ हत्या कारित की है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) के अंतर्गत:
    • BSA की धारा 118 दहेज़ हत्या के रूप में अनुमान के प्रावधान को शामिल करती है।

दहेज़ मृत्यु का अनुमान लगाने के लिये आवश्यक शर्तें क्या हैं?

  • विवाह के सात वर्ष के अंदर मृत्यु:
    • इस अवधारणा को लागू करने के लिये महिला की मृत्यु उसकी विवाह के सात वर्ष के भीतर होनी चाहिये। यह समय-सीमा महत्त्वपूर्ण है तथा मामले का विनिश्चय करने के लिये एक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करती है।
  • दहेज़ उत्पीड़न के साक्ष्य:
    • दहेज़ की मांग के संबंध में या उसके पति या ससुराल वालों द्वारा महिला के प्रति की गई क्रूरता या उत्पीड़न का साक्ष्य होना चाहिये।
    • इस साक्ष्य में आमतौर पर साक्षियों की गवाही, मेडिकल रिपोर्ट या कोई अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़ सम्मिलित होते हैं।
  • उत्पीड़न का समय:
    • उत्पीड़न या क्रूरता महिला की मृत्यु से "तुरंत पहले" हुई होगी।
    • विधि द्वारा कोई निश्चित समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं है, लेकिन युक्तियुक्त संबंध स्थापित करने के लिये उत्पीड़न का समय मृत्यु के बहुत नज़दीक होना चाहिये।
  • परिस्थितिजन्य साक्ष्य:
    • यह अनुमान, मृत्यु से जुड़े परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं उससे जुड़ी परिस्थितियों के आधार पर लगाया गया है।
    • इस साक्ष्य में महिला के बयान, परिवार की गवाही, या दहेज़ से संबंधित उत्पीड़न का संकेत देने वाली कोई अन्य प्रासंगिक जानकारी शामिल हो सकती है।
  • अभियोजन पक्ष का दावा:
    • यह अभियोजन पक्ष का उत्तरदायित्व है कि वह दहेज़ उत्पीड़न या महिला की मृत्यु के लिये  उत्तरदायी क्रूरता के अस्तित्त्व पर बल दे तथा सिद्ध करे।
    • अभियोजन पक्ष को दहेज़ हत्या के बारे में अनुमान लगाने के लिये साक्ष्य द्वारा समर्थित एक ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा।

अनुमान की प्रकृति क्या है?

  • IEA की धारा 113B में ‘होगा’ एवं ‘नहीं हो सकता’ शब्द का उपयोग किया गया है तथा इसलिये  यह एक विधिक धारणा है।
  • न्यायालय के लिये यह अनुमान लगाना अनिवार्य हो जाता है कि अभियुक्त ने दहेज़ हत्या का कारण बना।

IEA की धारा 113B के अंतर्गत अनुमान से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

  • शांति बनाम हरियाणा राज्य (1990) में, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि धारा 304B एवं 498A परस्पर अनन्य नहीं हैं। न्यायालय ने निर्णय दिया है कि दहेज़-हत्या के आरोपी को दोषी सिद्ध करने के लिये अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करने वाले साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे कि दहेज की मांग के साथ उत्पीड़न एवं क्रूरता के कार्य भी किये गए थे।
  • सतबीर सिंह एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2021) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि IPC की धारा 304B में प्रयोग किये जाने वाले वाक्यांश 'अभी पहले' से तात्पर्य 'बिल्कुल पहले' नहीं समझा जा सकता है।