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आपराधिक कानून
IPC की धारा 489B
« »01-Mar-2024
डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य "आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।" न्यायमूर्ति मृदुल कुमार कलिता |
स्रोत: गुवाहाटी उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य के मामले में माना है कि आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
डिंबेश्वर बोबो बनाम असम राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, अपीलकर्त्ता को पकड़ लिया गया और बालिजन बाज़ार समिति के कार्यालय कक्ष में बंद कर दिया गया, जब वह 100 रुपए के कुछ कूटरचित नोट देकर बाज़ार में सामान खरीद रहा था।
- अपीलकर्त्ता के विरुद्ध IPC की धारा 489B के तहत मामला दर्ज किया गया था।
- ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को उक्त प्रावधान के तहत दोषी ठहराया तथा उसे पाँच वर्ष के कठोर कारावास और 2,000/- रुपए का ज़ुर्माना भरने की सज़ा सुनाई।
- इसके बाद, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के समक्ष एक आपराधिक अपील दायर की गई।
- अपीलकर्त्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 489B के तहत वर्तमान अपीलकर्त्ता के अपराध के निष्कर्ष पर पहुँचने में गलती की है क्योंकि यह दर्शाने के लिये कोई साक्ष्य नहीं दिया गया था कि अपीलकर्त्ता को पता था या उसके पास इस बात पर विश्वास करने का कोई कारण था कि ज़ब्त किये गई नोट कूटरचित या नकली थे।
- ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित निर्णय को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति मृदुल कुमार कलिता ने कहा कि अभियोजन पक्ष IPC की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये आवश्यक वर्तमान अपीलकर्त्ता के आपराधिक मनःस्थिति के संबंध में आवश्यक संघटक को साबित करने में विफल रहा है।
- आगे यह माना गया कि आपराधिक मनःस्थिति साबित किये बिना, केवल उक्त कूटरचित नोटों का कब्ज़ा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 489B के तहत अपराध कारित करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
IPC की धारा 489B क्या है?
परिचय:
- यह धारा कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असली के रूप में उपयोग में लाने से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी कूटरचित या कूटकृत करेंसी नोट या बैंक नोट को, यह जानते हुए, या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह कूटरचित या कूटकृत है, किसी अन्य व्यक्ति को बेचेगा या उससे खरीदेगा या प्राप्त करेगा या अन्यथा उसका दुर्व्यापार करेगा या असली के रुप में उसे उपयोग में लाएगा, वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
निर्णयज विधि:
- उमा शंकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2001) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि इस प्रावधान को लागू करने में विधायिका का उद्देश्य न केवल देश की अर्थव्यवस्था की रक्षा करना है, बल्कि मुद्रा नोटों और बैंकनोटों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना भी है।
- क्रेडिट कार्ड प्रणाली की बढ़ती आदत के बावजूद, मुद्रा नोट अभी भी हमारे देश में बड़ी संख्या में वाणिज्यिक लेनदेन की रीढ़ हैं। लेकिन यह प्रावधान असावधान मालिकों या उपयोगकर्त्ताओं को दण्डित करने के लिये नहीं है।